गंगा के प्रति पब्लिक की भावनाओं का अंदाजा सरकार नहीं लगा सकती। घर-घर के लोग अपनी गंगा को खुद की मां की तरह पूजते हैं। परिवार के सुखमय जीवन की कामना करते हैं। गंगा जल को घर लाकर उसी से अपने घर को भी शुद्ध करते हैं। ऐसे में सरकारी तंत्र और गंगा पर प्रवचन करने वालों को चाहिए कि वे धरातल पर कुछ बेहतर प्रबंध करें। नदी तट पर सींढ़ीनुमा घाट बनाएं, पौधे लगाकर, उसकी देखरेख भी करें। इसके बाद यही गंगा दूसरे स्वरूप में दिखाई देने लगेगी।
बलिया टुडे डेस्क : प्रदेश स्तरीय गंगा यात्रा की शुरूआत जनवरी में दुबे छपरा से हुई थी। तब भी नदी तट के निवासियों को कई तरह के सपने दिखाए गए थे। इस बार भी कुछ उसी तरह का राग था। जनवरी की गंगा यात्रा बलिया से निकल कर यूपी के 27 जिले, 21 नगर निकाय, 1038 ग्राम पंचायतों, 1650 राजस्व गावों से गुजरते हुए कुल 1358 किमी की दूरी तय कर 31 जनवरी तक कानपुर पहुंची थी। तब भी इस बात पर जोर दिया गया था कि नदी तट के गांवों को कई नई योजनाओं से जोड़ा जाएगा। खेती के तौर-तरीकों में बदलाव किया जाएगा। इस बार गांधी जयंती से बलिया के भरौली से शुरू जनपद स्तरीय गंगा यात्रा सिताबदियारा तक पहुंची। इस बार भी नदी तट के ग्रामीणों को आर्गेनिक खेती के कई टिप्स दिए गए। साथ में गंगा की अविरलता के लिए भी आसपास के लोगों को जागरूक किया गया, लेकिन जिला प्रशासन और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियाें के इस प्रवचन को सुनने वाले लोग हर जगह कम संख्या में दिखे। इसका क्या कारण है, इस बात की पड़ताल करने पर दुबे छपरा के गंगापुर में जहां सभा चल रही थी। गंगा के महत्व को लोगों को बताया जा रहा था, वहीं सड़क पर खड़े स्थानीय लोगों में से दो चार किसानों ने खेती के संबंध में बताया कि सभी लोग आर्गेनिक खेती की सलाह दे रहे हैं, उन्हे इस सत्य को भी जानना होेगा कि आर्गेनिक खेती से किसान अपनी पूंजी तक नहीं निकाल पाएंगे। जनपद में कोई किसान ऐसा नहीं मिलेगा जो बिना खाद पानी के अच्छा उत्पादन किया हो। वहीं खड़े कुछ पढने वाले युवा भी थे, वह गंगा की अविरलता की बात पर बोले…किसी भी गांव के पास से गुजरती गंगा पूरी तरह स्वच्छ दिखती है, शहर के लोगों ही गंगा में भारी मात्रा में हर गंदगी भेजने हैं। बलिया नगर में इसके प्रत्यक्ष उदाहरण देखने को मिलते हैं, लेकिन जिला प्रशासन या जनप्रतिनिधि उसका उपाय करने के बजाय सिर्फ प्रवचन से ही गंगा के हर रोग का उपचार करने में लगे हैं।
जनवरी के प्रादेशक गंगा यात्रा की कुछ खास बातें
उस गंगा यात्रा में पहुंचे बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि बिहार सरकार 2,836 करोड़ की लागत से 190 किमी पाइप लाइन के जरिए पेयजल के लिए गंगा का पानी गया, बोधगया व राजगीर तथा दूसरे चरण में नवादा तक पहुंचाएगी। इसी तरह पूरे देश में नदियों के जल को शुद्ध कर उसे घर-घर सप्लाई देने की कोशिश केंद्र सरकार की ओर से की जा रही है। इसके अलावा नदियों के गर्भ में पर्याप्त जल रहे, नालों के माध्यम से नदियों में जाने वाला गंदा जल नदी में उसी रुप में न जाए, इसकी व्यवस्था भी सरकार करने जा रही है। देश की 43 प्रतिशत आबादी नदियों के तट पर निवास करती है। भविष्य में नदी के तटवर्ती इलाकोें की आबादी के लिए सभी नदियां वरदान साबित होंगी। नदियों के किनारे नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत पूर्ण कायाकल्प किया जा रहा है। जनमानस का बेहतर सहयोग रहा तो नदियों के किनारे हरियाली का भी साम्राज्य होगा।
अब धरातल पर भी देख लें, क्या किए इंतजाम
प्रादेशक गंगा यात्रा के बाद जनपद स्तरीय गंगा यात्रा का समापन भी हो गया। हम पहले नदी तट की हरियाली की बात कर लें तो वन विभाग कार्यक्रम के दिन ही मौके पर पौधारोपण करता है। जनवरी की गंगा यात्रा के समय भी दुबे छपरा, गंगापुर, जयप्रकाशनगर में सैकड़ों पौधे वन विभाग ने कार्यक्रम के दिन लगाए थे, लेकिन कार्यक्रम के दिन के बाद उसकी कोई सुधि नहीं लिए। इस कारण सभी पौधे झुलस गए। इस बार भी वही परंपरा निभाई गई। गंगापुर में मंत्री आनंद स्वरूप से वन विभाग की ओर से आम का पौधा लगवाया गया। खुद भी कु़छ पौधे विभाग की ओर से लगाए गए। ये पौधे भी एक माह के बाद मौके पर दिखाई नहीं देंगे। इसके अलावा नदी के जल को शुद्ध कर घर-घर सप्लाई देने की बात पर तो अब कोई चर्चा ही नहीं हो रही है। जनवरी के गंगा यात्रा में बड़ा मंच था, बड़ी-बड़ी बातें हुई और वे अभी तक हवा में उड़-उड़ कर गंगा का कायाकल्प कर रही हैं। पब्लिक कहती है..हमारे लिए गंगा कभी भी महान रही हैं, इनकी अविरलता को बनाए रखने के लिए गांव के लोग कोई ऐसा गलत कदम नहीं उठाते। इस विचारधारा को यदि किसी को समझना है तो वह है सरकार और उसके तंत्र। मंच से चौपाल में जितनी बातेें होती हैं, यदि उस पर अमल हो तो वास्तव में नदी तट के लोगों की तकदीर बदल सकती है।