बिहार की एक युवती नेहा सिंह राठौर ने बिहार चुनाव से पहले एक गीत गाया है…बिहार में का बा। इस गीत ने भाजपा और नीतीश सरकार को कटघरे में खड़ा किया है। जनता भी इस गीत को गुनगना रही है। इसके जवाब में भाजपा व जद यू की ओर से भी डिजिटल विंग बिहार विधानसभा चुनाव के लिए जल्द ही गानों का एक कलेक्शन जारी कर रही है। इन गानों के जरिए दोनों दल मिलकर इस प्रश्न का जवाब..बिहार में ई बा..से देगी। इन गानों में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार के उपलब्धियों का उल्लेख किया जाएगा। बिहार से सटे जनपद बलिया में भी उस गीत की चर्चा है। तभी तो रसिक ने हसीं की अंदाज में बतकुच्चन से पूछ लिया…बलिया में का बा…।
रसिक ने बस यूं ही पूछ लिया बलिया में का बा….तो बतकुच्चन भाई बिदक गए। बोले ऐसा क्यों बोल रहे हैं। बलिया में क्या नहीं हैं। यह मंगल पांडेय की धरती है। 1857 में मंगल पांडेय ने जब अंग्रेजों की सेना में बगावत की तो यही बलिया….बागी बलिया हो गया। इसी बलिया के लोकनायक जयप्रकाश नाराययण भी हैं जो आजादी की जंग लड़ने के साथ ही आजादी के बाद भी देश में पनपती तानाशाही के खिलाफ मैदान में कूद पड़े और कांग्रेस सरकार का तख्ता पलट दिया। बलिया के ही चितू पांडेय भी थे, जो 1942 में क्रांतिकारियों के बदौलत देश में बलिया को आजाद होने का खिताब दिलाए। क्या आप पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर को नहीं जानते जो धारा के विपरीत चलकर भी प्रधानमंत्री की कुर्सी तक का सफर किए। अभी के समय में भी यहां के लोग सरकार में दमदारी से अपना राजनीतिक किरदार निभा रहे हैं। यहां के दो विधायक प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। सपा सरकार में भी यहां से तीन विधायक मंत्री रहे। केंद्र में यहां से दो राज्य सभा सांसद और दो लोकसभा सांसद हैं। इनलोगों के बदौलत बलिया का देश-प्रदेश में कितना नाम हो रहा है, इसके बावजूद भी आप पूछ रहे हैं कि बलिया में का बा।
रसिक शांत मन से बतकुच्चन की पूरी बात सुनने के बाद बोले…भइया…फिर भी मेरे सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला। हमने पूछा बलिया में का बा। इसका मतलब महापुरूषों से नहीं, यहां की सुविधाओं से है। माना कि आजादी की जंग में बलिया के कांतिकारियों का किरदार देश भर से अलग था। बाद के दिनो में भी राजनीति में यहां के नेताओं को प्रदेश और केंद्र में मजबूत स्थान मिला, लेकिन बलिया में का बा। इस बात पर बतकुच्चन कुछ देर सोचने लगे…झल्लाते हुए बोले, रसिक भाई अब तू ही बतावअ…बलिया में तोहके का चाहीं। हमरे नजर में त बलिया में अभी के समय में सबकुछ बा, तोहरे जवन चाहीं उहे बतावअ। इतनी बात सुनने के बाद रसिक इतना तो समझ ही गए कि बतकुच्चन किस दल की मानसिकता से बोल रहे हैं, लेकिन रसिक भी कहां मानने वाले थे, बोले..बतकुच्चन भाई हमके जवन चाहीं उ बलिया के तमाम जनता के भी चाहीं। एह से ध्यान से सुनअ…बलिया में बढि़या सड़क चाहीं, हर रोग के उपचार बदे बढि़यां इंतजाम चाहीं, लडि़कन के पढ़े बदे मेडिकल कालेज, इंजिनियरिंग कालेज सहित सरकारी विद्यालय में भी पढ़ाई के अच्छा इंतजाम चाहीं। बेरोजगार लडि़कन के रोजगार पावे बदे कवनो कंपनी या बड़हन उद्योग चाहीं। शहर में जल जमाव से मुक्ति चाहीं। चमचमात अंदाज में एनएच-31 रोड चाहीं। बलिया से कहीं भी जाए बदे ट्रेन चाहीं, बस चाहीं…का इ सब दे सकेलअ तू। रसिक की इन बातों ने बतकुच्चन की बोलती ही बंद कर दी।
अब बतकुच्चन ठंडा पड़ते हुए बोले…रसिक भाई इ सरकार के कामकाज ह, धीरे-धीरे ही सब होई, लेकिन रसिक थमते हुए नजर नहीं आ रहे थे। अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोले…भइया रहनुमाओं की तरह आप भी बात न करें। जनता बड़ी उम्मीद से वोट करती है, इस आस में कि फलां सरकार में उसके दिन बहुरेंगे, लेकिन हालात में कोई परिवर्तन होते नहीं दिखते। एनएच-31 जैसी सड़क तीन साल से उखड़ी पड़ी है। ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में कोई इतजाम नहीं है। बहुत से अस्पताल तो चिकित्सकों के अभाव में बंद पड़े हैं। इंटर कालेजों में दो या तीन शिक्षक पूरे कालेज का बोझ उठा रहे हैं। वहां मुख्य विषयों को पढ़ाने का कोई इंतजाम नहीं है। बच्चे कोचिंग में जाकर महंगे फीस देकर अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। परिषदीय विद्यालयों में पढ़ाई की जगह सरकारी भ्रष्टाचार चरम पर है। जिला अस्पताल में ट्रामा सेंटर अभी तक चालू नहीं कराया। उसमें करोड़ों की मशीन धूल फांक रही है। इधर कोरोना मरीजों के लिए एल-2 अस्पताल चालू करने को मुख्यमंत्री आदेशित किए थे, लेकिन उन आदेशों को स्वास्थ्य महकमा अपनी जेब में लेकर घूम रहा है। थाना हो या तहसील कहीं भी दबंगों का राज है, फिर भी कह रहे सब ठीक हो जाएगा। मेरा सवाल है….कब तक। अभी के समय में किसानों के संबंध में सरकार की ओर से बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। मक्का उत्पादन के संबंध में कहा जा रहा है कि सरकार किसानों का मक्का 1850 रुपये कुंतल के दर से खरीदेगी, लेकिन कहीं भी क्रय केंद्र स्थापित नहीं किया गया है। किसान अपना मक्का 900 से 1000 रुपये कुंतल के दर से गांव के महाजनों से बेच दिए। ऐसे में अब समर्थन मूल्य 1850 या क्रय केंद्र का क्या मतलब है। इन सब बातों का जवाब बतकुच्चन भला कैसे दे पाते। उनके दिमाग में भी तो वही चल रहा था…जो जनता के राजाओं के दिमाग में चल रहा है।