प्रदेश सरकार ने बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के विकास के लिए 92.39 करोड़ रुपये स्वीकृत किया है। इससे विश्वविद्यालय में भवन का निर्माण हो रहा है। यह विश्वविद्यालय बसंतपुर शहीद स्मारक परिसर में 22 दिसंबर 2016 को स्थापित हुआ था। शिक्षा के क्षेत्र में यह विश्वविद्यालय आज नया आयाम गढ़ रहा है।
प्रो. कल्पलता पांडेय
बलिया : वीर प्रसूता एवं आध्यात्मिक चेतना से ओत-प्रोत एवं दर्दर ऋषि के चरण रज से अभिसिंचित बलिया शिक्षा की दृष्टि से भी समृद्ध होने की दशा में अग्रसर है। ऑकड़ों की दृष्टि से यदि आकलन किया जाए तो उत्तर प्रदेश की औसत साक्षरता प्रतिशत से बलिया का साक्षरता प्रतिशत अधिक है। यहां साक्षरता प्रतिशत 73.94 प्रतिशत है। यहीं पर प्राथमिक विद्यालयों की संख्या लगभग 2670, माध्यमिक विद्यालयों की संख्या लगभग 650 एवं महाविद्यालयों की संख्या 128 है। इसके अंतर्गत 01 राजकीय महाविद्यालय, 10 अनुदानित महाविद्यालय एवं 110 स्ववित्तपोषित महाविद्यालय है। ये रामरत महाविद्यालय जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है।
इसके अतिरिक्त एक राजकीय महाविद्यालय संघटक महाविद्यालय के रूप में बैरिया के सोनबरसा में स्थित है जो अगले सत्र से कार्य करने लगेगा। सत्र 2020-21 में विश्वविद्यालय में 90871 विद्यार्थी स्नातक स्तर पर तथा 13062 विद्यार्थी स्नातकोत्तर एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में अध्ययनरत थे। इस प्रकार 103933 विद्यार्थियों में पिछले सत्र में शिक्षा प्राप्त की है। यहां यह बताना अत्यन्त आवश्यक है कि विश्वविद्यालय की स्थापना 22 दिसम्बर 2016 को हुई।
विश्वविद्यालय की दृष्टि निम्नवत है
जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय का लक्ष्य सौहार्द और ऐक्यभाव के साथ देश में उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बनना, ज्ञान का सृजन, सामाजिक परिवर्तन और राष्ट्र की सेवा करना है। गंगा घाटी में स्थित यह विश्वविद्यालय नदी आधारित कृषि अर्थव्यवस्था व समाज से जुड़े अध्ययनों जो बढ़ावा देगा जिसमें भारतीय प्रवासियों एवं प्रवासन से जुड़े मुद्दे भी शामिल है।
विश्वविद्यालय के उद्देश्य
छात्रों को अधिगम, शोध और प्रशिक्षण से जुडी उत्कृष्ट सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए उच्च शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र बनना। समाज में परिवर्तन लाने की क्षमता रखने वाले छात्रों को प्रशिक्षित करना। ऐसे अंतर सांस्कृतिक, बहु-सांस्कृतिक एवं बहु-क्षेत्रीय शोध एवं अध्ययन को बढ़ावा देना, जो देश के बड़े भूभाग को आच्छादित करें। शिक्षण, शोध एवं मूल्य निर्माण में उत्कृष्टता के भाव को अपनाकर ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार करना जो सभी व्यक्तियों के उत्तरोत्तर विकास को समृद्ध करे। ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देना जो बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा, वैश्वीकरण और बहुसांस्कृतिक विश्व की चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हो।
कृषि व वाणिज्य पाठयक्रमों को वरीयता
दृष्टि एवं उद्देश्य के अनुरूप विश्वविद्यालय में कृषि एवं वाणिज्य आधारित पाठ्यक्रमों को वरीयता प्रदान की गई है। पांच वर्ष से भी कम अवधि में विश्वविद्यालय एवं इससे संबद्ध महाविद्यालयों में स्नातक स्तर पर बीएससी, बीएससी (कृषि), बीकाम, बीए, बीसीए, बीएएस आयुर्वेद, स्नातकोत्तर स्तर पर विज्ञान, कृषि विज्ञान जीवविज्ञान, कला, मानविकी आदि पाठ्यक्रम तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम के अंतर्गत एमएड, बीएड, वीपीएड, त्रिवर्षीय एलएसपी आदि पाठ्यक्रम में अध्ययन की सुविधा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय परिसर में इस सत्र से पांच पीजी डिप्लोमा भी आरम्भ गये हैं। इस प्रकार विश्वविद्यालय में छह स्नातकोत्तर एक वर्षीय डिप्लोमा के अंतर्गत कम्प्यूटर एप्लिकेशन, पर्ल कल्चर, पर्यावरण एवं आतिथ्य प्रबंधन, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, पत्रकारिता एवं जन सम्प्रेषण पाठ्यक्रमों में प्रवेश प्रारम्भ है।
समुदाय एवं समाज की सेवा में लगी हैं कई इकाइयां
किसी भी विश्वविद्यालय का तीन प्रमुख कार्य होता है-शिक्षण, एवं समुदाय से जुड़ना। विश्वविद्यालय यह तीनों कार्य करने की दिशा में तीव्रता से अग्रसर है। विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों में 2000 से अधिक अध्यापक अनुदानित, स्ववित्तपोषित एक अतिथि अध्यापक के रूप में कार्यरत हैं। शोध में पर्यवेक्षक आवंटन का कार्य अक्टूबर 2021 तक पूरा कर लिया जाएगा। इस प्रकार लगभग 120 विद्यार्थी विभिन्न विषयों में विश्वविद्यालय में शोधकार्य हेतु पंजीकृत हो जाएंगे। जहां तक समुदाय से जुड़ने का प्रश्न है तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप के विश्वविद्यालय राष्ट्रीय सेवा योजना, एनसीसी, रोवर्स रेन्जर्स, महिला अध्ययन केन्द्र, ग्रामीण विकास एवं प्रशिक्षण केन्द्र एवं समाजकार्य द्वारा समुदाय से जुड़ गया है। विश्वविद्यालय एवं संबद्ध महाविद्यालयों द्वारा अपने क्षेत्र में स्थित एक या एक से अधिक गांवों को गोद भी लिया गया है। जिसके माध्यम से विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयां सक्रियता से समुदाय एवं समाज की सेवा में लगी हुई है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय में दो शोधपीठों यथा पं. दीनदयाल उपाध्याय शोधपीठ एवं जननायक चन्द्रशेखर शोध संस्थान सक्रियता से कार्य कर रहे हैं। जिसमें जननायक चन्द्रशेखर शोध संस्थान में भोजपुरी भाषा के उन्नयन हेतु शोध आदि कार्य भी करने की व्यवस्था है। विश्वविद्यालय को राज्य सरकार द्वारा शिक्षक शिक्षा के अंतर्गत कौशलों के पुनर्नवीकरण के लिए उत्कृष्टता केन्द्र भी प्रदान किया गया है। जिसके द्वारा 75 से अधिक शिक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं।
बलिया के महानुभावों के लिए फाेरम की स्थापना
विश्वविद्यालय में उपर्युक्त पाठ्यक्रमों के संचालन के अतिरिक्त बलिया की मिट्टी में जन्म लेकर बाहर विदेशों एवं देश के विभिन्न भागों में अपनी यशपताका फहराने वाले महानुभावों के लिए एक फोरम की स्थापना की गई है। जिसमें देश-विदेशों में कार्यरत 75 महानुभाव बलिया के विकास के लिए बड़ी श्रद्धा एवं प्राणपण से तैयार रहने की शपथ लेकर जुड़े हुए हैं। इसके साथ ही विश्वविद्यालय का पुरा छात्र परिषद भी गठित हो चुका है।
अन्य विश्वविद्यालयों से एमओयू
विश्वविद्यालय ने अन्य विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों से एमओयू भी किया है। इस कड़ी में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा समस्तीपुर बिहार के सहयोग से विश्वविद्यालय शीघ्र ही ग्रामीण विकास एवं प्रशिक्षण केन्द्र खोलने जा रहा है। जिससे विद्यार्थियों के साथ-साथ बलिया के किसानों, महिलाओं एवं मत्स्य व्यवसाय में जुड़े लोगों के कौशल में वृद्धि हेतु प्रशिक्षण की व्यवस्था भी की जाएगी। इसके अतिरिक्त अन्य व्यवसाय परक प्रमाण पत्र पाठ्यक्रमों की व्यवस्था हेतु भी प्रयत्न किए जा रहे हैं। इस प्रकार जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया में शिक्षा विशेष रूप से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अनुरूप ज्ञान समृद्ध समाज के निर्माण में सतत क्रियाशील है।
(लेखक जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय की कुलपति हैं)