जिला मुख्यालय से करीब 41 किमी उत्तर पूर्व दिशा में अवस्थित सिकन्दरपुर तहसील क्षेत्र का महथापार गांव में एक माह में जली हैं दो दर्जन चिताएं। सुनी गलियां बयां कर रही करीबियों के खोने का दर्द। सिकन्दरपुर तहसील क्षेत्र का महथापार गांव की कहानी।
BY अजीत पाठक
बलिया : जिला मुख्यालय से करीब 41 किमी उत्तर पूर्व दिशा में अवस्थित सिकन्दरपुर तहसील क्षेत्र का महथापार गांव। यहां अजीब सा सन्नाटा पसरा है। सिर मुंडाए लोग गांव में कहीं भी दिख जाएंगे। उदास चेहरों पर पड़ी सिलवटें अपनो के खोने का दर्द बयां कर रही हैं। यहां के लोंगों ने असमय ही अपने करीबियों को काल कवलित होते देखा है। हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले एक माह में यहां से एक दो नहीं डेढ़ दर्जन अर्थियां उठी हैं। इसमे 40 से लेकर 65 वर्ष तक के महिला- पुरुष शामिल हैं। काल के क्रूर पंजे ने किसी के सिर से मां का आंचल छीना है तो कोई पिता की मौत के बाद अनाथ हो गया है। एक एक कर हुई मौतों से गांव के लोग काफी सहमे हुए हैं। हालांकि दो-तीन लोंगों को छोड़ दें तो जांच के अभाव में कोरोना की पुष्टि तो नहीं हुई फिर भी ग्रामीणों की जेहन में कहीं न कहीं एक अनजाना भय जरूर है। यहां के निवासी व अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश तिवारी ‘पप्पू’ ने बताया कि करीब 3300 की आबादी वाले इस गांव में मौत का ऐसा तांडव कभी देखने को नहीं मिला। बीते एक माह में डेढ़ दर्जन लोगों को खो चुके हैं। जबकि इसी ग्रामपंचायत के ग्रामसभा सरकंडा को शामिल कर दें तो आंकड़ा दो दर्जन पहुंच जायेगा। ऐसे में यहां के लोंगों की मनःस्थिति का सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है। वजह पूछने पर बताया कि लोगबाग कोरोना से संक्रमित थे या नहीं यह बता पाना सम्भव नहीं है पर अधिकतर लोंगों को बुखार आया, दम फूला और जब तक इलाज की व्यवस्था होती, लोग चल बसे। 40 वर्षीय सुनील सिंह यहीं के निवासी थे। एक दिन अचानक उनको बुखार आया तो वह टाल गए अगले दिन तेज बुखार होने पर परिजन हॉस्पिटल ले गए जहां उनकी मौत हो गयी। 39 साल की संगीता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। एक-दो दिन बुखार आने के बाद जब स्थिति बिगड़ी तो पति संजय सीएचसी सिकन्दरपुर ले गए जहां से डॉक्टरों ने जिला हॉस्पिटल ले जाने की सलाह दी। जिला चिकित्सालय ले जाते समय रास्ते मे ही संगीता ने साथ छोड़ दिया। इंद्रजीत प्रसाद की मौत कुछ दिन पहले हुई। वह भी संक्रमित थे या नहीं, इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं है, लेकिन शनिवार को दशगात्र कर लौटे परिजनों ने बताया कि आस पास हो रही मौतों से वे काफी व्यथित थे। एक दिन अचानक उनको सीने में तेज दर्द होने लगा। बेहतर इलाज के लिए गोरखपुर ले जाया गया जहां उनका निधन हो गया। कुछ ऐसे ही हालात में महेश गुप्त और परशुराम गोंड परिजनों को बीच मझधार छोड़ कर चल बसे। दो दिन पूर्व (गुरुवार को) अपनी चाची के श्राद्ध कर्म से निवृत हुए अनिल सिंह ने बताया कि एक दिन अचानक चाची (उत्तमराज पत्नी दीप नारायण सिंह) को बुखार आया। डॉक्टर दवा दे कर घर भेज दिए। अगले दिन शुरु हुआ असहनीय बदन दर्द मौत का कारण बन गया। आगे बताया कि गांव में तमाम लोग परेशान हैं। डरे हुए हैं। पर अब तक न तो यहां कोई स्वास्थ्य विभाग की टीम आई और न ही निगरानी समिति का कहीं अता पता है। शनिवार को दिलीप कुमार की मां सुमित्रा देवी की तेरही थी। पूछने पर बताया कि स्पष्ट कुछ कह नहीं सकते कि किस वजह से मां का आंचल छीन गया। हां, कोरोना महामारी ने कई परिवारों को वह ज़ख्म दिया है जो हमेशा के लिए रहने वाला है।
पसरा सन्नाटा
गांव के पंचायत भवन के पास स्थित हनुमान मंदिर भी कोरोना के ख़ौफ़ को बयां कर रहा है। मंदिर पर सामाजिक दूरी का पालन करते हुए बैठे छविनाथ ने बताया कि अक्सर यहां लोंगों की भीड़ लगी रहती थी।लेकिन मौत के आंकड़े ने ग्रामीणों में कोरोना का खौफ पैदा कर दिया है। यही कारण है कि चार लोग इकट्ठा नहीं बैठ रहे हैं।
नहीं मिल रहा अपेक्षित सहयोग
60 साल के जय कुमार लाल कहते हैं कि पहले तो कोरोना का प्रकोप समझ में नहीं आया लेकिन गांव में हुई मौतों से लोग भयाक्रांत हैं। टीकाकरण के बारे में पूछने पर बताया कि चार बार सीएचसी से वापस लौट चुका हूं। सरकार सीनियर सिटीजन को प्राथमिकता के आधार पर टीका लगाने का दावा कर रही है लेकिन धरातलीय हकीकत कुछ और ही है।
वर्षों रहेगा याद
65 वर्षीय दीनानाथ शर्मा कहते हैं कि कोरोना के आंकड़ों में कमी राहत की बात है लेकिन इस मुगालते में रहना कि संकट टल गया है, ठीक नहीं है। मौत का यह तांडव वर्षों याद रहेगा। कहा कोरोना के कारण उजड़े हुए परिवारों की तकलीफ तो दूर नहीं कर सकते पर उन्हें ढांढस ज़रूर बंधा सकते हैं और मुसीबत भरी इस घड़ी के टलने की हम दुआ करते हैं।
(लेखक बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं)