तीन दशक बाद एक फिल्म सामने आई है ‘कश्मीर फाइल्स’ जिसने इस दर्द को फिर से कुरेदा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस भयानक दौर में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों ने मिलकर 20 हजार कश्मीरी पंडितों के घरों को फूंक दिया था। कश्मीर में 105 स्कूल कालेज और 103 मंदिरों को तोड़ दिया गया था। एक आंकड़े के मुताबिक, 1100 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।
News Desk : जिस कश्मीर में कश्मीरी पंडित हजारों साल से रहते आ रहे थे। जो कभी कश्यप ऋषि की भूमि थी। जहां दरिया हैं, पहाड़ हैं, कुदरत की नक्काशी है, उसी कश्मीर में सामूहिक चिताएं जली थीं। 90 का दशक कश्मीर में बर्बरता का वो दौर लेकर आया, जिसे आज से पहले ना देखा गया, ना सुना गया। कश्मीरी पंडितों को मारा गया। बेटियों के साथ बलात्कार हुए। कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़कर दर दर भटकना पड़ा। तीन दशक बाद एक फिल्म सामने आई है ‘कश्मीर फाइल्स’ जिसने इस दर्द को फिर से कुरेदा है। आपको जानकर हैरानी होगी कि उस भयानक दौर में आतंकवादियों और कट्टरपंथियों ने मिलकर 20 हजार कश्मीरी पंडितों के घरों को फूंक दिया था। कश्मीर में 105 स्कूल कालेज और 103 मंदिरों को तोड़ दिया गया था। एक आंकड़े के मुताबिक, 1100 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। साल 1947 तक कश्मीर में हिंदुओं की आबादी 15 फीसद थी जो साल 1981 में ही 05 फीसद रह गई थी। 2001 में घाटी में हिंदुओं की आबादी 2.77 फीसद हो गई। जबकि 2011 में ये आबादी कुछ बढ़कर 3.42 फीसद हो गई है। अगर सिर्फ हिंदुओं की बात करें तो साल 2011 में 2.45 प्रतिशत हिंदू आबादी घाटी में मौजूद थी। अकेले श्रीनगर में साल 2001 में 4 फीसदी हिंदू थे जो साल 2011 में 2.6 फीसदी रह गए हैं। एक आंकड़े के मुताबिक, अब कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के करीब 808 परिवार रह गए हैं। आबादी के लिहाज से करीब साढ़े तीन हजार कश्मीर पंडित घाटी में मौजूद हैं। कश्मीरी पंडितों के परिवार का दर्द सुनकर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की मौत का सिलसिला 19 जनवरी 1990 के दौरान चरम था।
क्रूरता का आगाज तो दस साल पहले से हो गया था
इस क्रूरता का आगाज तो दस साल पहले साल 1980 में हो चुका था। 80 का दशक समाप्त होते-होते पाकिस्तान में आतंक की ट्रेनिंग शुरू हो चुकी थी। सैय्यद सलाउद्दीन और यासीन मलिक उन आतंकियों में से हैं, जिन्होंने सबसे पहले घाटी में बंदूक लहराई थी। पहली बार धर्म के नाम पर कश्मीर की आवाम को बांटा जाने लगा। स्थानीय लोगों के दिमाग में जहर भर रहा था। साल 1987 के विधानसभा चुनाव में धांधली के आरोप लगे थे। जिसके बाद बड़ी संख्या में युवाओं ने हथियार उठाए और कश्मीर में नब्बे के दशक का वो खूनी खेल शुरू हुआ जो आज तक घाटी को जला रहा है। इसी जिहाद ने कश्मीरी पंडितों को जीते जी नरक की आग में ढकेल दिया था। साल 1989 में कश्मीर में आतंकवाद का दौर विस्तार लेने लगा। हिजबुल मुजाहिद्दीन और जेकेएलएफ ने कश्मीर में जेहाद का ऐलान कर दिया। जिसके बाद मौत का तांडव शुरू हुआ। घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की पहली आहट 14 सितंबर 1989 को आई। भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और कश्मीरी पंडित तिलक लाल तप्लू की जेकेएलएफ ने हत्या कर दी। इसके बाद जस्टिस नील कांत गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या कर दी गई, 300 से ज्यादा हिंदुओं को आतंकियों ने मौत के घाट उतार दिया।
नारा दिया गया..हम सब एक, तुम भागो या मरो
कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर कहर बरसाने की साजिश में जिहादी संगठन जमात-ए-इस्लामी भी शामिल था, जिसने साल 1989 में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया। नारा दिया गया..हम सब एक, तुम भागो या मरो। इसके बाद कश्मीरी पंडितों घाटी छोड़कर जाने लगे। करोड़ों के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। घाटी के उर्दू अखबार भी कश्मीरी पंडितों को परेशान करने लगे। हिज्ब-उल-मुजाहिदीन ने लिखा कि ‘सभी हिंदू अपना सामान बांधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएं। घाटी की कई मस्जिदों पर कट्टरपंथियों ने कब्जा कर लिया। वहां से हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। कश्मीरी पंडितों के घर के दरवाजों पर नोट लगा दिया, जिसमें लिखा था ‘या तो मुस्लिम बन जाओ या कश्मीर छोड़ दो। पाकिस्तान की तत्कालीन प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने टीवी पर कश्मीरी मुस्लिमों को भारत से अलग होने के लिए भड़काना शुरू कर दिया। कश्मीर से पंडित रातों-रात अपना सबकुछ छोड़ने के मजबूर हो गए। वो काली रात कश्मीरी पंडितों के परिवार आज भी नहीं भूले होंगे। कश्मीरी पंडितों की बस्तियां बंदूकों ने वीरान कर दी। आपको जानकर हैरानी होगी कि अपने ही देश में कश्मीरी पंडितों का दर्द किसी ने नहीं सुना।
70 अपराधियों को जेल से कर दिया रिहा
कश्मीरी पंडित अपने घर आंगन को छोड़कर दूर देश में पनाह लेने को मजबूर हुए, क्योंकि आतंकियों ने क्रूरता की हर हद पार कर दी थी। सीरिया और इराक में आईएसआईएस ने जो जुर्म बरपाया वो तो कश्मीरी पंडित तीस साल पहले झेल चुके हैं। जिस समय कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का काला अध्याय लिखा जा रहा था, उस वक्त कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला थे। साल 1989 की जुलाई से लेकर नवंबर तक करीब 70 अपराधियों को जेल से रिहा किया गया था। ये अपराधी क्यों छोड़े गए, जवाब आज तक किसी ने नहीं दिया, लेकिन फिर कश्मीर में जो तांडव हुआ, उसे दुनिया ने जरूर देखा।
बस रोककर की हिंदुओं की हत्या
14 अगस्त 1993 को डोडा में बस रोककर 15 हिंदुओं की हत्या कर दी गई। 21 मार्च 1997 को जम्मू के संग्रामपुर में घर में घुसकर 7 कश्मीरी पंडितों को किडनैप कर मार डाला गया। 25 जनवरी 1998 को हथियारबंद आतंकियों ने 4 कश्मीरी परिवार के 23 लोगों को गोलियों से भून कर मार डाला। 17 अप्रैल 1998 को ऊधमपुर में 27 हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया, जिसमें 11 बच्चे भी शामिल थे। कश्मीर को धरती का जन्नत कहा जाता है, लेकिन घाटी को जन्नत कैसे मानें, क्योंकि जन्नत में तो जुल्म के लिए कोई जगह नहीं होगी। जब तक कश्मीरी पंडितों की दर्द भरी दास्तां जिंदा है, घाटी को जन्नत कहे जाने पर सवाल उठता रहेगा। इतिहास की सबसे बर्बर क्रूरता के बाद अपने ही देश में कश्मीरी पंडितों का पलायन शुरू हुआ। घाटी में कश्मीरी पंडितों की आबादी सिर्फ 0.1 फीसद रह गई। कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के दूसरे इलाकों में रिफ्यूजी कैंप में रहने को मजबूर हो गए।
सड़क पर आ गए करोड़पति कश्मीरी पंडित
जम्मू के 11 राहत शिविरों में कश्मीरी पंडितों की आबादी करीब 1.8 लाख थी। जिनका दर्द सुनने वाला भी कोई नहीं था। आल कश्मीरी पंडित कोआर्डिनेशन कमेटी’ के मुताबिक, कश्मीर घाटी से बाहर 62,000 विस्थापित परिवार रह रहे हैं। इनमें से 40,000 परिवार जम्मू में, 20,000 परिवार दिल्ली में, जबकि बाकी 2,000 परिवार देश के दूसरे शहरों में रहने को मजबूर हैं। आपने आबादी बढ़ने की दर तो सुनी होगी, लेकिन कश्मीरी पंडितों की आबादी कत्लेआम के बाद घट गई। एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1990 से 2014 के दौरान कश्मीर से पलायन करने वाले 62,000 कश्मीरी परिवारों में सिर्फ 10 हजार बच्चों ने जन्म लिया, जबकि इसी दौरान 23,708 कश्मीरी पंडितों की मौत हुई। ये मौतें उस दर्द की वजह से हुई जो कश्मीरी पंडितों ने घाटी में झेला था। सोचिए, इतना दुख कभी सुना है, जहां जन्म कम होने लगें और मौत ज्यादा हो जाएं। जन्नत से निकाले जाने के बाद कश्मीरी पंडित गंदी बस्तियों में रहने को मजबूर हो गए। सरकारों ने भी सिर्फ वायदा किया, किसी ने भी इनके आंसू नहीं पोंछे। 10 जुलाई 2014 को कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़ आवंटित किए गए। 5 सितंबर 2014 को राजनाथ सिंह ने तत्कालीन CM उमर अब्दुल्ला से कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए जमीन मांगी। केंद्र सरकार की स्कीम पर अलगाववादियों ने विरोध दर्ज कराया। 7 अप्रैल 2015 को केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की टाउनशिप के लिए जमीन मांग ली। तत्कालीन CM मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जमीन देने का भरोसा दिलाया। 8 अप्रैल 2015 को कश्मीरी पंडितों की टाउनशिप पर मुफ्ती सरकार ने यू-टर्न ले लिया। मुफ्ती सरकार ने पंडितों को उनके उजड़ने की जगहों पर बसाने की बात कही। 19 जनवरी 2017 को J&K विधानसभा में कश्मीरी पंडितों की वापसी का प्रस्ताव पास किया गया। 24 जनवरी 2017 को J&K सरकार ने पुनर्वास के लिए 8 जगहों पर 100 एकड़ जमीन की पहचान की। ऐलान तो खूब हुए पर अभी तक कश्मीरी पंडितों के उजड़े घर बसे नहीं हैं। उनके दर्द पर मरहम लगा नहीं है। उल्टा कश्मीरी पंडितों के साथ सिर्फ राजनीति कर उनके जख्मों को बार बार कुरेदा गया है। अब तो जख्म भी नासूर बन गए हैं, जिन्हें कश्मीर फाइल्स ने फिर से दर्द से भर दिया है। फिल्म का विरोध करना या समर्थन करना किसी भी नागरिक का अधिकार है, लेकिन सच जानना सभी का कर्तव्य। देश के किसी भी मुद्दे पर राजनीतिक सोच के तहत विरोधी टिप्पणी करने वाले लोग किसका समर्थन कर रहे हैं। इस पर भी उन्हें गहनता से विचार करना चाहिए।