22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर का लोकार्पण व प्राण प्रतिष्ठा होते देखने का सौभाग्य उन्हें भले ही नहीं मिला, लेकिन इस बात को लेकर जनपद के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
अयोध्या : अयोध्या में राममंदिर प्रकरण में बलिया का भी योगदान है। इसी धरती के दया छपरा गांव के त्रिलोकी नाथ पांडेय रामजन्म भूमि के मुकदमे में पक्षकार थे। वर्ष 2021 के सितंबर में उनका निधन हो गया। वह छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए थे। स्व. पांडेय 1964 में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आए थे। उनका जुड़ाव इतना प्रगाढ़ था कि हाईस्कूल के बाद पढ़ाई छोड़कर स्वयं को संघ के लिए समर्पित कर दिया। 1975 में वह जब बीएड कर रहे थे, तभी आपातकाल लग गया। आपातकाल के विरोध में उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। उस समय वे बलिया में प्रचारक थे और संघ के अन्य प्रचारकों की तरह आपातकाल के विरोध में उन्होंने भी संघर्ष किया। 1984 में विहिप ने जब मंदिर आंदोलन शुरू किया, तब वह संघ की संस्कृति रक्षा योजना के प्रांतीय प्रभारी के तौर पर आजमगढ़ को केंद्र बना कर सक्रिय थे। कालांतर में संस्कृति रक्षा योजना का विहिप में विलय हुआ तो पांडेय भी विहिप की शोभा बढ़ाने लगे। मई 1992 में उन्हें राम जन्मभूमि मामले की अदालत में पैरवी के लिए आजमगढ़ से अयोध्या बुला लिया गया। उन्होंने इस भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर का लोकार्पण व प्राण प्रतिष्ठा होते देखने का सौभाग्य उन्हें भले ही नहीं मिला, लेकिन इस बात को लेकर जनपद के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
राम लला का सखा बन करते रहे पैरवी
रामजन्मभूमि की मुक्ति के लिए रामलला के सखा की हैसियत से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति देवकीनंदन अग्रवाल ने 1989 में ही वाद दाखिल कर दिया था। 1996 में उनकी मृत्यु के बाद यह जिम्मेदारी बीएचयू के सेवानिवृत्त प्रोफेसर ठाकुर प्रसाद वर्मा ने संभाली। 2008 में उनके बाद रामलला के सखा का दायित्व त्रिलोकीनाथ पांडेय ने संभाला।
राममंदिर के शिलान्यास के वक्त की थी बातचीत
सुप्रीम के फैसले के बाद पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब राममंदिर का शिलान्यास करने अयोध्या पहुंचे थे, तब भी स्व. पांडेय अयोध्या में ही थे। उस वक्त उन्होंने बताया था कि वह रामजन्म भूमि मामले के मुकदमे में अक्टूबर 1994 से हाईकोर्ट की बेंच में पैरवी करते रहे थे। उसके बाद रामलला का सखा घोषित होने पर पक्षकार के रूप में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पैरवी करते रहे। फैजाबाद के दीवानी के वकील मदन मोहन पांडेय, रविशंकर प्रसाद, वीरेश्वर द्विवेदी, अरुण जेटली जैसे वकीलों से संपर्क करके मुकदमों की तैयारी करते रहे। हाईकोर्ट में अपना वकील पाराशर जी को करना चाहते थे, लेकिन वह अस्वस्थता के कारण नहीं आए। उसके बाद जब हमने उच्चतम न्यायालय में अपील की तो पाराशर जी से मिलने चेन्नई गए। उन्होंने तुरंत कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी हम करेंगे। उन्होंने पश्चाताप प्रकट किया कि अस्वस्थता के कारण वो लखनऊ में मुकदमे की पैरवी के लिए नहीं जा सके। पाराशर जी की फीस 25 लाख रुपये प्रतिदिन की बताई गई थी, लेकिन उन्होंने एक भी पैसा नहीं लिया था।
6 दिसंबर 1992 का घटनाक्रम
10:30-भाजपा व विहिप के नेता पूजा के लिए स्थल तक पहुंचे। कारसेवा शुरू।
11:45-फैजाबाद के डीएम और एसपी ने रामजन्मभूमि परिसर का दौरा किया।
12:00-कारसेवकों ने विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़कर सुरक्षा घेरा तोड़ने का संकेत दिया।
02:00-पहला गुंबद गिरा
05:00-मुख्य गुंबद ध्वस्त
06:30-यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू। सीएम कल्याण सिंह का इस्तीफा।
07:30-मूर्तियां स्थापित कर अस्थायी मंदिर का निर्माण शुरू
9 नवंबर 2019 फैसले का दिन
161 साल के विवाद पर 42 मिनट में आया था फैसला
10:30-बजे फैसले की कॉपी पर संविधान पीठ के पांचों न्यायाधीशों ने हस्ताक्षर किए।
10:31-शिया वक्फ बोर्ड की जमीन पर नियंत्रण की याचिका खारिज कर दी गई (सर्वसम्मति से)।
10:32 : मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने फैसला सुनाना शुरू किया, बोले- करीब आधा घंटा लगेगा।
10.38-जस्टिस गोगोई ने कहा, धार्मिक तथ्यों नहीं, बल्कि एएसआई की रिपोर्ट को ध्यान में रखकर कोर्ट फैसला ले रहा है, मस्जिद कब बनी स्पष्ट नहीं।
10:39-निर्मोही अखाड़े का दावा भी खारिज, कहा-निर्मोही अखाड़ा शबैत नहीं यानी उसे प्रबंधन का अधिकार नहीं।
10:41-जस्टिस गोगोई ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि राम जन्मभूमि स्थान न्यायिक व्यक्ति नहीं है, जबकि भगवान राम न्यायिक व्यक्ति हो सकते हैं।
10:44-पुरातत्व विभाग एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसने पाया कि नीचे हिंदू मंदिर पाया गया, गुंबद के नीचे वो समतल की स्थिति में था, हिंदू अयोध्या को राम का जन्मस्थान मानते हैं।
10:45-एएसआई रिपोर्ट के मुताबिक, खाली जमीन पर मस्जिद नहीं बनी थी। एएसआई यह नहीं बताया कि मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाई गई, मुस्लिम गवाहों ने भी माना, दोनों पक्ष पूजा करते थे।
10:54-यह सबूत मिले हैं कि राम चबूतरा और सीता रसोई पर हिंदू अंग्रेजों के जमाने से पहले भी पूजा करते थे। रिकॉर्ड में दर्ज साक्ष्य बताते हैं कि विवादित जमीन का बाहरी हिस्सा हिंदुओं के अधीन था।
10:55-मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि खाली जगह पर मस्जिद नहीं बनी थी, सुन्नी वक्फ बोर्ड के लिए शांतिपूर्ण कब्जा दिखाना असंभव है।
10:59-1856-57 से पहले आंतरिक अहाते पर हिंदुओं पर कोई रोक नहीं थी, संघर्ष की वजह से वहां शांतिपूर्ण पूजा के लिए रेलिंग बनाई गई
11:00 -मुस्लिमों का बाहरी अहाते पर कोई अधिकार नहीं रहा। सुन्नी वक्फ बोर्ड यह सबूत नहीं दे पाया कि यहां उसके एकमात्र अधिकार है।
11:05-मुस्लिमों को मस्जिद के लिए दूसरी जगह मिलेगी। संविधान कभी धर्म से भेदभाव नहीं करता।
11:07-केंद्र सरकार तीन महीने में योजना तैयार करेगी, बोर्ड ऑफ ट्रस्टी का गठन होगा। सुन्नी वक्फ बोर्ड को केंद्र या राज्य सरकार द्वारा अहम जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। फिलहाल अधिकृत जमीन का कब्जा रिसीवर के पास रहेगा।
11:11-विवादित ढांचे की जमीन हिंदुओं को दी जाए। मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाएगी सरकार। पांच जजों ने एकमत से दिया फैसला।