देश में 1992-93 में 73वां संविधान संशोधन द्वारा एक सुनियोजित पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया गया। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 1995 में एक विकेन्द्रीकरण एवं प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन किया गया था, जिसके द्वारा 1997 में की गई संस्तुतियों के बाद 32 विभागों के कार्य चिह्नित कर पंचायती राज संस्थाओं को हस्तांतरित करने की सिफारिश की गई। उसके बाद ही त्रस्तरीय पंचायती राज्य व्यवस्था में गांव की सरकार को विकास के लिए बहुत से अधिकार प्राप्त हुए।
बलिया : जिला पंचायतों का काम है कि वो जिलों के विकास की रूपरेखा तैयार करे। अध्यक्ष के जिम्मे पंचायतों की सड़क, सफाई, स्वास्थ्य, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं को जुटाने तथा उनके विकास की रूपरेखा तैयार करने की जिम्मेदारी होती है। वर्तमान में जिला पंचायत अध्यक्ष को केंद्र और राज्य सरकार के मद से प्रतिवर्ष करीब 10 करोड़ का बजट मिलता है। जिला पंचायतें टैक्स के माध्यम से भी फंड उगाही कर सकती हैं, जैसे-कर वसूलना, बाजार परिचालन से वसूली व मकानों का नक्शा पास करके वसूली आदि।
सचिव के जिम्मे बड़ी जिम्मेदारी
सचिव जिला पंचायत का प्रमुख अधिकारी होता है। वह जिला पंचायत की मांग पर सरकार द्धारा नियुक्त किया जाता है। सचिव जिला पंचायत का बजट तैयार करता है तथा उसे ज़िला पंचायत के सम्मुख प्रस्तुत करता है। वह जिला पंचायत की ओर से सरकारी अनुदान तथा धन प्राप्त करता है। उसके द्धारा जिला पंचायत के आय-व्यय की अदायगी की जाती है। इसमें मुख्य कार्यपालिका अधिकारी सरकार द्धारा भारतीय प्रशासनिक सेवा के उच्च टाइम स्केल अधिकारियों में से नियुक्त किया जाता है।
जिला पंचायत की समितियां
कार्यकारी समिति, नियोजन एवं वित्त समिति, उद्योग एवं निर्माण कार्य समिति, शिक्षा समिति, स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति, जल प्रबंधन समिति आदि।