लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने 1977 में केंद्र सरकार के तख्त को पलट दिया था। राजनीति में उनके किरदार की चर्चा हर चुनाव में होती है। उनका गांव सिताबदियारा आजादी की लड़ाई के समय से ही राष्ट्रीय फलक पर चमकता रहा है। बलिया लोकसभा क्षेत्र के अंतिम छोर पर स्थिति इस गांव में तीन लोकसभा सीटों की सीमाएं आकर मिल जातीं हैं। हर चुनाव में तीनों क्षेत्रों की सियासी हवा आपस में टकराती रहतीं हैं। बलिया लोकसभा क्षेत्र में जयप्रकाशनगर, सारण में सिताबदियारा और आरा में खवासपुर गांव हैं। हर क्षेत्र के लोगों का शाम को छोटका बैजू टोला या बाबू के डेरा बाजार में जुटान होता है। राजनीतिक चर्चा भी होती है। वोट को लेकर बहस भी।
बलिया : जेपी के गांव सिताबदियारा क्षेत्र में पहले न सड़क थी, न बिजली, न सुविधा व चिकित्सा के साधन, दूर संचार की बात तो सपना था, गरीबी थी, अशिक्षा थी, आज इसमें बहुत सारी चीजों का एक सीमा तक हल निकला है। न वैसी गरीबी है, न अन्य चुनौतियां। जगह-जगह स्कूल खुल गए। अब नीम के पेड के नीचे पढ़ने की मजबूरी नहीं, बोरा और पटरी लेकर जाने की जरूरत नहीं। ये सारी चीजें बदलीं, पर कुछ अनमोल खो गया। वह रिश्ता, वह अपनत्व, वह बुजुर्गों के स्नेह की छाया। अपना-पराया के फर्क की वह आग दरवाजे-दरवाजे दस्तक दे रही है। भौतिक होड़ है, पैसा भगवान है। जाति, उभर रही है।
यह वही गांव है जहां 1974 में जेपी ने जाति मिटाओ, जनेऊ तोड़ो आंदोलन की शुरूआत किए थे। करीब 10 हजार लोगों ने उनके समर्थन में अपना जनेऊ तोड़ जाति प्रथा नहीं मानने का संकल्प लिया था। अब सभी की मानसिकता बदल चुकी है। इस क्षेत्र में क्षत्रिय, यादव, अनुसूचित जाति, ब्राह्मण की संख्या ज्यादा है। विकास को आधार मानकर गांव के लोगों से बात करने पर कहते हैं कि जेपी के जीवनकाल में ही जब गांव के लोगों ने उनसे कहा कि आपके पास बहुुत से नेता आते हैं। उनसे कह देंगे तो गांव का विकास हो जाएगा। इस पर जेपी का जवाब था कि मै पूरे देश की उम्मीद हूं, सिर्फ अपने गांव के लिए किसी से कुछ नहीं कह सकता। जब देश का विकास होगा तो मेरे गांव का भी विकास हो जाएगा, ऐसा हुआ भी। अब गांव में सभी सुविधाएं मौजूद हैं। सड़कें भी बेहतर हो गई हैं। विकास को लेकर जैनेंद्र सिंह, गजेंद्र सिंह बताते हैं कि सिताबदियारा में यूपी वाले भाग में बिजली की व्यवस्था पहले से हो गई थी, लेकिन बिहार सीमा के गांवों में वर्ष 2010 तक बिजली नहीं थी। जब भी कोई बाहरी गांव आकर यूपी-बिहार के सीमा को समझना चाहता था तो गांव के लोग इस क्षेत्र का परिचय कुछ इस अंदाज में देते थे..’’बिजली जले तो यूपी, ढ़बरी जले तो बिहार’’ अब यह परिचय मिट चुका है। सभी क्षेत्र बिजली की रोशनी से नहा रहे हैं। बिहार के गांवों को बिजली भी यूपी की ओर से एक समझौते के तहत बिजली दी गई है। बीच में गंगा और सरयू नदी के कारण बिहार वाले गांवों में बिजली नहीं पहुंच सकी थी। 11 अक्टूबर 2011 को जेपी जयंती पर लालकृष्ण आडवाणी सिताबदियारा के चैन छपरा से जन चेतना यात्रा शुरू करने वाले थे। उसी दिन सिताबदियारा के बिहार वाले गांवों में भी बिजली के बल्ब जले।
सरयू ने भी दिया क्षमा दान
इब्राहिमाबाद नौबरार के निवासी हरेकृष्ण सिंह ने बताया कि सिताबदियारा क्षेत्र सूरयू कटान से भी परेशान था। वर्ष 2014 में सिताबदियारा और इब्राहिमाबाद नौबरार गांव के लगभग 400 मकान नदी में समाहित हो गए थे। यूपी-बिहार दोनों तरफ से कटानरोधी कार्य कराए गए, लेकिन पिछले साल से सरयू स्वयं ही इस गांव का क्षमा दान दे दी है। नदी फिर से गांव से चार किमी दूर रिविलगंज की ओर बहने लगी है।
राष्ट्रीय स्मारक ने दी अलग पहचान
सिताबदियारा में अब दो जेपी स्मारक हैं। जयप्रकाशनगर के स्मारक का निर्माण पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 1986 में कराया था। बिहार सीमा के लाला टोला में केद्र सरकार ने 25 जून 2015 को राष्ट्रीय स्मारक की घोषणा की थी। अब वह स्मारक भी खड़ा हो चुका है। वर्ष 2022 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसका लोकार्पण किया था। इसके चलते अब कई सुविधाएं बढ़ गई हैं। इस स्थान पर भविष्य में राष्ट्रीय ध्वज का भी निर्माण होना है।