1962 में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में पूर्वांचल में व्याप्त गरीबी के बारे में बताते हुए कहा था कि पूर्वांचल के लोग गोबर से अनाज निकालकर खाने को मजबूर हैं। यह सुन प्रधानमंत्री नेहरू भावुक हो गए और पूर्वांचल के विकास को लेकर पटेल आयोग का गठन किया। आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी पर बात इससे आगे नहीं बढ़ सकी।
बलिया : उत्तर प्रदेश के बंटवारे की मांग काफी पुरानी है। प्रत्येक विधानसभा चुनाव के नजदीक आने के साथ यह मांग जोर पकड़ लेती है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों में बंटवारे के हिमायती धरना-प्रदर्शन, रैलियों के माध्यम से राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं। नेतागण एक बार फिर साबित करने की कोशिशों में जुट जाते हैं कि प्रदेश का बंटवारा ही आम जनता के सभी समस्याओं का समाधान है।
1962 में गाजीपुर के तत्कालीन सांसद विश्वनाथ प्रसाद गहमरी ने लोकसभा में पूर्वांचल में व्याप्त गरीबी के बारे में बताते हुए कहा था कि पूर्वांचल के लोग गोबर से अनाज निकालकर खाने को मजबूर हैं। यह सुन प्रधानमंत्री नेहरू भावुक हो गए और पूर्वांचल के विकास को लेकर पटेल आयोग का गठन किया। आयोग ने रिपोर्ट तैयार कर सरकार को सौंपी पर बात इससे आगे नहीं बढ़ सकी। एक बार फिर यूपी विधान सभा चुनाव से पूर्व पूर्वाचल राज्य के गठन पर चर्चा होने लगी है।
बसपा प्रमुख मायावती ने दिया था यह प्रस्ताव
बसपा प्रमुख व तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने 21 नवंबर 2011 को विधानसभा में भारी हंगामे के बीच उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांटने का प्रस्ताव पास किया था। जिसके तहत प्रदेश को अवध प्रदेश, बुंदेलखंड, पूर्वांचल और पश्चिम प्रदेश में बांटने की योजना थी। प्रदेश सरकार ने अग्रिम कार्रवाई के लिए प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेज दिया। 19 दिसंबर 2011 को केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने कई मुद्दों पर स्पष्टीकरण मांगते हुए राज्य सरकार को फिर यह प्रस्ताव वापस भेज दिया।
मुख्यमंत्री योगी भी सांसद रहते किए थे मांग
उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जब तक सांसद थे उनकी राजनीति का दायरा पूरी तरह से पूर्वांचल पर फोकस था। वह भी अलग राज्य की मांग कर चुके हैं। योगी ने राम जन्मभूमि का हवाला देते हुए पुण्यांचल राज्य की मांग की थी। 6 सितंबर 2013 को संसद में अलग पुण्यांचल राज्य बनाने की मांग को लेकर कहा था “नेपाल से सटे होने के नाते राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से इसकी संवेदनशीलता और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में विकास के हर पैमाने पर पिछड़ेपन के मद्देनजर इस क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा मिले। हालांकि मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने इस मुद्दे पर अभी तक कोई बयान नहीं दिया है।
मुद्दा पुराना, नहीं मिला बल
पूर्वांचल राज्य की मांग का मुद्दा काफी पुराना है। इसके बावजूद यह उत्तराखंड व अन्य राज्यों के बनने के पूर्व हुए आंदोलन जैसा रूप नहीं ले सका। गाहे-बगाहे यहां की समस्याओं को लेकर कुछ नेताओं द्वारा इसे मुद्दा बनाया जाता रहा है।
मुददा न बन पाने का कारण
प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा पूर्वांचल बोर्ड का गठन, गत दो वर्ष से बिजली की उपलब्धता में सुधार। फोरलेन सड़कों के निर्माण से खुले विकास के द्वार। शिक्षण संस्थानों, मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में वृद्धि। गोरखपुर खाद कारखाना व चीनी मिलें चालू कराने का प्रयास। वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के माध्यम से रोजगार व विकास का खाका। पर्यटन की संभावना वाले स्थलों के विकास का प्रयास। प्रदेश के बड़े राजनीतिक दलों द्वारा समर्थन नहीं। केवल चुनावों के समय उठने की वजह से जनता साथ नहीं। बड़े समाजवादी नेताओं का आंदोलनों से दूर होना।
समाजवादी विचारधारा के लोगों ने बनाया था मुद्दा
डा. लोहिया कहते थे कि सुधरो या टूटो। आज जब उत्तर प्रदेश सुधर नहीं पाया है इसलिए लगता है कुछ नया करने का वक्त आ गया है। यूपी का पुनर्गठन करो। साथ ही कुछ लोगों का मानना है कि छोटे राज्य में तेजी से विकास होता है, वे इसकी धूरी बनते हैं। इसी सोच के साथ वर्ष 1995 में समाजवादी विचारधारा के लोग गोरखपुर में इकट्ठा हुए और पूर्वांचल राज्य बनाओ मंच का गठन किया। इसमें प्रभु नारायण सिंह, हरिकेवल प्रसाद, श्यामधर मिश्र, शतरूद्र प्रकाश, मधुकर दिघे, मोहन सिंह, रामधारी शास्त्री और राजबली तिवारी आदि विशेष रूप से शामिल रहे। कल्पनाथ राय व पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भी इस मुद्दे को उठाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह व एचडी देवगौड़ा के समर्थन के बाद मांग को कुछ बल मिला था। लालू यादव ने सारनाथ में पूर्वांचल राज्य का मुख्यालय बनारस में बनाने की बात कही थी, लेकिन गोरखपुर में भी मुख्यालय बनाने की बात कहकर बयान की गंभीरता खत्म कर दी। सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने मई 2018 में आजमगढ़ कलेक्ट्रेट के समक्ष आयोजित सम्मेलन में इसकी मांग दोहराई थी।
फाइलों में दबी पटेल आयोग की रिपोर्ट
भारतीय जनता पार्टी छोटे राज्य की समर्थक तो रही है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से इस पर चर्चा नहीं कर रही है। वैसे मोदी ने 2016 में पूर्वांचल की एक सभा में विश्वनाथ प्रसाद गहमरी का उल्लेख करते हुए कहा था कि पटेल आयोग की रिपोर्ट लागू की जाएगी। उल्लेखनीय है कि नेहरू के सामने गहमरी द्वारा मुद्दा उठाने के बाद पटेल आयोग का गठन किया गया था, लेकिन उसकी संस्तुतियां फाइलों में आज भी दबी हैं।
- प्रस्तावित पूर्वांचल राज्य
- क्षेत्रफल-85844 वर्ग किलोमीटर
- जिलों की संख्या-27
- विधानसभा क्षेत्र-162
- लोकसभा क्षेत्र-32
- जनसंख्या-लगभग 12 करोड
शामिल प्रमुख जिले
इलाहाबाद (प्रयागराज), मऊ, कौशांबी, बलिया, आजमगढ़, गोंडा, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, देवरिया, कुशीनगर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर, संतकबीर नगर, प्रतापगढ़, सोनभद्र, मीरजापुर, वाराणसी, चंदौली, फैजाबाद (अयोध्या), अंबेडकर नगर, गोरखपुर और भदोही।
उत्तर प्रदेश का बंटवारा क्यों
उत्पादक होने के बावजूद बिजली की अनुपलब्धता, गोरखपुर खाद कारखाना बंद होना, कई चीनी मिलों की बंदी, बेरोजगारी से बड़े पैमाने पर पलायन, बाढ़ और सूखे से परेशानी, पर्यटन स्थलों का विकास न होना, आधी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे, मऊ, खलीलाबाद, गोरखपुर, आजमगढ़ का हैंडलूम उद्योग बदहाल, 1990 में क्षेत्रीय विकास निधि का गठन मात्र दिखावा।