राज्य सभा के उप सभापति बनने के बाद पहली बार अपने गांव गांव सिताबदियारा आए हरिवंश नारायण सिंह, इस बार भी अपनी सरलता का वही परिचय दे गए। वह जब भी गांव आए किसी को नहीं लगा कि वह किसी उच्च सदन के उप सभापति हैं। सुबह में खेतों की तरफ चले जाते, दोपहर में अपने लोगों से गांव-समाज की चर्चा में उलझे रहे। शाम को भी चाय संग वही पुरानी बातें।
- एस पांडेय
बलिया डेस्क : जेपी के गांव सिताबदियारा के निवासी हरिवंश नारायण सिंह इस बार कुल आठ दिनों तक अपने लोगों के साथ सीमित संसाधन के बीच रहे। कभी बिजली रहती थी तो कभी मोबाइल का नेटवर्क भी गायब हो जाता। इसके बावजूद भी किसी से कोई शिकायत नहीं। वह सभी से बोल रहे थे..गांव में नैतिक बंधन की वह डोर कभी न टूटे, ऐसा प्रयास सभी को करनी चाहिए। गांव की इसी चर्चा के बीच कई लोग आए और उन्हें सम्मानित किया।
चांददियर के प्रधान प्रतिनिधि वीरेंद्र यादव भी बड़े की आदर के साथ उन्हें अंगवस्त्रम और राधा-कृष्ण की प्रतिमा भेंट की। इसी क्रम में दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार लवकुश सिंह और अमर उजाला के जयप्रकाशनगर संवाददाता सुनिल पांडेय ने उन्हें भगवान गणेश की प्रतिमा भेंट की। उप सभापति की ओर से भी खुद के जीवन पर लिखी पुस्तक जनसरोकार के पत्रकार हरिवंश, भेंट की गई। इस दौरान जेपी इंटर कालेज के शिक्षक राजेश सिंह ने सभी लोगों का ख्याल रखने में कोई कमी नहीं किया। उप सभापति हरिवंश जी के दरवाजे पर जो भी पहुंचा, वह उनसे बिना बात किए नहीं लौटने दिए।
सामाजिक बदलाव पर हुई खुलकर चर्चा
इस बैठकी में गांव के सामजिक बदलाव पर खुलकर चर्चा हुई। गांव के लोगों ने बताया कि अब हर गांव का माहौल बदल चुका है। अब वह बात नहीं रही कि शाम के समय अकारण घूमने वाले किसी युवा को किसी भी बिरादरी का कोई बुजुर्ग डांटकर यह पूछ ले कि शाम को वह क्यों घूम रहे हैं। गांव में नैतिक बंधन की वह डोर अब तेजी से टूटने लगी है। सभी के अपने-अपने पक्ष के राजनीतिक दल और उसके नेता हैं। गांव के समाज को दूषित करने वालों के खिलाफ गिनती लोग विरोध कर पाते हैं।
गांव के ऐसे माहौल की चर्चा सुनने के बाद उप सभापति ने कहा..मै आज से 50 साल पहले गांव छोड़ा था। मुझे याद है तब के समय में गांव का कोई भी बुजुर्ग, किसी भी जाति का कोई बुजुर्ग ऐसे युवा को कान पकड़कर डांट देते थे जो अकारण शाम को पढ़ने के समय सड़क पर घूमते नजर आते थे। उन्होंने कहा कि यह बदलाव क्यों आया, इस पर सभी वर्ग के लोगों को मिल कर मंथन चाहिए। हम कितना भी बड़ा हो जाएं, गांव के उस नैतिक बंधन से मुक्त नहीं हो सकते। आज लक्ष्मी की खनक से गांव के लोगों का मन-मिजाज बदल रहा है। इसका मतलब यह भी नहीं होना चाहिए कि हम अपनी सभी परंपराओं और संस्कारों की ही तिलांजलि दे दें।
बुजुर्गों की बैठक में सुलझ जाते थे बड़े विवादित मामले
उप सभापति ने कहा कि यह वही गांव है जहां बड़े से बड़े विवादित मामले गांव के बुजुर्गों की एक छोटी बैठक में ही सुलझ जाते थे। अब मामूली विवाद पर पर भी बड़े वारदात हो जाते हैं। गांवों में अब कई छोटे-छोटे बाजार हो चले हैं, जिसे गांव की भदेस भाषा में चट्टी कहते हैं। ये चट्टी या मामूली बाजार शहरीकरण की आरंभिक सीढ़ियां हैं। ये सीढ़ियां गांवों के पुराने ताने-बाने को छिन्न-भिन्न और नष्ट कर रही हैं। तुरहा-तुरहिन, कुम्हार, हजाम, धोबी, छोटे दुकानदार धीरे-धीरे गायब या नष्ट होते जा रहे हैं। गांवों में समृद्धि आई है या समृद्धि की जगह कह लें कि वह भयावह गरीबी-दुर्दिन अब नहीं रही तो शायद ज्यादा सही अभिव्यक्ति होगी, लेकिन हमें गांव के समाज के प्रति ज्यादा गंभीर होने की जरूरत है। कोरोना काल में सभी को याद होगा कि शहर में रहने वाले लोग गांव की ओर तेजी से भाग रहे थे। इसलिए सभी को इस बात का ज्यादा ध्यान रखना चाहिए कि गांव तरक्की करे, लेकिन आपसी संबंध कभी विखंडित न हो। इस दौरान उप सभापति के बड़े भाई रघुवंश नारायण सिंह जो डा.भीम राव आंबेडकर विश्व विद्यालय में इलेक्ट्रिक विभाग में इंजीनियर थे, अब सेवानिवृत होकर वहीं मुजफ्फरपुर में रहते हैं, वह भी इस चर्चा में मौजूद थे। गांव के आनंद बिहारी सिंह, जैनेंद्र कुमार सिंह, सुनील सिंह, संजय प्रसाद साह, बच्चालाल सिंह सहित और भी बहुत से लोग मौजूद रहे।