सभी मानते हैं कि यह मेला राष्ट्रीय पहचान की आस में अब बुढ़ा हो चला है, अब इसके अस्तित्व पर भी संकट मंडराने लगा। बलिया के राजनीतिक लाल आज तक इस विख्यात मेले को राष्ट्रीय पहचान नहीं दिला सके। ददरी मेला वह मेला है, जहां पूर्वांचल के कई जनपदों के लोग पहुंचते हैं। धार्मिक हक के मुताबिक भृगु क्षेत्र के गंगा घाटों को प्रयागराज और वाराणसी की तर्ज पर बहुत पहले विकसित हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।
बलिया डेस्क : धार्मिक और राजनीतिक रुप से धनी महर्षि भृगु की धरती बलिया में हर साल लगने वाला ददरी मेला इस साल कोरोना के चलते नहीं लगेगा। जिला प्रशासन ने ऐसा निर्णय लिया है। इस सूचना ने बलिया के लोगों को निराश किया है। सभी मानते हैं कि यह मेला राष्ट्रीय पहचान की आस में अब बुढ़ा हो चला है, अब इसके अस्तित्व पर भी संकट मंडराने लगा। बलिया के राजनीतिक लाल आज तक इस विख्यात मेले को राष्ट्रीय पहचान नहीं दिला सके। ददरी मेला वह मेला है, जहां पूर्वांचल के कई जनपदों के लोग पहुंचते हैं। धार्मिक हक के मुताबिक भृगु क्षेत्र के गंगा घाटों को प्रयागराज और वाराणसी की तर्ज पर बहुत पहले विकसित हो जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ। धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करने वाले जिले के कई जानकार बताते हैं कि धार्मिक और राजनीतिक रुप से धनी महर्षि भृगु क्षेत्र में आंस्था इतनी गहरी है, जिसको व्यक्त कर पाना भी आसान नहीं है। इसके बावजूद यह धरती उपेक्षित होती रही है। यहां का ददरी मेला गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के ऋषि मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण हैं। कभी इसी मेले में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भारत वर्षोन्नति का मंत्र एक सदी पहले देकर आधुनिक भारत की परिकल्पना पेश की थी। फिर भी मेले के विकास के प्रति अब तक कोई ठोस पहल होती नहीं दिखी।
ददरी मेले के आयोजन को लेकर कलेक्ट्रेट सभागार में कल एक बैठक हुई। इसमें कोविड-19 को देखते हुए मेले के आयोजन को लेकर सब के सुझाव लिए गए। अंततः कोविड-19 से लोगों की सुरक्षा को देखते हुए इस वर्ष मेला स्थगित करने का निर्णय हुआ। डीएम एसपी शाही ने कहा कि ददरी मेले को लेकर जो भी संशय है, कोरोना महामारी से जनता को बचाने को लेकर है। ऐसे आयोजन की गाइडलाइन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वृहद मेला में कोविड प्रोटोकाल का शत अनुपालन करा पाना मुश्किल होगा। मेले में दो सौ से अधिक भीड़ हर हाल में हो जाएगी। इसलिए मेला कराना और उसके बाद जिले को लॉकडाउन की स्थिति में ले जाना कहीं से भी उचित नहीं है।
स्नान होगा लेकिन नहीं होंगे सांस्कृतिक कार्यक्रम
डीएम ने कहा कि कार्तिक पूर्णिमा स्नान का कार्यक्रम होगा, पर उस दिन किसी भी प्रकार का सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं होगा। जैसा कि संज्ञान में आ रहा है कि कुछ देशों में फिर इस महामारी ने वापसी की है और लॉकडाउन होने लगा है। ठंढ के साथ और तेजी से फैलाव की संभावना जाहिर की जा रही है। प्रदेश मुख्यालय के स्वास्थ्य विभाग से भी अब एल-2 अस्पताल में पर्याप्त व्यवस्था पर जोर दिया जा रहा है। बलिया की स्थिति देखें तो जुलाई-अगस्त में यह बीमारी जिले को सबसे ज्यादा प्रभावित की थी। वर्तमान में सुधार हुआ है, पर पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं। नगरपालिका परिषद बलिया का कोई ऐसा वार्ड नहीं है जहां एक भी केस नहीं है। दो सौ से अधिक कंटेनमेंट जोन हैं। आज भी मोहल्ला भृगु आश्रम में 31 मरीज, पुलिस लाइन में 13, आनंदनगर में 10 मरीज हैं। ऐसे में लोगों की सुरक्षा के लिए बहुत सारी परंपरागत गतिविधियों पर विराम लगा। विभिन्न जगहों पर आयोजित होने वाले महावीरी जुलूस, मथुरा का गोवर्धन मेला, गढ़ मेला जैसी पारंपरिक गतिविधियां स्थगित हुईं। इसलिए लोगों की सुरक्षा के लिए मेला नहीं कराया जाना ही उचित होगा। बैठक में सीआरओ विवेक श्रीवास्तव, एडीएम रामआसरे, एसडीएम सदर राजेश यादव, डिप्टी कलेक्टर सर्वेश यादव, सीओ सिटी अरुण सिंह, नपा चेयरमैन अजय कुमार, ईओ दिनेश विश्वकर्मा आदि अधिकारी थे।
फिर मिला राजकीय मेला घोषित कराने का आश्वासन
ददरी मेले को राजकीय मेला घोषित करने की मांग को लेकर डीएम ने कहा कि इसका पूरा प्रयास किया जाए। मेला का आयोजन नहीं होता है तो इस समय का उपयोग इसी कार्य में किया जाए। शासन से बात हुई है। इससे संबंधित प्रारूप मंगवाया है, जिस पर जरूरी विवरण भरकर भेजा जाएगा। इसके बाद जनप्रतिनिधि और अधिकारी के स्तर पर पहल करके ददरी मेला को राजकीय मेला घोषित करने का पूरा प्रयास होगा। मेला भूमि का फाइनल चयन कर लिया जाए तो इस दिशा में एक बड़ी बाधा दूर हो जाएगी।
बलिया गान के लिए दिए सुझाव
जिलाधिकारी ने कहा बलिया पर आधारित कोई गीत ‘बलिया गान’ होनी चाहिए। ददरी मेला के खाली समय में ही इसे बनवा लिया जाए तो बेहतर कदम होगा। सुझाव देते हुए कहा कि इसके लिए पहले कई गीत लिखवाए जाएं। फिर सोशल स्टेज पर बेहतर गीत चुनने के लिए वोटिंग कराई जाए। सबसे बेहतर तीन गीत चुना जाए और उससे गवाकर सुना जाए। फिर उसमें से सबसे बेहतर गीत का चयन हो। इसके लिए लिखने वाले को एक लाख का इनाम दिया जाएगा। ददरी मेले के आयोजन नहीं होने से मिलने वाले एक महीने के खाली समय में ही इस तरह की सकारात्मक पहल हो। इसमें होने वाले खर्च को लेकर चेयरमैन अजय कुमार ने आश्वस्त किया। इसके साथ ही ददरी मेला स्मारिका भी तैयार कराने की बात कही।
फिर भी पीछा नहीं छोड रहा एक सवाल
ददरी मेला के आयोजन पर जिला प्रशासन की ओर से निर्णय हो चुका है लेकिन जनता का एक सवाल पीछा नहीं छोड़ रहा है। वह यह कि इससे पहले कई स्थानों पर राजनीतिक आयोजन हुए, काफी भीड़ देखी गई। अभी तत्काल दशहरा पर्व बीता, उसमें में ग्रामीण अंचलों में रात में हजारों दर्शकों के बीच सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। आगे दीपावली और छठ पर्व है। उसमें भी कोविड-19 के नियम का कितना पालन होगा, इसका अनुमान पहले से ही लगाया जा सकता है। सबकुछ छोड़ हम बलिया शहर के अंदर की रोज की दशा देख लें। रविवार को छोड़ बाकी के कोई ऐसे दिन नहीं होंगे, जिस दिन हजारों वाहनों और लोगों की भीड़ से यह शहर कराहते नजर नहीं आता हो। ऐसे में कोरोना का कोई खतरा नहीं, लेकिन ददरी मेला से कोरोना का खतरा है। मानना तो सभी को पड़ेगा, इसलिए कि यह निर्णय सरकार का है।
फेसबुक पर लिखा है-बलिया के दुर्भाग्य पर नहीं होती कोई चर्चा
बलिया को बागी बलिया के नाम से बड़े ही शान से सभी परिचय देते हैं, लेकिन बलिया के दुर्भाग्य पर कभी कोई चर्चा नहीं होती। बलिया की जनता ने बड़ी उम्मीद से लगभग नौ लोगों को उन्हें उच्च सदन में भेजा है। इनकी उपलब्धि यह है कि बलिया में एक भी अच्छा अस्पताल नहीं है। एक चीनी मिल है जो लंबे समय से बंद है। एक कटाई मिल था, जिसे अब विधुत उपकेंद्र बना दिया गया। इतने सारे लोगों के रहते हुए भी कटहल नाला की एक तरफ से टूटी हुई पुलिया नहीं बन पाई। शहर में न डिवाइडर है, न कोई व्यवस्था, हर जगह अतिक्रमण। नगरपालिका की बजबजाती नालियां शहर की सुंदरता में अलग से चारचांद लगाती हैं। सीवरेज सिस्टम भी पूरी तरह धवस्त है। पिछले कार्यकाल में नितिन गडकरी बलिया आए थे, वादा किया था कि रिंग रोड बनवा देंगे। ओवरब्रिज बनवा देंगे, पता नहीं उनके काम कहां पर हुए। फेसबुक के इस साथी ने लिखा है…मैं कहता हूं आप सत्ता में रहकर खूब कमाएं, आपके पैसे में से जनता को हिस्सेदारी नहीं चाहिए, लेकिन जनता के लिए कुछ तो अच्छे काम कर दें। बलिया के गंगा घाट पर रोज दाह-संस्कार होता है..वहां कोई इंतजाम नहीं है। बाहर से आने लोग कहते हैं कि यहां के नेता कैसे हैं। अभी कार्तिक मास चल रहा है, कार्तिक पूर्णिमा के दिन घाट पर अप्रत्याशित भीड़ होती है। पुरुषों की बात छोड़िए, स्नान कर रही महिलाओं को कपड़ा बदलने के लिए एक टिन शेड तक नहीं है। भीड़ के बीच ही महिलाएं किसी तरह अपना कपड़ा बदलती हैं। फेसबुक के इस साथी ने एक सुझाव भी दिया है। वह यह कि बलिया के जनप्रनिधि आपस में काम बांट लें तो बलिया का कायाकल्प हो सकता है। कोई स्वास्थ्य सेवा के लिए संकल्पित हो जाएं, कोई सड़क, नगरपालिका, शिक्षा, बेरोजगारी, पेयजल, पर्यावरण, यातायात, नागरिक सुरक्षा, कृषि, महिला सुरक्षा आदि की जिम्मेदारी ले तो बात बन सकती है, लेकिन ऐसा न कर सभी अपने भाषणों से ही बलिया का विकास करने में जुटे हैं। सभी को यह समझना होगा कि नेता का मतलब केवल थानों पर पैरवी करना नहीं, क्षेत्र का विकास करना है।