बलिया में भाजपा और सपा के उम्मीदवार के बीच सीधी टक्टर देखने को मिल रही है। भाजपा की ओर से सुप्रिया चौधरी हैं तो सपा के प्रत्याशी के रूप में कद्दावर नेता अंबिका चौधरी के बेटे आनंद चौधरी हैं। दोनों तरफ से तीर पर तीर चलाए जा रहे हैं। उसके काट भी किए जा रहे हैं। ऐसे में इस बार जो जिला पंचायत सदस्य बने हैं, एक तरह से धन कुबेर की ढ़ेर पर ही बैठे हैं।
बलिया : पंचायती राज का शीर्ष पद है जिला पंचायत अध्यक्ष का पद। यह पद लंबे समय से धन और बल के इर्द-गिर्द की सफर करता रहा। बलिया में भाजपा और सपा के उम्मीदवार के बीच सीधी टक्टर देखने को मिल रही है। भाजपा की ओर से सुप्रिया चौधरी हैं तो सपा के प्रत्याशी के रूप में कद्दावर नेता अंबिका चौधरी के बेटे आनंद चौधरी हैं। दोनों तरफ से तीर पर तीर चलाए जा रहे हैं। उसके काट भी किए जा रहे हैं।
ऐसे में इस बार जो जिला पंचायत सदस्य बने हैं, एक तरह से वे धन कुबेर के ढ़ेर पर ही बैठे हैं। खुद के चुनाव में जनता के बीच जाकर नैतिकता और विकास का वादा करने वाले सदस्यों की बोली गाय और घोड़ी की तरह लग रही है। राजनीति के खुले बाजार में क्या रेट चल रहा है, इसे पब्लिक तक जानती है। दोनों दलों की ओर से सभी दांव चल दिए गए हैं, तीन जुलाई को चुनाव है। गिनती भी इसी दिन हो जाएगी। इस चुनाव में क्रास वोटिंग का खतरा दोनों ही दलों को है। दोनों में कोई एक बलिया का 18वां अध्यक्ष बनेगा। कई माननीय मुंह के बल भी गिरेंगे, इसलिए कि बलिया की जंग रोचक स्टेज पर पहुंच चुकी है।
आजादी के बाद बलिया के जिला पंचायत अध्यक्ष
तारकेश्वर पांडेय 1947 से 1952, रामलखन तिवारी 1952 से 1957, शीतल सिंह 1958 से तीन माह, शीतल सिंह नवंबर 1960 से मार्च 1963, राम दहिन राय अप्रैल 1963 से जुलाई 1963, राम दहिन राय सितंबर 1963 से नवंबर 1963, जवाहिर सिंह नवंबर 1963 से मार्च 1970, शिवशंकर सिंह नवंबर 1974 से अगस्त 1977, शिवभूषण तिवारी नवंबर 1992 से जनवरी 1993, नंद जी यादव जून 1994 से मई 1995, नंदजी यादव मई 1995 से जनवरी 1997, श्याम बहादुर सिंह जनवरी 1997 से मई 1997, भुनेश्वर चौधरी जून 1997 से जून 2000, भारती सिंह अगस्त 2000 से अक्टूबर 2005, राज मंगल यादव जनवरी 2006 से जनवरी 2011, रामधीर सिंह जनवरी 2011 से जनवरी 2016, त्रिस्तरीय समिति राजमंगल, नागेंद्र व अजय अगस्त 2015 से जनवरी 2016, सुधीर पासवान जनवरी 2016 से जनवरी 2021 तक।
जिसकी रही सरकार निर्विरोध अध्यक्ष बनाने में उसी ने मारी बाजी
इस चुनाव से पहले 2016 में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हुए थे। तब अखिलेश यादव की सरकार थी। जबकि 2010 में जब चुनाव हुए थे तब मायावती की सरकार थी। दोनों ही सरकारों में ऐसा ही कुछ हुआ था। सपा व बसपा के प्रत्याशी बड़ी संख्या में निर्विरोध चुने गए थे। योगी आदित्यनाथ की सरकार में हो रहे जिला पंचायत अध्यक्ष के इस चुनाव को लेकर अखिलेश यादव और मायावती दोनों हमलावर हैं। इटावा को छोड़कर बाकी 22 सीटों पर भाजपा कैंडिडेट के निर्विरोध निर्वाचन को समाजवादी पार्टी जोर जबरदस्ती की जीत बता रही है लेकिन सच्चाई यह है कि जिसकी सरकार होती है उसका पड़ला हमेशा ही भारी रहता है।
अखिलेश सरकार में कितने जीते थे निर्विरोध
आइए एक नजर डालते हैं 2016 में हुए जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर, तब प्रदेश में अखिलेश यादव की सपा सरकार थी। 2016 के चुनाव में 74 में से 38 जिलों में जिला पंचायत के अध्यक्ष निर्विरोध चुनाव जीते थे। 75 वें जिले नोएडा में चुनाव नहीं हुआ था। जिन जिलों में निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव जीते थे वे जिले हैं-फैजाबाद, फिरोजाबाद, गोंडा, कानपुर देहात, कासगंज, भदोही, संत कबीर नगर, जालौन, बस्ती, अमरोहा, इटावा, बाराबंकी, श्रावस्ती, एटा, महोबा, देवरिया, कानपुर नगर, बलिया, गाजीपुर, सिद्धार्थ नगर, सहारनपुर, अमेठी, ललितपुर, मऊ, चित्रकूट, बदायूं, हरदोई, बागपत, हमीरपुर, झांसी, मैनपुरी, बहराइच, गाजियाबाद, लखनऊ, संभल, आजमगढ़, लखीमपुर खीरी और बुलंदशहर।
मायावती सरकार में 20 जीते थे निर्विरोध
साल 2010 में जब प्रदेश में बसपा की सरकार थी तब कितनी सीटों पर जिला पंचायत के अध्यक्ष निर्विरोध जीते थे। तब 72 में से 20 जिलों में जिला पंचायत के अध्यक्ष निर्विरोध चुनाव जीते थे। ये जिले हैं-मेरठ, नोएडा, बुलंदशहर, बिजनौर, अमरोहा, रामपुर, गाजियाबाद, कासगंज, महोबा, हमीरपुर, बांदा, कौशांबी, उन्नाव, लखनऊ, सीतापुर, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर, चंदौली और वाराणसी।
योगी सरकार में कितने जीते निर्विरोध
सपा और बसपा की सरकारों में जो कुछ हुआ, अब वही इतिहास बीजेपी की सरकार में भी दोहराया गया है। 75 जिलों में से 22 जिलों में इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध विजयी घोषित किए गए हैं। जिन जिलों में ऐसा हुआ है वे जिले हैं- मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा, बुलंदशहर, अमरोहा, मुरादाबाद, आगरा, इटावा, ललितपुर, झांसी, बांदा, चित्रकूट, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, शाहजहांपुर, गोरखपुर, मऊ, वाराणसी, पीलीभीत, सहारनपुर और बहराइच।