बलिया : जिले के द्वाबा की धरती शुभनथहीं गांव से निकलकर राजनीति जगत में शीर्ष तक पहुंचने वाले पंडित जनेश्वर मिश्र छोटे लोहिया के नाम से चर्चित हुए। वे अपने जीवनकाल में गरीब, किसान की लड़ाई भी लड़ते रहे। जेल की कई यात्राओं और यातनाओं को झेलते हुए धन की जगह कार्यकर्ताओं को पूंजी और पूज्य मानते थे। पांच अगस्त 1933 को जन्में जनेश्वर मिश्र शुरू से ही क्रांतिकारी विचार के व्यक्ति थे। पढ़ाई के समय से ही उनके अंदर राजनेता का स्वभाव था। बलिया से इलाहाबाद पढ़ने गए। यहां वह छात्र राजनीति में कूद पड़े और आंदोलनों का हिस्सा बनने लगे। वह छात्रसंघ के कई पदों पर रहते हुए युवाओं के बड़े लीडर बनकर उभरे। 1967 के लोकसभा चुनाव के दौरान वह आंदोलनों के जरिए लोकप्रिय हो गए। पुलिस ने उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव में उतरने का ऐलान कर दिया। इस सीट से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन और स्वतंत्रता सेनानी विजय लक्ष्मी पंडित चुनाव लड़ रही थीं। तत्कालीन सरकार पर दबाव बनाकर उन्हें जेल में बंद करा दिया गया। आचार संहिता लगने के बाद और चुनाव से मात्र सात दिन पहले ही रिहा किया गया। आखिरकार, चुनाव नतीजों में जनेश्वर मिश्र को नजदीकी अंतर से हार का सामना करना पड़ा। फिर जीतते गए 1967 के लोकसभा चुनाव में जेल में बंद रहने के कारण जनेश्वर मिश्र को जनता की खूब सहानुभूति मिली और बड़े नेताओं में गिने जाने लगे। लोग उन्हें छोटे लोहिया के नाम से पुकारने लगे। फूलपुर सीट पर 1969 में हुए उपचुनाव में जनेश्वर मिश्र फिर से खड़े हुए और इस बार वह चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। इसके बाद फूलपुर संसदीय सीट से वह 1972 और 1974 में दो बार सांसद चुने गए।
प्रयागराज में बन चुके थे बड़े नेता
प्रयागराज में जनेश्वर मिश्र बड़े नेता बन चुके थे। 1978 के लोकसभा चुनाव में दिग्गज नेता विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रयागराज सीट से चुनाव लड़े तो उन्हें हराने के लिए जनेश्वर को जनता पार्टी ने टिकट थमा दिया। इनकी लोकप्रियता विश्वनाथ प्रताप सिंह पर भारी पड़ गई और जनेश्वर यहां से विजेता बने। समाजवादी पार्टी का मुख्य चेहरा बन चुके जनेश्वर मिश्र विभिन्न मंत्रालयों में केंद्रीय मंत्री बने और 1992 से 2010 तक लगातार राज्यसभा सांसद रहे। जनेश्वर मिश्र का 22 जनवरी 2010 को निधन हो गया।