सूबे में सियासी हलचल चरम पर है। कोई भी दल अपने को चुनावी रेस से बाहर नहीं दिखाना चाहता। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा तो अपने चुनावी समर की तैयारियों में जी जान से लगी ही हैं, लेकिन इन बड़ी पार्टियों के बीच छोटे छोटे दलों के हौसले भी बुलंद हैं और वो इसलिए क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में छोटे छोटे दलों को बड़े दलों के साथ गठबंधन में मिली सफलता के बाद उत्तर प्रदेश के भी छोटे दल यह मान रहे हैं कि सरकार बनाने बिगाड़ने में उनकी अहम भूमिका हाे सकती है।
लखनऊ : इन दिनों उत्तर प्रदेश की सियासी फिजा बदलने लगी है। बदलना स्वाभाविक है, 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव होने हैं तो लाजिमी है ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में सभी राजनैतिक दल कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते, तो कहीं कोई पार्टी गठबंधन की ओर इशारा कर रही है तो कोई पार्टी अपने पुराने चुनावी फैक्टर को नए समीकरण में बदलने की कवायद में जुट गई है, कोई सदस्यता अभियान को सफल बनाने की जद्दोजहद में है तो कहीं नए स्लोगन के बल पर एक नई तस्वीर पेश करने की कोशिश जारी है। कुल मिलाकर सूबे में सियासी हलचल चरम पर है। कोई भी दल अपने को चुनावी रेस से बाहर नहीं दिखाना चाहता। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा तो अपने चुनावी समर की तैयारियों में जी जान से लगी ही हैं, लेकिन इन बड़ी पार्टियों के बीच छोटे छोटे दलों के हौसले भी बुलंद हैं और वो इसलिए क्योंकि बिहार विधानसभा चुनाव में छोटे छोटे दलों को बड़े दलों के साथ गठबंधन में मिली सफलता के बाद उत्तर प्रदेश के भी छोटे दल यह मान रहे हैं कि सरकार बनाने बिगाड़ने में उनकी अहम भूमिका हाे सकती है। यह काफी हद तक सही भी है क्योंकि हाल में हुए उप चुनावों में वोटों के बिखराव के चलते जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी को एकतरफा बढ़त मिली उसने बड़े राजनीतिक दलों को यह जता दिया कि छोटे दलों को लेकर चलना उनके हित में ही एक बेहतर विकल्प है और छोटे दलों को किसी भी कीमत पर दरकिनार नहीं किया जा सकता।
तरकश का हर तीर आजमाती भाजपा
यूं तो बीजेपी ने आगामी विधानसभा चुनाव की तैयारियों की शुरुआत बीते मार्च महीने से ही कर दी थी, जब अपने शासन के 4 साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “सुशासन के चार वर्ष नामक बुकलेट को जारी करते हुए पूरे प्रदेश वासियों को यह जताने और बताने की कोशिश की कि बीते चार दशकों में जो ना हो पाया उनकी सरकार ने महज 4 वर्षों में कर दिखाया। फिलहाल प्रधानमंत्री जी का भी पूरा फोकस उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर है तो वहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने तो मिशन 2022 की रूपरेखा भी तैयार कर ली है। हाल ही में आरएसएस और भारतीय जनता पार्टी के बीच मैराथन बैठक हुई जिसमें मिशन-2022 की रूपरेखा खींची गई। बैठक में फैसला लिया गया कि स्वयंसेवकों के साथ ही पार्टी के कार्यकर्ता भी जन कल्याणकारी कामों में उतरेंगे। इसके अलावा धर्मांतरण और जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दों के साथ योगी सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों और युवाओं को रोजगार देने के काम को प्राथमिकता के आधार को आगे कर चुनावी जंग में उतरने का फैसला लिया गया। बैठक में चुनावों में विपक्ष के हमलों से कैसे निपटा जाए और कैसे सरकार के कल्याणकारी कामों को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए, इस पर फोकस किया गया। साथ ही संघ के संगठनों को कैसे चुनाव में जुटाया जाए इस पर भी रणनीति बनी। बैठक में सहमति बनी कि चुनाव प्रचार के दौरान लोगों को बताया जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी अन्य दलों से कैसे अलग है। कैसे जीरो टालरेंस की नीति से प्रदेश के लाखों-करोड़ों युवाओं को भर्ती में पारदर्शिता का लाभ मिला। इसी के साथ पार्टी के मुताबिक भाई-भतीजा वाद के सियासी तीर से विपक्ष को घेरा जाएगा। साथ ही प्रदेश की कानून-व्यवस्था के लाभकारी पहलुओं पर भी प्रचार के दौरान ध्यान केंद्रित किया जाएगा। बैठक में धर्मांतरण कानून पर की गई कार्रवाई के साथ ही जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पार्टी की प्रतिबद्धता पर भी मंथन हुआ। बैठक में तय किया गया है कि कोरोना की तीसरी लहर के मद्देनज़र बूथ स्तर के कार्यकर्ताओं को भी लगाया जाएगा। संगठन की ओर से सेवा कार्यक्रम दिए जाएंगे। तय किया गया है कि संगठन के साथ ही संघ के स्वंयसेवक भी पहले की तरह कोरोना नियंत्रण के काम में लगाए जाएंगे। इसके लिए सभी प्रकोष्ठों के साथ ही बूथ इकाइयों को सक्रिय किया जाएगा।
सपा ने दिए छोटे दलों से गठबन्धन करने के साफ संकेत
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने साफ संकेत देते हुए कहा कि उनकी पार्टी अब छोटे दलों से ही गठबंधन कर चुनाव लड़ेगी। अखिलेश ने समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से भी गठबंधन करने की बात कही तो वहीं चाचा ने भी अपनी ओर से सकारात्मक जवाब देकर भतीजे के साथ गठबन्धन करने का संकेत दे दिया है। इस बार अखिलेश पिछले विधानसभा चुनाव की गलती दोहराना नहीं चाहते। पिछले विधानसभा चुनाव में देखा गया कि अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ समझौता कर चुनाव मैदान में उतरे थे और अपनी सत्ता गवां दी थी। इसके बाद 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा, लेकिन सपा को बहुत लाभ नहीं मिला। सपा सिर्फ पांच सीटों पर ही रह गई लेकिन बहुजन समाज पार्टी को 10 सीटें जरूर मिल गईं। समाजवादी पार्टी ने पिछले उप चुनावों में राष्ट्रीय लोकदल के लिए एक सीट छोड़ी थी और यह संकेत हैं कि आगे भी वह रालोद से तालमेल कर सकती है। इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में असर रखने वाले ‘महान दल’ के नेता केशव देव, अखिलेश यादव के साथ दिख रहे हैं।
अब MY नहीं MYD फैक्टर पर काम करेगी सपा
MY यानी मुस्लिम-यादव फैक्टर पर काम करने वाली सपा अब MYD फैक्टर बनाने में जुट गई है। इसमें मुस्लिम और यादव के साथ-साथ दलितों को भी शामिल किया जाएगा। जैसा कि हम सब जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक हमेशा से बड़ा चेहरा रहा है और यही वजह है कि दलितों को साधने की कोशिशें तेज हो गई हैं। अब तक समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव यानी MY फैक्टर पर काम करती थी, लेकिन अब उसने दलित फैक्टर पर भी काम करना शुरू कर दिया है और इसे नाम दिया गया है MYD यानी मुस्लिम, यादव और दलित। दलितों को साधने के लिए समाजवादी पार्टी लोहिया वाहिनी की ही तर्ज पर ‘बाबा साहब वाहिनी’ का गठन कर रही है जिसका खाका काफी हद तक तैयार किया जा चुका है। इस वाहिनी के नेतृत्व की बागडोर सपा किसी दलित नेता के ही हाथों में सौंपना चाहती है।
बोल रही सपा-खेला होई…
सपा इस चुनाव में एक नए नारे के साथ उतरेगी और वह है…खेला होई…पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में चर्चित स्लोगन ‘खेला होबे’ की तर्ज पर अब यूपी विस चुनाव में भी ‘खेला होई’ सुनाई देगा। पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र के विधायक अब्दुल समद अंसारी ने अपने पूरे मकान पर ‘खेला होबे’ नारे के भोजपुरी वर्जन ‘खेला होई’ की पेंटिंग से भर दिया है। उन्होंने अखिलेश यादव से मांग भी की है कि सभी समाजवादी नेताओं के लिए इस स्लोगन के सम्बंध में गाइडलाइन जारी कर दी जाये।
गठबन्धन के विकल्प खोलकर चल रही कांग्रेस
उत्तर प्रदेश में अपनी खिसक चुकी जमीन को दोबारा हासिल करने के लिए कांग्रेस ने भी नए फार्मूले और नए समीकरणों पर काम करना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों लखनऊ पहुंची कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने यह साफ संकेत दिया कि उनकी पार्टी को अन्य राजनीतिक दलों के साथ गठजोड़ करने में कोई परहेज नहीं। वे कहती हैं आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का लक्ष्य भाजपा को हराना है तो इसके लिए भाजपा के ख़िलाफ़ वोटों के बंटवारे को रोकने के लिए दूसरे राजनैतिक दलों से गठबन्धन के लिए कांग्रेस के विकल्प खुले हैं। हालांकि प्रियंका ने कांग्रेस की कमजोरी को स्वीकारते हुए साफ कहा कि आज पार्टी के पास बूथ स्तरीय कार्यकर्ताओं का अभाव है इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती संगठन को मजबूत करने की है।
सांगठनिक ढांचे को दुरुस्त करने में जुटी कांग्रेस
अपने सांगठनिक ढांचे को निचले स्तर तक दुरुस्त करने में जुटी कांग्रेस विभिन्न जिलों में कार्यशाला आयोजित कर रही है, जिनमें कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित भी किया जा रहा है। यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू के मुताबिक कांग्रेस का सेवादल भारतीय उपनिषदों के सूत्र वाक्य ‘सेवाहिपरमोधर्मः’ को अंगीकार करने वाला है। यह गांधी-नेहरू के त्याग, समर्पण और निष्ठा के संदेश को जन जन तक पहुंचाने एवं जनता के हर संकट में साथ खड़े होने वाला ऐतिहासिक संगठन है। आज जब भाजपा और आरएसएस जनता को हर तरह के संकट में झोंककर केवल झूठ बोलकर बरगला रही हैं, कांग्रेस पूर्व समर्पण से लोगों की मदद कर रही है। जुलाई में यूपी के सभी 75 जिलों में सेवादल के पदाधिकारी ब्लॉक स्तर तक पहुंचकर और गांव-गांव कस्बों तक जाकर जनता से संवाद करेंगे। आगामी विधानसभा चुनाव में भी सेवादल के कर्मठ एवं जुझारू साथियों को टिकट वितरण में भागीदारी सुनिश्चित की जायेगी। पार्टी के मुताबिक न्याय पंचायत स्तर तक कांग्रेस का सांगठनिक ढांचा तैयार हो चुका है तो वहीं एक से डेढ़ महीने के भीतर पार्टी संगठन को ग्राम पंचायत स्तर तक पहुंचाने की कोशिशें भी जारी है। कुल मिलाकर कांग्रेस यह समझ चुकी है कि जब तक एकदम निचले स्तर तक संगठन को मजबूती नहीं मिलेगी तब तक ऊपरी स्तर पर संगठन को मजबूत करने से कोई फायदा नहीं। अपने इस मिशन के तहत कांग्रेस बूथ कमेटियों का गठन पंचायत कमेटियों के साथ ही करेगी। पार्टी के मुताबिक अभी तक 75 जिलों में जिला कमेटी और 840 ब्लाकों में ब्लाक कमेटी गठित हो चुकी है।
14 साल पुराना फार्मूला दोहराने की तैयारी में बसपा
हाथी नहीं गणेश है..ब्रह्मा विष्णु महेश है, याद है न आपको बहुजन समाज पार्टी का यह नारा जो 14 साल पहले दिया गया था। अब 14 साल बाद बसपा इस नारे को फिर दोहराने जा रही है यानी दलित-ब्राह्मण गठजोड़ को पुनः प्रमुखता देते हुए बसपा अपना चुनावी आगाज़ करने की तैयारी में है और यह आगाज़ होगा ब्राह्मण सम्मेलन करते हुए रामनगरी अयोध्या से , जिसकी तारीख़ भी 23 जुलाई तय कर दी गई है। बसपा हर जिले में ब्राह्मण सम्मेलन करने की तैयारी में जुट गई है जिसकी बागडोर पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा को सौंपी गई है। अपने 2007 के फार्मूले को दोहराते हुए बसपा इन सम्मेलनों के जरिए ज्यादा से ज्यादा ब्राह्मणों को पार्टी में जोड़ने की मुहिम चलाएगी। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मायावती अबकी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर अपनी चुनावी रणनीति को आगे बढ़ाने के पूरे मूड में हैं। इसको लेकर बसपा प्रमुख की तरफ से पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश भी दिए गए हैं। 2022 का चुनावी समर जीतने के लिए जाति समीकरण का फार्मूला तैयार कर दिया गया है, जिसके आधार पर बसपा अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए बसपा ने जिला कोआर्डिनेटरों के बदले मुख्य सेक्टर प्रभारी बनाएं हैं। सेक्टर प्रभारी के जरिए ही मायावती 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों का चयन करेंगी। इसी आधार पर बसपा विधायकी का टिकट बांटेगी।
कास्ट फार्मूले के तहत ओबीसी को प्राथमिकता
उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत से ज्यादा ओबीसी मतदाता हैं जो सूबे की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका रखते हैं, बस इसी दमदार भूमिका के मद्देनजर बसपा ने इस बार विधानसभा चुनावों के लिए कास्ट फार्मूला तैयार करते हुए ओबीसी को प्राथमिकता देने का मन बना लिया है। इस रणनीति के मुताबिक प्रदेश के हर जिले में एक से दो ओबीसी उम्मीदवारों को टिकट दिया जा सकता है। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, इस बार बसपा सामान्य जाति में सबसे ज्यादा ब्राह्मण को तवज्जो देगी। इसके बाद उसने अपने आधार वोटबैंक दलित और मुस्लिम को टिकट देने की रणनीति बनाई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं को दिशा निर्देश दिए हैं कि मुख्य रूप से ब्राम्हण, ओबीसी और दलितों के अलावा प्रमुखता से अल्पसंख्यकों के साथ अपने कामकाज किये जाएं।
यूपी जोड़ो अभियान के जरिए उतरी आप पार्टी
यूपी में आम आदमी पार्टी का “यूपी जोड़ो अभियान” जोरों पर है। इसके तहत एक महीने में एक करोड़ सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। यह अभियान आठ जुलाई से शुरू हुआ जो आठ अगस्त तक चलेगा। आप के यूपी प्रभारी संजय सिंह के मुताबिक अगस्त से हर विधानसभा क्षेत्र में 25 हजार सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। सदस्यता पूरी तरह से निशुल्क होगी। संजय सिंह ने बताया कि 403 विधानसभा क्षेत्रों के लिए अलग-अलग मिस्ड कॉल नंबर जारी किये जाएंगे। इन्हीं सदस्यों को बूथ स्तर से लेकर विधानसभा तक की जिम्मेदारी दी जाएगी। अपनी चुनावी तैयारियों में आप भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती इसी के मद्देनजर पिछले दिनों आप ने उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर रोजगार गारंटी यात्रा की। आप की यह यात्रा एक जुलाई से संगम नगरी प्रयागराज से शुरू हुई और यात्रा का समापन 10 जुलाई को राजधानी लखनऊ में हुआ। इस दौरान बेरोजगारी को लेकर आम आदमी पार्टी ने प्रदेश की योगी सरकार पर जमकर निशाना साधा। बड़े दलों के अलावा छोटे राजनैतिक दलों ने भी चुनावी दंगल के लिए कमर कस ली है। इसमें दो राय नहीं कि किसी भी बड़े दल की राजनैतिक समीकरण बिगाड़ने में छोटे दलों को उत्तर प्रदेश में बड़ी महारत हासिल है। तो इस बात को हर पार्टी भली भांति जानती है इसलिए सभी राजनीतिक पार्टियां छोटे दलों के संपर्क में बनी हुई हैं और उन्हें अपनी ओर आकर्षित कर नए गठबंधन की तैयारियां कर रही हैं। दरअसल उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में हुए चुनावों पर अगर नजर डालें तो यूपी की राजनीति में छोटे दलों का काफी असर रहा है इन दलों ने बड़ी-बड़ी पार्टियों के राजनीतिक समीकरण तक बिगाड़ दिए हैं। जिसको लेकर कोई भी पार्टी उत्तर प्रदेश के अंदर होने वाले 2022 विधानसभा चुनाव को लेकर खतरा मोल नहीं लेना चाहती है।
(सरोजिनी बिष्ट, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)