अपनों के बीच एक साधारण व्यक्ति की तरह प्रस्तुत हुए उप सभापति हरिवंश। शुचिता व पुरानी परंपराओं को जिंदा रखने की नई पीढ़ी को दी सीख। दिनभर होती रही गांव-समाज पर चर्चा, जुट रहे सिताबदियारा के लोग। हर किसी से सहज भाव से मिल रहे उप सभपति हरिवंश।
- एलके सिंह
बलिया : राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने राजनीति के गौरवशाली मूल्यों को अक्षुण्ण बनाए रखने का आहृवान किया है। रास का दूसरी बार उपसभापति चुने जाने के बाद पहली बार अपने गांव सिताबदियारा पहुंचे हरिवंश का युवाओं ने जोरदार स्वागत किया। हरिवंश ने नई पीढ़ी से कहा कि वे राजनीति की शुचिता व पुरानी परंपराओं को जिंदा रखें। यही आज की पीढ़ी का नैतिक धर्म है। बिहार में चल रहे चुनाव के कारण उपसभापति मीडिया के सवालों का जवाब नहीं दिए। वह गांव-समाज की चर्चा में ही अपनों के बीच उलझे रहे। उपसभापति के सहज -सरल स्वभाव को देखकर गांव के लोगों ने कहा कि आज के परिवेश में साधारण जीवन-उच्च् विचार के संवाहक हैं हरिवंश। ग्रामीणों का कहना था कि मौजूदा दौर में किसी व्यक्ति को साधारण राजनीतिक पद मिलते ही उसके आचार-व्यवहार में बदलाव दिखने लगता है। उसके पीछे लाव-लश्कर संग गाडियों का एक बड़ा काफिला चलने लगता है, लेकिन पत्रकारिता की दुनिया से निकलकर राज्यसभा में उप सभापति बने हरिवंश नारायण सिंह देश में एक अलग उदाहरण हैं। अपने गांव सिताबदियारा के दलजीत टोला में मात्र एक गाड़ी पर दो सुरक्षा गार्डों के साथ पहुंचे हैं हरिवंश। घर पर भी बरामदे में कोई विशेष इंतजाम नहीं था, एक चौकी पर बैठे हरिवंश सभी से सहज भाव से बातें करते नजर आए।
पीछे कभी नहीं दिखा गाड़ियों का काफिला
शनिवार की सुबह हरिवंश अपने गांव के लोगों के बीच थे। सिताबदियारा के 27 टोलों के लोग बारी-बारी से उनसे मिलने बधाई देने के लिए पहुंच रहे थे। लगभग लोगों का कहना था कि हरिवंश जब भी अपने गांव आए, कभी उनके पीछे गाड़ियों का काफिला नहीं रहा। यही सादगी उन्हें अन्य लोगाें से अलग कर देती है। उप सभापति मुंह पर मास्क लगाए तो कभी गमछा से मुंह ढ़के लोगों से बोल रहे थे..आपलोग गांव पर सुरक्षित हैं, मै बाहर से आया हूं, इसलिए हमसे दूरी बनाकर ही बैठें और बात करें। इसके बावजूद गांव के लोग कहां मान रहे थे। कोई गांव की उखड़ी सड़क की बात कह रहा था तो कोई महुली में गंगा नदी के ऊपर पक्का पुल निर्माण की मांग कर रहा था। सिताबदियारा के मुखिया सुरेंद्र सिंह ने कहा कि महुली में आपके प्रयास से पीपा पुल जरूर मिला, लेकिन जब तक यहां पक्का पुल नहीं बन जाता यहां के लोगों की समस्याएं खत्म नहीं होंगी। उनके दरवाजे पर उन्हें शिक्षा देने वाेले गुरू हरिवंश सिंह भी मौजूद थे। उन्होंने भी महुली में पक्का पुल निर्माण की बात पर जोर डाला। इसके अलावा गांव-समाज के वर्तमान स्वरूप पर भी कई तरह की बातें हुईं। देर शाम सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त, भाजपा नेता मुक्तेश्वर सिंह भी उनसे मुलाकत करने पहुंचे थे।
संसदीय कार्यालय पर हुआ भव्य स्वागत
गांव पर अपने लोगों के बीच उप सभापति हरिवंश ने सिताबदियारा के संबंध में अपना अनुभव साझा किया। सिताबदियारा के 45 साल पूर्व की तस्वीर को सामने रखा तो सभी को यह महसूस करना पड़ा कि कभी एक सूत्र में बंधा 27 टोले वाला सिताबदियारा में अब उस तरह का समाज नहीं रहा। उप सभापति ने बताया तब सचमुच गरीबी थी। दो नदियों का घेरा, विशाल दरियाव (नदियों का पाट) पार करना होता था। घाघरा उस पार रिविलगंज या इधर बैरिया, रानीगंज ही सबसे बड़े शहर लगते थे। न सड़क, न अस्पताल, न बिजली, न फोन, चार-पांच महीने पानी में ही डूबे-घिरे रहना पड़ता था। वरदान रहा कि इस इलाके में जेपी का जन्म हुआ। पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी ने इस इलाके का उद्धार आरंभ किया, वहीं बिहार के हिस्से वाले गांवों की सूरत बदली सीएम नीतीश कुमार ने। अब गांव में बिजली है, अस्पताल है, सड़कें हैं, स्कूल हैं, लेकिन सिताबदियारा में 27 टोले वाला वह समाज नहीं रहा, जो 45 साल पहले था।
तब एक बुजुर्ग का आदर पूरा गांव करता था
उप सभापति ने यह भी बताया कि तब गांव के एक नैतिक इंसान या बुजुर्ग का आदर पूरा गांव करता था। 1970 में छपरा के रिविलगंज से एक आदमी दो घड़ा ताड़ी लेकर दीयर में उतरा। तब हमारे चाचा चंद्रिका बाबू (जेपी के सहयोगी) ने संबंधित टोले के बुजुर्ग को खबर कराई। वह ताड़ी उसी तरह फिर उसी घाट पर वापस चली गई, इस हिदायत के साथ कि दोबारा इस पार न आए, लेकिन आज शराब के बाजार का विस्तार हो गया है। दशकों तक उस घटना की चर्चा हम सुनते रहे। पंचों का फैसला सर्वमान्य होता था। आज बाप को बेटा सुनने के लिए तैयार नहीं। पहले एक बुजुर्ग की अवहेलना 27 गांव नहीं कर पाते थे। नैतिक बंधन की यह बाड़, गरीबी का चोला उतारते गांवों ने अब तोड़ दिया है। पहले रामायण, कीत्तर्न, भजन, सत्संग, साधु-संतों सेवा में लोग मुक्ति तलाशते थे, अब शराब, ठेकेदारी और राजनीति मुक्ति के नए आयाम हैं। सबसे बड़ा फर्क रिश्तों में आया है। आज की युवा पीढ़ी को गांव के इस सामाजिक बदलाव पर ज्यादा गंभीर होने की जरूरत है।
(लेखक बलिया के वरिष्ठ पत्रकार हैं)