18वें अध्यक्ष का चुनाव होते जा रहा है। सत्ता दल के अलावा विपक्ष भी गुणा गणित में जुट गया हैं। निर्वाचित 58 जिला पंचायत सदस्य अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इस पद के लिए भाजपा, सपा और बसपा अलग’अलग दांव लगाने की तैयारी में है।
बलिया : जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव को लेकर पांच साल के बाद एक बार फिर राजनीति में धन-बल हावी होने को है। अंदरखाने से सभी दल तमाम तरह के हथकंडे अपनाने लगे हैं। कई माननीयों की पगड़ी दांव पर है। इस बार 18वें अध्यक्ष का चुनाव होते जा रहा है। चुनावी तिथि घोषित हो गई है। सत्ता दल के अलावा विपक्ष भी गुणा गणित में जुट गया हैं। तीन जुलाई को होने वाले मतदान को लेकर सरगर्मी बढ़ने लगी है। निर्वाचित 58 जिला पंचायत सदस्य अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। यह सीट दूसरी बार ओबीसी हुई है। बसपा ने अपना पत्ता आनंद चौधरी के रूप में खोला है। ये पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी के बेटे हैं। इस सीट पर अब तक 17 लोगों ने जिम्मेदारी निभाई है।
कई बार प्रशासक के हाथ में रही जिला पंचायत
एक बार ऐसा मौका भी आया था, जब कार्यकाल के बीच में ही त्रिस्तरीय कमेटी का गठन किया गया। वर्ष 2006 में भी यह सीट ओबीसी हुई थी। 27 बार ऐसे मौके आए जब जिलाधिकारी ने प्रशासक के तौर पर अल्पकाल के लिए कमान संभाली। इस बार लड़ाई रोचक होने की उम्मीद है।
आजादी के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष
तारकेश्वर पांडेय 1947 से 1952, रामलखन तिवारी 1952 से 1957, शीतल सिंह 1958 से तीन माह, शीतल सिंह नवंबर 1960 से मार्च 1963, राम दहिन राय अप्रैल 1963 से जुलाई 1963, राम दहिन राय सितंबर 1963 से नवंबर 1963, जवाहिर सिंह नवंबर 1963 से मार्च 1970, शिवशंकर सिंह नवंबर 1974 से अगस्त 1977, शिवभूषण तिवारी नवंबर 1992 से जनवरी 1993, नंद जी यादव जून 1994 से मई 1995, नंदजी यादव मई 1995 से जनवरी 1997, श्याम बहादुर सिंह जनवरी 1997 से मई 1997, भुनेश्वर चौधरी जून 1997 से जून 2000, भारती सिंह अगस्त 2000 से अक्टूबर 2005, राज मंगल यादव जनवरी 2006 से जनवरी 2011, रामधीर सिंह जनवरी 2011 से जनवरी 2016, त्रिस्तरीय समिति राजमंगल, नागेंद्र व अजय अगस्त 2015 से जनवरी 2016, सुधीर पासवान जनवरी 2016 से जनवरी 2021 तक।
मंत्रियों की पगड़ी दांव पर
मंत्री उपेंद्र तिवारी व आनंद स्वरूप शुक्ल के लिए भी यह सीट प्रतिष्ठा बन गई है। लखनऊ से लेकर बलिया तक संगठन व नेताओं की लगातार बैठकें हो रही है। अभी कोई प्रत्याशी घोषित नहीं हो सका है लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा और सपा भी इस सीट पर मजबूत दांव लगाएगी। सभी मानते हैं कि यह चुनाव धन और बल के इर्द-गिर्द चलता है। ऐसे में प्रत्याशी का चुनाव भी उसी हिसाब से किया जाता है।