अब वह जमाना चला गया जब लोग बेटा होने पर खुश होते थे और बेटी होने पर मायूस हो जाते थे। अब तो हर घर में बेटियां एक परी की तरह मां-बाप, भाई बहन, दादा-दादी सबका प्यार पाती हैं। पिता उसे अपनी पलकों पर बैठा कर रखते हैं तो मां की वह सबसे ज्यादा दुलारी होती है। भाई से तो उसके झगड़े ही खत्म नहीं होते, लेकिन वही दुलारी, प्यारी घर की परी जब किसी दरिंदगी का शिकार हो जाती है तो सिर्फ उसके ही माता-पिता ही द्रवित नहीं होते, हर मां-बाप की आत्मा रोने लगती है।
- एलके सिंह, बलिया
निर्भया की घटना के बाद सरकारों ने कई तरह के कठोर नियम बनाए। फिर भी डर के बीच से बेटियों का जीवन नहीं निकल सका। इसलिए कि इस तरह के हैवान कहीं और नहीं, हमारे बीच ही सामान्य आदमी की तरह रहते हैं। वे कभी अपना बनकर तो कभी हैवान बनकर इस तरह के कारनामों को अंजाम दे देते हैं। यही कारण है कि घर-घर के लोग बेटियों पर निगरानी रखते हैं। जब तक वह घर नहीं आ जाती, घर के लोग चिंतित हाल में रहते हैं। बेटियों को भी यह अच्छा नहीं लगता कि उसके मां-बाप उसे कहीं जाने से मना करें। मां-बाप की भी यही इच्छा होती है कि उनकी बेटी समाज में बेटों की तरह नाम करें, बहुत सी बेटिया ऐसा कर भी रहीं हैं, लेकिन समाज की ऐसी घटनाएं उन्हें और उनकी लाडली को डरने पर मजबूर कर देती हैं।
उत्तर प्रदेश के हाथरस में दलित लड़की के साथ हैवानियत की घटना में जीभ उस बिटिया की कटी..लेकिन सारा गूंगा सारा देश हो गया है। घटना के करीब 15 दिनों बाद पीड़िता की मौत हो गई। अब यूपी के ही बलरामपुर जिले में दलित युवती से गैंगरेप की घटना सामने आई है। 22 साल की कॉलेज छात्रा को किडनैप कर इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया और फिर 2 आरोपितों ने दुष्कर्म किया। लड़की की हालत इतनी बिगड़ गई कि उसकी भी मौत हो गई। 6 दिसंबर 2012 को बलिया की निर्भया के साथ हुई दरिंदगी की घटना बाद से ही बेटियों के पिता देश में कुछ ऐसा इंतजाम चाहते हैं, जिसके तहत बेटियां हर जगह अपने को पूरी तरह सुरक्षित महसूस कर सकें। उन्हें न तो किसी की डरावनी आंखें डरा पाएं, न ही शरारत वाले कोई बोल। वह कहीं भी सहमी न रहें। बलिया की निर्भया के केस में उसकी मां की हिम्मत और संघर्षों का नतीजा है कि उन्होंनें बेटी और दरिंदों के बीच के जंग को अंतिम मुकाम तक पहुंचाया, नहीं तो बहुत से ऐसे केस लाकलाज में थाने तक भी नहीं पहुंच पाते। हाथरस और बलरामपुर में उसी तरह की हैवानियत को अपराधियों ने अंजाम दिया है, लेकिन देश के रहनुमा सोए हाल में सबकुछ देख रहे हैं।
अपना बनकर भी करते घात
हैवानियत के अलावा यौन शोषण के मामले भी समाज में कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं। बहुत से हैवान अपना बनकर पहले घर के लोगों का विश्वास जीतते हैं और फिर एक दिन मौका पाकर दाग लगा देते हैं। ऐसे मामलों में कुछ पीड़ित पक्ष लोक-लाज के भय से मामले को दबा देता हैं तो कुछ लोग हिम्मत कर संबंधितों को हर हाल में सजा दिला देते हैं। इसके कई बड़े उदाहरण देश और प्रदेश में सामने हैं।
यौन शोषण के विरुद्ध लड़ने वाली हो संस्था
हम जिलों की बात करें तो यहां यौन शोषण के विरुद्ध लड़ने वाली कोई संस्था नहीं है। इस तरह की घटनाओं में लोग पहले पुलिस का ही दरवाजा खटखटाते हैं। पुलिस भी ऐसे मामलों में काफी फूंक-फूंक कर कदम रखती है। इसलिए कि पीड़ित पक्ष कई तरह से टूटा हुआ होता है। पुलिस को कार्रवाई के दौरान इस बात का भी ख्याल रखना अहम हो जाता है कि आरोपित पर कार्रवाई भी हो जाए और पीड़ित पक्ष की बदनामी भी न हो। ऐसे में हर जिले में यौन शोषण के विरूद्ध लड़ने वाली एक मजबूत संस्था की जरूरत है जो सबकुछ गोपनीय रखकर आरोपतों को सजा दिलाने का काम करे।
2013 में बने कानून पर हो मतबूत अमल
निर्भया के साथ हुई घटना के बाद वर्ष 2013 में देश में एक नया कानून बना जिसमें महिलाओं को किसी भी तरह के यौन शोषण से बचाव के लिए उन्हें अधिकार दिए गए। एक्ट में यौन शोषण को पूरी तरह परिभाषित किया गया है ताकि अपराधी बच ना सके। बलात्कार के जघन्य मामलों में फांसी की सजा तक मुकर्रर की गई, लेकिन घटनाओं का अंत नहीं हुआ। ऐसे में जानकारों की राय है कि इस कानून पर मजबूती से अमल हो। इस तरह के केस के निस्तारण में लंबा समय न लिया जाए। तभी हैवानयित वाली नीयत का अंत होगा। केवल बेटी बचाओं के नारों से बेटियों की सुरक्षा नहीं हो सकती।
(लेखक बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)