देश के प्रायः सभी हिस्सों में मास्क न लगाने के दृश्य आम हैं। दो गज की दूरी भी नहीं है। क्या हम आपदाओं को आदतन बुलाते हैं। सामूहिक व्यवहार में यह असावधानी क्यों। क्या स्वानुशासन के बगैर, व्यवस्थित समाज, राज और व्यवस्था चल सकती है। ऐसा कर हम खतरों को दावत देते हैं।
- एस पांडेय
बलिया : राज्य सभा के उप सभापति व वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने कहा कि पहले दुनिया कोरोना की दूसरी लहर से स्तब्ध हुई, अब चुनौती भारत में है। देश के प्रायः सभी हिस्सों में मास्क न लगाने के दृश्य आम हैं। दो गज की दूरी भी नहीं है। क्या हम आपदाओं को आदतन बुलाते हैं। सामूहिक व्यवहार में यह असावधानी क्यों। क्या स्वानुशासन के बगैर, व्यवस्थित समाज, राज और व्यवस्था चल सकती है। ऐसा कर हम खतरों को दावत देते हैं। वह कोरोना महामारी के बीच सामान्य लापरवाही पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मुंबई से एक ट्रेन, एक राज्य की राजधानी पहुंचती है। स्टेशन पर इंतजाम था कोविड टेस्ट का। यात्री स्टेशन से पहले ही उतर गए। सरकार, पुलिस, प्रशासन, कानून आदि की एक सीमा है। आपदा के क्षणों में नागरिक फर्ज क्या हैं। निजी आचरण से दूसरों को खतरे में डालना। समाज का भी यही आचरण, स्वतंत्रता है। गांधी ने पहला आश्रम दक्षिण अफ्रीका में बनाया। आत्मानुशासन आश्रम की आचार संहिता में था। हर आंदोलन में स्वानुशासन उनकी कसौटी रहा। जेपी के बिहार आंदोलन में छात्रों ने अनुशासन की शर्त स्वीकारी। उसी मुल्क में आज इस संकट में स्वानुशासन कहां है।‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ के मुल्क में, खुद के आचरण से दूसरों के जीवन संकट में डाल रहे हैं। हमारे शास्त्रों में, कौटिल्य अर्थशास्त्र, इतिहास, सामाजिक व्यवस्था में स्वानुशासन बुनियाद में है। उन्होंने कहा कि भारतीय मौसम विभाग ने चेताया है, इस बार गर्मी बहुत पड़ने वाली है। मैने एक राज्य की खबर पढ़ी कि 10 करोड़ वर्ष पुरानी पर्वत श्रृंखला की 12 पहाड़ियां गायब हो गई है। 2015 में इसी राज्य के बारे में खबर आयी थी, 5 जिलों से 38 पहाड़ गायब हो गए। यह सब अवैध उत्खनन का परिणाम है। सृष्टि, हवा, पानी, धरती, आकाश गढ़ना, हमारे बूते से बाहर है। इसलिए हॉकिंस ने चेताया है, इसी रास्ते चले तो मानव जीवन के लिए दूसरे ग्रहों को तलाशना होगा। ऐसी चेतावनी हाल की विश्वप्रसिद्ध पुस्तकों में अनेक वैज्ञानिकों-विशेषज्ञों ने दी है। सभ्य समाज इस नींव पर टिका है कि संविधान, नियम-कानून, व्यवस्था का हम स्वतः पालन करें। अपने हित में, अपने कारण, अपनों के लिए। संकट में सहयोग आपदधर्म है। सभ्य समाज अपनी नैतिक ऊंचाई से मापा जाता है। यह निजी आचरण व सामाजिक आचार संहिता से तय होता है। भारत, राजा शिवि और दधीचि जैसे ऋषियों की परंपरा का देश है, जिन्होंने समाज कल्याण के लिए खुद का प्राणदान दिया। इसलिए हमें आपदा की घड़ी में एक-दूसरे का सहयोग कर, वैक्सीनेशन में सहयोग कर आपदधर्म निभाना चाहिए।