बलिया को बागी बलिया यूं ही नहीं कहा गया। 1857 में बलिया के मंगल पांडेय ने क्रांति का जो बीज बोया था, उसी का विराट स्वरूप 1942 की अगस्त क्रांति थी। आजादी की जंग में देश में बलिया पहला जिला था जो पांच साल पहले ही कुछ दिनों के लिए आजाद हो गया था। पूरे जिले के कुल 84 लोगों ने शहादत देकर फिरंगियों को अपनी ताकत का एहसास कराया। क्रांतिकारियों की रिहाई के लिए जिला कारागार पर 50 हजार की भीड़ करो या मरो नारे के साथ उमड़ पड़ी थी।
बलिया : महात्मा गांधी के नौ अगस्त को मुंबई अधिवेशन में करो या मरो के शंखनाद के बाद पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया था। उस कड़ी में बलिया एक के बाद एक थाना व तहसीलों पर क्रांतिकारी कब्जा जमाना शुरू कर दिए। क्रांतिकारियों का नेतृत्व करने वाले चित्तू पांडेय सहित अन्य नेताओं को जिला कारागार में बंद कर दिया गया था। बैरिया में 20 लोग शहीद हो गए थे। सिकंदरपुर में ब्रिटिश थानेदार ने बच्चों के जूलूस पर घोड़ा दौड़ा दिया था। जिससे दर्जनों बच्चों के हाथ पैर कुचल कर टूट गए थे। सुखपुरा, बांसडीह, चौरवां, रसड़ा, नरहीं, चितबड़ागांव आदि स्थानों पर भारत माता के सपूतों पर गोलियां बरसाई गई। इससे खफा पूरे जनपद के लोगों ने 19 अगस्त बलिया जिलाकार पर हमला करने का मन बना लिया।
सड़कों पर हर तरफ भीड़ नजर आ रही थी। हाथों में हल, मूसल, कुदाल, फावड़ा, हसुआ, गुलेल, मेटा में सांप व बिच्छू भरकर लोग आए थे। यह हुजूम देखकर तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश्वर निगम व एसपी रियाजुद्दीन ने मंशा भांप लिया और चित्तू पांडेय संग राधामोहन सिंह व विश्वनाथ चौबे को तत्काल जेल से रिहा कर दिया। चित्तू पांडेय के नेतृत्व में लोगों ने कलेक्ट्रेट सहित सभी सरकारी कार्यालयों पर तिरंगा झंडा फहराया और शाम करीब छह बजे टाउन हाल में सभा कर बलिया को आजाद राष्ट्र घोषित करते हुए देश में सबसे पहले ब्रिटिश सरकार के समानांतर स्वतंत्र बलिया प्रजातंत्र की सरकार का गठन किया। चित्तू पांडेय को शासनाध्यक्ष नियुक्त किया गया।
क्रांतिकारियों ने बहादुरी का लोहा मनवाया
बलिया के चित्तू पांडेय ने 22 अगस्त 1942 तक यहां सरकार चलाई, लेकिन 23 अगस्त की रात ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल हैलट ने वाराणसी के कमिश्नर नेदर सोल को बलिया का प्रभारी जिलाधिकारी बनाकर भेज दिया। नेदर सोल अपने साथ बलूच फौज के साथ बलिया पहुंचकर अंधाधुंध गोलियां चलवाते हुए एक-एक कर थाना, तहसील व सरकारी कार्यालयों पर पुन: कब्जा जमा लिया। इस दौरान कौशल कुमार सिंह, चंडीप्रसाद, गौरीशंकर, मकतुलिया देवी सहित कुल 84 लोग शहीद हो गए। चित्तू पांडेय, महानंद मिश्र, राधामोहन सिंह जगन्नाथ सिंह, रामानंद पांडेय, राजेश्वर त्रिपाठी, उमाशंकर, विश्वनाथ मर्दाना, विश्वनाथ चौबे आदि को जेल में डाल दिया गया। गांव-गांव अत्याचारों का तांडव शुरू हुआ जो 1944 तक जारी रहा। इसके बावजूद बलिया के वीरों ने अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया।