लखनऊ डेस्क : प्रदेश सरकार द्वारा इंजीनियरिंग विभागों में अनिवार्य सेवानिवृत्ति के क्रम में UP PWD में आठ अधिशासी अभियंताओं पर की गई कार्रवाई विवादों में दिखायी पड़ने लगी है। विवाद का एक कारण जहां 8 में 7 का अनुसूचित जाति समुदाय का होना है, वहीं कई अभियन्ताओं की अच्छी छवि के बावजूद सेवानिवृत्ति भी बताई जा रही है। इस बीच UPEA (उत्तरप्रदेश इंजीनियरिंग एसोसिएशन) की प्रांतीय शाखा सोमवार यानी कल लखनऊ में बैठक आयोजित कर रही है, जिसमें सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग करेगी।
मिर्जापुर के EE पर कार्रवाई पर आश्चर्य
प्रदेश के अन्य जनपदों के PWD में कार्यरत लोग मिर्जापुर के प्रांतीय खण्ड में कार्यरत अधिशासी अभियंता देवपाल को सेवानिवृत्त किए जाने से अचरज में हैं क्योंकि देवपाल तथा अन्य कई अभियन्ता कर्मठ अभियन्ताओं में माने जाते हैं। देवपाल पर कुछ वर्ष पूर्व सोनभद्र में तैनाती के दौरान निलंबन की कार्रवाई को राजनीतिक माना गया था। इसमें उल्लेखनीय मुद्दा यह है कि सोनभद्र के मामले की अभी जांच पूरी नहीं हुई है और पाल पर दोषसिद्ध भी नहीं हुआ है।
जाति का मुद्दा
आठ में सात EE के अनुसूचित जाति के होने पर अनुसूचित वर्ग के कान खड़े हो गए हैं। यह मुद्दा अब राजनीति का भी रूप लेने के लिए मचल रहा है और सवाल भी उठने लगा है कि क्या सभी अयोग्य इसी जाति में होते हैं।
वर्ष 2017 में बनी थी लिस्ट
इस मुद्दे को लेकर कहा जा रहा है कि PWD में बड़े पद से सेवानिवृत्त हो चुके एक वरिष्ठ अभियन्ता ने वर्ष-17 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सूची बनाई थी, वह शिकायतों को कम व्यक्तिगत कारणों को ज्यादा ध्यान में रखकर बनाई गई थी। इसमें 52 लोगों को रखा गया था । लिस्ट आउट होने में तीन साल लगे जिसमें अधिकांश सेवा-अवधि पूरी कर रिटायर्ड हो गए जबकि कुछ का देहांत हो गया।
UPEA की बैठक
सोमवार 12 अक्तूबर को लखनऊ में संगठन की बैठक होने जा रही है। इस संबन्ध में संगठन के प्रदेश महासचिव आशीष यादव ने कहा कि संगठन सरकार से इस पर पुनर्विचार की मांग करेगा। क्योंकि यह कार्रवाई भ्रामक सूचना के आधार पर की जा रही है। संगठन किसी एक विभाग का प्रतिनिधित्व नहीं बल्कि समस्त इंजीनियरिंग विभागों का प्रतिनिधि संगठन है। यादव उप्र सिंचाई विभाग में कार्यरत हैं।