भाजपा क्यों जीती, सपा क्यों हारी। सात चरणों के चुनाव में उत्तर प्रदेश में जहां जाओ और जिससे पूछो तो दो बातें एकदम स्पष्ट दिखतीं-योगी मोदी का शासन और गरीब को राशन। बुलडोजर यानी कानून व्यवस्था और शानदार बिजली आपूर्ति ने भाजपा के अभियान पर सोने का वर्क लगा दिया। इसके विपरीत समाजवादी पार्टी के पास केवल एक नेता था, जिससे वह करिश्मे की आस करती रह गई।
यूपी डेस्क : यूपी में विधान सभा का चुनाव दो चेहरों पर चला। योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव। दोनों के पांच वर्षो का काम जनता के सामने था और वोटर ने योगी को पूरे नंबर दे दिए। पांच साल पहले जब योगी को उत्तर प्रदेश की सत्ता सौंपी गई तो प्रतिक्रियाएं मिश्रित थीं। भाजपा क्यों जीती, सपा क्यों हारी। सात चरणों के चुनाव में उत्तर प्रदेश में जहां जाओ और जिससे पूछो तो दो बातें एकदम स्पष्ट दिखतीं-योगी मोदी का शासन और गरीब को राशन। बुलडोजर यानी कानून व्यवस्था और शानदार बिजली आपूर्ति ने भाजपा के अभियान पर सोने का वर्क लगा दिया। इसके विपरीत समाजवादी पार्टी के पास केवल एक नेता था, जिससे वह करिश्मे की आस करती रह गई। सपा मुस्लिम-यादव और भाजपा के असंतुष्टों के भरोसे मैदान में थी और इन्हीं के बूते वह भाजपा की कमियां गिनाती रही जबकि भाजपा के नेता और कार्यकर्ता योगी सरकार के काम लेकर जनता में पैठ बनाते रहे। सपा ने एक ध्रुवीकरण की कोशिश की, लेकिन प्रतिक्रिया में हुए ध्रुवीकरण को नाप नहीं सकी। भाजपा के पास मोदी थे। यह फिर सिद्ध हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी की रैलियां और रोड शो वोटों का अंबार लगाते हैं। वह जहां जाते, भाजपा का ग्राफ चढ़ जाता। इस बार उन्हें साथ मिला योगी का और तब इस जोड़ी ने उत्तर प्रदेश में 37 वर्षो बाद सरकार दोहराने का इतिहास बना दिया। इस चुनाव में यदि बुलडोजर के जलवा रहा तो सेहरा मुख्यमंत्री के ही बंधेगा..। यूपी जैसे जटिल राज्य में पांच साल सरकार चलाने के बाद इतने भारी बहुमत से लौटने का एक ही अर्थ है कि भाजपा का हाथ जनता की नब्ज पर है और वह अन्य दलों की तरह हवाई राजनीति नहीं कर रही। आश्चर्यजनक है कि विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी की जगह मोदी-योगी की जोड़ी काम कर गई। अनेक सीटों पर हमें ऐसे वोटर मिले जो अपने विधायक या प्रत्याशी को नहीं जानते थे, लेकिन मोदी-योगी के कारण जिन्हें फूल पर मुहर लगानी थी।
भाजपा को मिले 41.3 और सपा को 32.1 प्रतिशत
इस चुनाव में भाजपा को 255 सीटें और 41.3 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। 2017 की तुलना में सीटों की संख्या की दृष्टि से देखें तो भाजपा को 57 सीटों का नुकसान हुआ है। मत प्रतिशत की दृष्टि से देखें तो तो उसे 1.63 प्रतिशत का फायदा हुआ है, 2017 के विधान सभा चुनाव में उसे 39.67 प्रतिशत प्राप्त हुए थे। 1.63 प्रतिशत अधिक मत प्राप्त करने के बाद भी 57 सीटों का नुकसान सहज में समझ में आता है। 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा विरोधी मत करीब सपा और बसपा के बीच आधे-आधे बंट गए थे। बसपा को 22.23 प्रतिशत और सपा को 21.82 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इस बार भाजपा विरोधी वोटों का ध्रुवीकरण सपा की तरफ हुआ और उसे कुल 32.1 प्रतिशत मत प्राप्त हुए यानि उसके मतों में करीब 10.28 प्रतिशत का इजाफा हुआ और बसपा का मत प्रतिशत घटकर 12.9 प्रतिशत हो गया यानि करीब 9.33 प्रतिशत की गिरावट। मत प्रतिशत में 10.28 प्रतिशत की वृद्धि के चलते सपा को 64 सीटों का फायदा हुआ और बसपा के मतों में 9.33 प्रतिशत गिरावट के चलते उसे 18 सीटों का नुकसान हुआ। 2017 में बसपा को 19 सीटें मिली थीं। इस बार एक सीट मिली है। जबकि सपा को 47 सीटें मिली थीं और उसे 111 सीटें मिली हैं।
सपा के गठबंधन का शोर भी दबा
इस चुनाव में जातीय गठबंधन का बहुत शोर था। जयंत चौधरी, स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर के साथ सपा का मेल इंटरनेट मीडिया और भाजपा विरोधियों को लहालोट किए दे रहा था, लेकिन यह नहीं समझा गया कि ऐसा कोई भी गठबंधन सपा-बसपा गठजोड़ से अधिक प्रभावी नहीं हो सकता। समाजवादी पार्टी की सीटें बढ़ना और भाजपा की सीटें घटने का कोई अर्थ नहीं। दोनों दल 2017 में जहां पहुंच चुके थे, वहां से उन्हें ऊपर नीचे ही होना था। असल बात यह है कि सपा दोबारा हारी और भाजपा दोबारा जीती। इसके आगे बाकी सब अंकगणित है। विपक्ष के मुद्दे क्या थे। बेसहारा पशु, पुरानी पेंशन, किसान आंदोलन, बेरोजगारी, नाराज जाट, विधायकों की और विधायकों से नाराजगी। परिणाम बता रहे हैं, मतदाताओं ने इन्हें वरीयता नहीं दी। अखिलेश यादव चुनाव को जातियों में ले जाने का प्रयास कर रहे थे जबकि भाजपा की कोशिश राष्ट्रवाद और अस्सी बनाम बीस की थी। यह फार्मूला फिर हिट हुआ और अब 2024 में भी आजमाया जाना है। इस चुनाव में बसपा की भूमिका और योगदान बहस का विषय है और कांग्रेस के लिए उसका अपना प्रदर्शन चिंता का। देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी किसी छोटे क्षेत्रीय दल की तरह भी नहीं लड़ पा रही। हर चेहरे पर था आश्चर्य और ‘देखते हैं’ वाला भाव। अब जब योगी अपने दम पर भारी बहुमत लेकर लौटे हैं तो आम जन में उनके कामकाज का प्रबल समर्थन है जबकि भाजपा के बाहर-भीतर वाले उनके विरोधी सकते में हैं। अब योगी भाजपा के एक ऐसे राष्ट्रीय नेता बन गए हैं जो अपने समकक्षों से अब बहुत आगे है और भाजपा के भीतर भी जिनकी आवाज अब बहुत वजनी होगी।
ढह गए कई अभेद्य दुर्ग, दिग्गजों को देखना पड़ा हार का मुंह
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव का परिणाम सत्ताधारी भाजपा और विपक्ष सपा दोनों के लिए अहम रहा। दोनों दलों के दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित योगी सरकार के 11 मंत्री चुनाव हार गए हैं। इनमें तीन कैबिनेट, दो राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार और छह राज्य मंत्री है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट पर सपा के चिन्ह पर चुनाव लड़ीं अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल से 7337 मतों से चुनाव हारे हैं। प्रतापगढ़ जिले की पट्टी सीट पर ग्राम्य विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप उर्फ मोती सिंह सपा प्रत्याशी राम सिंह पटेल से करीब तीन हजार वोटों से हार गए हैं। राम सिंह दस्यु सरगना रहे ददुआ के भतीजे हैं। गन्ना मंत्री सुरेश राणा शामली की थाना भवन सीट पर रालोद के अशरफ अली खान से 10806 वोटों से पराजित हुए हैं। बलिया जिले की फेफना सीट से युवा कल्याण व खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उपेंद्र तिवारी को सपा के संग्राम सिंह यादव ने 19085 वोटों से मात दी। सिद्धार्थनगर की इटवा सीट पर बेसिक शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सतीश चंद्र द्विवेदी को सपा के माता प्रसाद पांडेय ने 1662 वोटों से हराया। फतेहपुर की हुसैनगंज सीट से खाद्य एवं रसद राज्य मंत्री रणवेंद्र प्रताप सिंह धुन्नी को सपा की ऊषा मौर्य ने 25181 वोटों से हराया। बलिया की बैरिया सीट से ग्राम्य विकास राज्य मंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला को सपा के जयप्रकाश अंचल ने लगभग 13 हजार वोटों से पराजित किया। औरैया की दिबियापुर सीट पर कृषि राज्य मंत्री लाखन सिंह राजपूत को सपा के प्रदीप कुमार यादव ने 473 वोटों से हराया। लोक निर्माण राज्य मंत्री चंद्रिका प्रसाद उपाध्याय को सपा के अनिल प्रधान ने 20 हजार से ज्यादा वोटों से हराया। बरेली की बहेड़ी सीट पर राजस्व राज्य मंत्री छत्रपाल सिंह गंगवार को सपा के अताउर्रहमान ने तीन हजार से ज्यादा वोटों से हराया। सहकारिता राज्य मंत्री संगीता बलवंत को गाजीपुर सीट पर सपा के जयकिशन ने 1692 वोटों से हराया। बलिया जिले की बांसडीह सीट से आठ बार के विधायक और नेता विपक्ष रामगोविंद चौधरी पराजित हो गए हैं। उन्हें भाजपा गठबंधन की निषाद पार्टी प्रत्याशी केतकी सिंह ने तीन हजार से अधिक वोटों के अंतर से हराया। मथुरा जिले की मांट सीट से आठ बार के विधायक श्याम सुंदर शर्मा इस बार भाजपा प्रत्याशी से पराजित हो गए हैं। भाजपा सरकार में श्रम मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव के ऐन वक्त पर पाला बदलकर सपा में शामिल हुए थे। इस बार कुशीनगर जिले की फाजिलनगर सीट से सपा के टिकट पर मैदान में थे, उन्हें भाजपा प्रत्याशी सुरेंद्र सिंह ने 26 हजार से अधिक अंतर से पराजित किया। सहारनपुर जिले की नकुड़ विधान सभा सीट से सपा प्रत्याशी व भाजपा सरकार के पूर्व आयुष मंत्री धर्म सिंह सैनी को पाला बदल भारी पड़ा। उन्हें भाजपा प्रत्याशी मुकेश चौधरी ने हराया।