पद पर आसीन होने के बाद यदि इंसान को पद का अभिमान हो जाए तो पतन निश्चित है। ऐसे लोगों को पदच्युत होने के बाद समाज अच्छी निगाहों से नहीं देखता। वे स्वयं भी पश्चाताप की अग्नि में जलते रहते हैं।
News Desk : किसी भी पद की प्राप्ति के बाद इंसान को अपने कार्य एवं व्यवहार में मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। जो जिस योग्य है उसे यथोचित सम्मान देना चाहिए। पद पर आसीन होने के बाद यदि इंसान को यदि पद का अभिमान हो जाए तो पतन निश्चित है। ऐसे लोगों को पदच्युत होने के बाद समाज अच्छी निगाहों से नहीं देखता। वे स्वयं भी पश्चाताप की अग्नि में जलते रहते हैं। जीयर स्वामी ने चंदवा चातुर्मास्य ज्ञान-यज्ञ में प्रवचन करते हुए कही। श्री जीयर स्वामी श्रीमद भागवत महापुराण के छठवें स्कंद की कथा के क्रम में कहा कि इंद्र अप्सराओं के साथ नृत्य में इतने लीन थे कि देवगुरु बृहस्पति के आगमन का भी उन्हें ख्याल नहीं रहा। गुरु बृहस्पति इन्द्र के व्यवहार से क्रोधित हो गए। इंद्र को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ। वे गुरू बृहस्पति से क्षमा मांगने के लिए निकले लेकिन बृहस्पति अन्तर्धायन हो गये। बृहस्पति के अंतरध्यान की सूचना राक्षसों को मिल गई। वे अपने गुरु शुक्राचार्य की सहमति से इन्द्रलोक पर चढ़ाई कर दिए और इन्द्रासन जीत लिए। गुरु बृहस्पति के नहीं रहने के कारण देवताओं का तेज समाप्त हो उन्होंने कहा कि लक्ष्मी चरण धूल के समान हैं। ये बार-बार आती-जाती है। अस्थिरता लक्ष्मी का स्वभाव है, वे स्थाई रूप से कहीं वास नहीं करती। जैसे मनुष्य कहीं से आने के क्रम में अपना पूरा शरीर नहीं घोता लेकिन चरण धोते रहता है। इसलिए धन-दौलत को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं देनी चाहिए। लक्ष्मी आती-जाती रहेंगी लेकिन एक बार आदमी अपनी मर्यादा से गिर जाए तो जीवन पर्यन्त उसकी भरपाई संभव नहीं है।
व्यक्ति की अस्वस्थता है तनाव का कारण
जीयर स्वामी ने कहा कि वर्तमान समय में व्यक्ति की अस्वस्थता का प्रमुख कारण तनाव है और तनाव का मुख्य कारण अनन्त अपेक्षाएं हैं। समाज से अधिक अपने परिजनों से ही व्यक्ति को अधिक तनाव मिल रहा है। व्यक्ति अपने प्रयास से घर परिवार को सजाता संवारता है। पुत्र-पुत्रियों को पढ़ाता-लिखाता है लेकिन जब वे उनकी अपेक्षा के अनुरूप व्यवहार में खरा नहीं उतरते तो उन्हें मानसिक तनाव हो जाता है। यह मानसिक तनाव कई रोग पैदा कर रहे हैं। स्वामी जी ने कहा कि अपने परिजनों से तक अपेक्षाएं न रखें अन्यथा मानसिक तनाव का गिफ्ट अवश्य मिलेगा। मनुष्य अपने दुख का कारण स्वयं है। हम अपने परिजनों के लिए सुख-समृद्धि के संसाधन जुटाने में आजीवन व्यस्त रहते हैं। हम कभी भी अपनी संतति में अच्छे संस्कार के बीजारोपण का प्रयत्न नहीं करते। संस्कारी संतान से माता-पिता को कभी भी शिकायत नहीं होती। आज का विद्यार्थी कहता है कि पढ़ने में मन नहीं लगता। स्वामी जी ने कहा कि बचपन से बच्चों को संस्कार दे और विलासी साधनों की अपेक्षा जरूरी साधन ही उपलब्ध कराएं। विद्यार्थी को सहज जीवन व्यतीत करने को प्रेरित करें।
साभार-सन्निध्य का संस्मरण” ग्रंथ।