उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अब दस महीने से कम का वक्त बचा है। मार्च 2022 तक नई सरकार का गठन करके मुख्यमंत्री चुना जाना है। ऐसे में तैयारी के लिए महज पांच-छह महीने बचे हैं। दूसरी ओर पंचायत चुनाव के नतीजे ने भाजपा और संघ के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी है। भाजपा से जाट, गूजर, ब्राह्मण समेत तमाम जातियों के छिटकने का खतरा है। ऐसे में भाजपा में मुख्यमंत्री योगी पर गहन मंथन चल रहा है। एक सप्ताह से योगी आदित्यनाथ का जमकर टारगेट किया जा रहा है। इसको लेकर राजनीति में इन दिनों काफी हलचल देखने को मिल रही है।
लखनऊ : यूपी में 2017 में बने जातिगत समीकरण ने 2019 तक कमाल दिखाया लेकिन इधर कोरोना ने सरकार की कई तरह की उम्मीदों पर पानी पैर दिया है। प्रदेश के हालात के संबंध में प्रदेश सरकार के कई मंत्रियों ने अपनी नाराजगी केंद्र और शीर्ष संगठन तक पहुंचाई है। समझा जा रहा है कि इन चिंताओं को लेकर ही संघ के दूसरे नंबर के नेता दत्तात्रेय हसबोले इस समय प्रदेश में प्रवास पर हैं। दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की टीम को यह समय एक बार फिर अवसर के रूप में दिखाई दे रहा है। टीम को लग रहा है कि पंचायत चुनाव के नतीजे, कोरोना से उपजी नाराजगी बड़ा अवसर बन सकती है। टीम केशव के सदस्य दबी जुबान से मानते हैं कि सीएम पद के असली हकदार केशव प्रसाद मौर्य थे। वह मुख्यमंत्री होते तो अन्य पिछड़े वर्ग की तमाम जातियां भाजपा का साथ छोड़कर न भागतीं । न ही पंचायत चुनाव में भाजपा का ऐसा हश्र होता। समझा जा रहा है शीर्ष नेतृत्व अब इस गड़बड़ी को अगले दो-तीन महीने में दूर कर लेना चाहता है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल की पकड़ पार्टी में काफी मजबूत है। ऐसे में एक नई कोशिश शुरू होने की उम्मीद है।
भाजपा के लिए जातिगत समीकरण साधना बड़ी चुनौती
भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती 2017 के चुनाव में उसके साथ आई तमाम अगड़ी, पिछड़ी, अन्य पिछड़ी जातियों को फिर से पाले में लाना है। भाजपा में पूर्वी उत्तर प्रदेश के 16 जिलों के संपर्क प्रमुख का काम देखने वाले सूत्र का कहना है कि 2013 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रचार अभियान का प्रमुख बनाया गया था। इसके बाद अमित शाह ने काफी कोशिश की थी। जातिगत समीकरण का लाभ भी मिला। 2014 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद और 2017 के पहले भाजपा ने तमाम अन्य पिछड़ी और अनुसूजित जाति के लोगों को भाजपा से जोड़ा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी लोग जुड़े। रालोद के चौधरी अजीत सिंह को मुंह ताकना पड़ गया। जनता समाजवादी पार्टी की भीतरी लड़ाई और अखिलेश-शिवपाल के झगड़े और बसपा की सरकार देख चुकी थी। लिहाजा भाजपा को बहुमत मिला। अब भाजपा संगठन से जुड़े लोग मानते हैं कि पंचायत चुनाव के नतीजे लोगों के दूर होने का संकेत हैं।
2019 के बाद से बदली केमिस्ट्री
भाजपा नेताओं का भी कहना है कि 2019 के बाद से तेजी से केमिस्ट्री बदली है। योगी सरकार के कामकाज के तरीके से ब्राह्मण क्षुब्ध हैं। राजनीतिक लोग मानते हैं कि किसानों के आंदोलन से जाट, गूजर नाराज हैं। राष्ट्रीय लोकदल के साथ चले गए। ओम प्रकाश राजभर, अनुप्रिया पटेल खौफ खाई हुई हैं। ऐसे में छोटी-छोटी जातियों को फिर समेटना बड़ी चुनौती है। अब यादव एकजुट हैं। मुसलमान एकमुश्त सपा का साथ दे सकता है।
कोरोना ने खोल दी सरकार की कलई
कोरोना में आम आदमी की परेशानी ने राज्य सरकार की कलई खोल दी है। एक तरफ दर्द से परेशान लोग भटक रहे थे और दूसरी तरफ मुख्यमंत्री को अफसर गलत जानकारी देकर शरीर में आग लग जाने वाला वक्तव्य दिलवा रहे थे। अब यह सब समेटना बड़ी चुनौती है।
नाराजगी के स्तर को समझिए
1992 में बाबरी मस्जिद गिरने के बाद हुए चुनाव में कल्याण सिंह को जनता ने बहुमत नहीं दिया था। मुलायम सिंह यादव राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। इसलिए केवल हिन्दू, मुसलमान, राम मंदिर ही काफी नहीं है। समर्पित कार्यकर्ता भी जरूरी हैं। अभी के समय में मुख्यमंत्री योगी से जो बड़ी चूक हो रही है वह यह कि वे जहां भी जा रहे हैं, वहां कार्यकर्ता की नहीं सुन रहे हैं। अधिकारी जितना बता रहे, वह उतना ही समझना चाह रहे हैं। ऐसा कई जिलों के भ्रमण के दौरान देखने को मिला। अब भाजपा की राजनीति कैसी करवट लेगी। क्या योगी को केंद्र में लिया जाएगा, यूपी की कमान किसी और के हाथ में होगी। इस तरह के तमाम सवाल रोज उठ रहे हैं। भाजपा के कई विधायक भी यह मान रहे कि उनकी सरकार में अधिकारियों का भ्रष्टाचार कुछ जयादा ही बढ़ गया है। उनकी शिकायत यदि जनता करती है या कोई कार्यकर्ता करता है तो भी संबंधित अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। मुख्यमंत्री के भ्रमण में यह बात भी स्पष्ट है कि उनके आगमन को लेकर अधिकारियों में कोई भय नहीं है।