जीवन में सदैव सेवा का भाव होना चाहिए। छठ में सामाजिक समरसता दिखती है। बिना किसी भेदभाव के लोग मिलकर यह पर्व करते हैं। विद्यार्थी तक व्रतियों की सेवा में जुटे रहते हैं। ऐसे पर्व में मेरे तरफ से भी सेवा का यह छोटा प्रयास है। सभी व्रतधारी माताओं और बहनों का आशीर्वाद प्राप्त करने की मंशा है। रामबाबू यादव, राम
बलिया : छठ में परंपरा व पवित्रता को महत्व दिया जाता है। मिट्टी के चूल्हे, आम की लकड़ी, जांते में पीसे गए गेहूं का आटा, गुड़ व चावल के अयपन का कोई विकल्प नहीं चुनता। इस पर्व में पुण्य कमाने के लिए लोग कई तरह की सेवा करते हैं। घर से लेकर नदी घाट तक हर तरफ सेवा का भाव दिखता है। इस पर्व में ग्राम पंचायत कोड़हरा नौबरार जयप्रकाश नगर दलजीत टोला निवासी रामबाबू यादव, राम ने पूरे ग्राम पंचायत में व्रत करने वाली महिलाओं में साड़ी वितरित किया। कहा कि जीवन में सदैव सेवा का भाव होना चाहिए। छठ में सामाजिक समरसता दिखती है। बिना किसी भेदभाव के लोग मिलकर यह पर्व करते हैं। विद्यार्थी तक व्रतियों की सेवा में जुटे रहते हैं। ऐसे पर्व में मेरे तरफ से भी सेवा का यह छोटा प्रयास है। सभी व्रतधारी माताओं और बहनों का आशीर्वाद प्राप्त करने की मंशा है। उन्होंने कहा कि समाज की सेवा के लिए किसी पद पर होना जरूरी नहीं है। सिर्फ मन में सेवा का भाव होना चाहिए। साड़ी वितरण कार्यक्रम में भाेजपुरी के गायक अरविंद सिंह अभियंता मौजूद रहे। समाजसेवी ने सभी के हाथों से साड़ी व अन्य वस्त्र वितरित कराया। इस मौके पर ग्राम पंचायत के दरोगा सिंह, जैनेंद्र कुमार सिंह, आनंद बिहारी सिंह, शिव नारायण सिंह, रुद्र नारायण सिंह, शिवपरसन सिंह, सुरेंद्र सिंह, रवींद्र सिंह, श्रीपति यादव, जगलाल यादव, बीरबल यादव, संतोष सिंह, नंदजी यादव, अमरेश सिंह सहित काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।
17 से आरंभ हो रहा चार दिवसीय महापर्व छठ
17 नवंबर से नहाय-खाय के साथ छठ पर्व प्रारंभ हो जाएगा। 18 नवंबर को खरना के बाद 19 और 20 नवंबर को सूर्य को अर्ध्य देने के बाद व्रत पूर्ण होता है। छठ पूजा का यह पावन पर्व हर साल कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। यह व्रत संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और उज्जवल भविष्य की कामना के लिए रखा जाता है। यह सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। 36 घंटों तक कठिन नियमों का पालन करते हुए इस व्रत को रख जाता है। छठ पूजा का व्रत रखने वाले लोग चौबीस घंटो से अधिक समय तक निर्जल उपवास रखते हैं। मुख्य व्रत षष्ठी तिथि को रखा जाता है, लेकिन यह पर्व चतुर्थी से आरंभ होकर सप्तमी तिथि को प्रातः सूर्योदय के समय अर्घ्य देने के बाद पूर्ण होता है।