पूर्व मंत्री नारद राय के बाद पूर्व विधायक रामइकबाल सिंह ने भी भाजपा की ओर बढ़ाया पांव। लोकसभा क्षेत्र में सियासी हलचल तेज, दोनों नेताओं ने गृहमंत्री अमित शाह से की मुलाकात। भाजपा में सब खुश तो सपा की ओर से धोखा देने का आरोप। एक जून को होना है चुनाव। उससे पहले नए चेहरे के शामिल होने से वोट बिखराव भी संभव। बलिया में भाजपा के नीरज शेखर और सपा के सनातन पांडेय में सीधी टक्कर है।
बलिया : राजनीति में कब क्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। इन दिनों लोकसभा क्षेत्र बलिया की राजनीति लगातार करवट बदल रही है। प्रदेश के अंतिम छोर में स्थित बलिया में कभी कांग्रेस का जोर था। फिर समाजवादी ताकतों का। वर्ष 2014 से भाजपा ने भी यहां अपनी जमीन मजबूत कर दो बार लोकसभा सीट अपने पाले में कर लिया। यहां से अकेले पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर आठ बार सांसद रहे हैं। लोकसभा क्षेत्र के पूर्व मंत्री नारद राय के द्वारा जय श्रीराम के शंखनाद संग भाजपा में जाने के ऐलान के बाद से सियासी हलचल तेज हो गई है। वह सोमवार को अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर कर सपा छोड़ने का ऐलान किए और उसके बाद वाराणसी में जाकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मुलाकात किए हैं। यह हलचल चल ही रही थी, तब तक पूर्व विधायक रामइकबाल सिंह भी सपा को छोड़ने का मन बना लिए हैं। उन्होंने ने भी गृह मंत्री से मुलाकात कर भाजपा में शामिल होने की बात कही है। रामइकबाल सिंह वर्ष 2002 में चिलकहर विधान सभा सीट से भाजपा से ही विधायक बने थे। वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव से पूर्व वह भाजपा छोड़ सपा का दामन थाम लिए थे, लेकिन इस चुनाव में एक बार फिर वह भाजपा में वापस होने का मूड बना लिए हैं। सपा के दो नेताओं के भाजपा में जाने से भाजपा के लोग खुश हैं, जबकि सपा की ओर से भी पार्टी छोड़कर जाने वालों पर आराेपों की बारिश खूब हो रही है। अब चुनाव में कौन बाजी मारेगा, यह मतदाताओं के हाथ में है। राजनीतिक गणितज्ञों का का मानना है कि नारद राय के भाजपा में आने से जरूर कुछ फायदा होगा, लेकिन इस चुनाव में बलिया सीट पर अनुसूचित जाति के मतदाता ही डिसाइडर वोटर हैं।
अखिलेश की सभा से शुरू हुई नाराजगी
पूर्व मंत्री नारद राय की नाराजगी सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की बलिया के कटरिया में चुनावी सभा के बाद से शुरू हुई। दरअसल मंच पर जब अखिलेश यादव पहुंचे तब उन्हें पार्टी के संगठन की ओर से मंचासीन नेताओं के नाम की लिस्ट दी गई। उसमें पूर्व मंत्री नारद राय का नाम नहीं था। अखिलेश यादव लिस्ट के अनुसार संबोधन से पहले सभी का नाम लिए, लेकिन नारद राय का नाम नहीं आया। सभा खत्म होने के साथ ही नारद राय के अंदर की पीड़ा बाहर आने लगी थी। बलिया के नगर सीट पर नारद राय वर्ष 2002 और 2012 में भी सपा के टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी रहे। सरकार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया था।
मौका परस्त लोगों के जाने से नहीं कमजोर होगी सपा
पूर्व मंत्री नारद राय के द्वारा सपा छोड़ने की घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के प्रांतीय सचिव और सिकंदरपुर के विधायक मो. जियाउद्दीन रिजवी ने पलटवार किया है। कहा है कि पूर्व मंत्री नारद राय पार्टी के दम पर दो बार विधायक और मंत्री बने। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के खिलाफ उन्होंने जो बयान दिया है, वह निंदनीय है। ऐसे मौका परस्त लोगों के जाने से सपा कमजोर नहीं होगी। समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने खास कर अल्पसंख्यक और पिछड़ों ने अपने कंधे पर नारद राय को उठा कर वहा तक पहुंचाया हैं। वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थ में उन गरीब पिछड़े और अल्पसंख्यकों को धोखा देकर उनका हक को लूटने और उन्हें डराने वाली ताकतों के इशारे पर अनर्गल बयान दे रहे हैं। राजनीति में खत्म वह लोग होंगे जो उछल कूद करेंगे।