बलिया : फिरंगियों के खिलाफ 12 अगस्त को लालगंज और 13 अगस्त को दोकटी में ऐलान हुआ कि 14 अगस्त को बैरिया थाने पर कब्जा किया जाएगा। 14 अगस्त को क्षेत्र नायक के नेतृत्व में बजरंग आश्रम बहुआरा पर 300 लोग इकट्ठा हुए और झंडाभिवादन कर शपथ ली कि हम बैरिया थाने पर कब्जा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे।
बहुआरा गांव के निवासी भूप नारायण सिंह को कमांडर नियुक्त किया। इसी गांव के रामजन्म पांडेय की अगुआई में क्रांतिकारी थाने की ओर चल दिए। थाने पर पहुंचकर कमांडर भूपनारायण सिंह और उनके कुछ साथी अंदर गए। उस समय के थानाध्यक्ष काजिम हुसैन से थाना छोड़ कर जाने को कहा। थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने उस समय तो अधीनता स्वीकार कर ली, लेकिन क्रांतिकारियों के जाने के बाद पुन: तिरंगा हटा दिया। इसका बदला चुकाने की तारीख 17 अगस्त तय हुई।
पत्थरबाजी से किया गोलियों का सामना
सरकारी गजटियर के मुताबिक 17 अगस्त को दोपहर होते-होते बैरिया में लगभग 25 हजार से अधिक लोग पहुंच चुके थे। कमांडर भूपनारायण सिंह भीड़ को सड़क पर रोककर थाने के गेट पर पहुंचे, लेकिन गेट बंद था। इसी बीच कुछ लोग थाने में बगल से घुस गए और थाने के घोड़े को खोलकर अस्तबल ध्वस्त कर दिया। इसके बाद भीड़ थाने में घुस गई। यह देख पुलिस ने गोलियां चलाई तो क्रांतिकारियों ने पथराव शुरू कर दिया। गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच कौशल कुमार ने छलांग लगाकर थाने की छत पर पहुंच गए और तिरंगा फहरा दिया, लेकिन पुलिस की गोली से वह शहीद हो गए। शाम तक चले इस संघर्ष में कुल 20 लोग शहीद हुए। इस स्थान पर 18 अगस्त 1952 को शहीदों की स्मृति को जिंदा रखने के लिए स्मारक बनाया गया। शहीदों की याद में हर साल 18 अगस्त को यहां बड़ा उत्सव मनाया जाता है।
अमर शहीदों के नाम
निर्भय कुमार सिंह, देवबसन कोइरी, नरसिंह राय, रामजनम गोंड, रामप्रसाद उपाध्याय, मैनेजर सिंह, कौशल कुमार सिंह, रामदेव कुम्हार, रामबृक्ष राय, रामनगीना सोनार, छठू कमकर, देवकी सोनार, धर्मदेव मिश्र, श्रीराम तिवारी, मुक्तिनाथ तिवारी, विक्रम सोनार, भीम अहीर, गदाधर नाथ पांडेय, गौरीशंकर राय, रामरेखा शर्मा।