अमेरिकी चुनाव प्रणाली की वजह मात्र से इसकी घोषणा में देर हो रही है, पर बची हुई मतगणना के रुझानों से साफ है कि 540 के इलेक्टोरल कालेज में जो बिडेन को साफ बहुमत मिल रहा हैं। इसके बावजूद, जब सिर्फ आधे वोटों की गिनती हुई थी, ट्रंप ने अपने को विजेता घोषित कर दिया और आगे की गिनती को एक धोखा, अमेरिका के साथ विश्वासघात बताना शुरू कर दिया।
News Desk : यह कहने में अब ज़रा भी संकोच नहीं रह गया है कि ट्रंप पराजित हो चुके हैं। अमेरिकी चुनाव प्रणाली की वजह मात्र से इसकी घोषणा में देर हो रही है, पर बची हुई मतगणना के रुझानों से साफ है कि 540 के इलेक्टोरल कालेज में जो बाइडेन को साफ बहुमत मिल रहा हैं। इसके बावजूद, जब सिर्फ आधे वोटों की गिनती हुई थी, ट्रंप ने अपने को विजेता घोषित कर दिया और आगे की गिनती को एक धोखा, अमेरिका के साथ विश्वासघात बताना शुरू कर दिया। गिनती को रुकवाने के लिए उन्होंने अदालतों तक में जाने की बात कहनी शुरू कर दी। इस प्रकार, ट्रंप साफ तौर पर पराजित तो हो रहे हैं, और उनके और बाइडेन के बीच मतों का फ़ासला भी कम नहीं रहने वाला है, इसके बावजूद कहना पड़ेगा कि उनकी इस पराजय के साथ भी उनके चरित्र का ढीठपन चुनाव परिणाम के अंत तक जुड़ा हुआ है। अंतिम समय तक यह संशय कायम है कि हार कर भी ट्रंप अमेरिकी जनता का पिंड छोड़ेंगे या नहीं। ट्रंप का यह आचरण बताता है कि वे किस हद तक एक आत्ममुग्ध, आत्मकेंद्रित चरित्र हैं। अपने से बाहर उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई देता है। दूसरों पर या किसी भी बात पर उल्टी-सीधी टिप्पणियां करने के पहले वे जरा भी सोचते नहीं हैं, क्योंकि उन्हें दूसरों की किसी प्रतिक्रिया की परवाह ही नहीं है। मनोविश्लेषण के अनुसार हर आदमी के मस्तिष्क का बड़ा हिस्सा वास्तव में अन्य का क्षेत्र हुआ करता है। उसकी हर अनुभूति में अन्य से विमर्श की बड़ी भूमिका होती है। किसी भी चीज को कोई सीधे ग्रहण नहीं करता है। जिस अनुपात में कोई चीज़ों को सीधा ग्रहण करने लगता है, अन्यों की मध्यस्थता के बिना, उसी अनुपात में वह विक्षिप्त, संवेदनहीन, और रुच्छ भी हुआ करता है।राजनीति में अक्सर ऐसे चरित्रों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण पाया जाता है। आम लोगों का बड़ा हिस्सा अपने जीवन की दमित परिस्थितियों के कारण ही इसके प्रति आकर्षित होता है। ऐसे चरित्रों के रुच्छ, विवेकशून्य और अक्सर निष्ठुर व्यवहार में बहुत सी चीजों को देख कर भी अनदेखा करने के अभ्यस्त दमित भाव के लोग अपनी दमित भावनाओं की अभिव्यक्ति देखते हैं। राजनीति में तथाकथित कुलीनतावाद के खिलाफ भदेसपन का सौन्दर्य भी कुछ ऐसा ही है और अक्सर ऐसे चरित्र अजीब प्रकार से अपने पीछे लोगों की भीड़ को आकर्षित कर लेते हैं। ट्रंप अमेरिकी राजनीति का ऐसा ही एक निष्ठुर, बेपरवाह चरित्र है जो अजीब किस्म का भदेसपन लिए हुए हैं। वह मुंहफट है और राजनीति के किसी भी प्रचलित शील के प्रति लापरवाह। वह अपने पैसों और शक्ति के बल पर वहां की राजनीति के अन्य सभी लोगों को अपने पैरों की जूती और प्रचलित मान-मर्यादाओं को नग्न तिरस्कार की वस्तु मानता है। इसीलिए वहां की जनता का एक कम पढ़ा-लिखा पिछड़ा हुआ हिस्सा उसे बड़ी हसरत भरी निगाहों से देखता है। हर कोई इस बात को जानता है कि ट्रंप से न उनका कुछ भला होने वाला है न अमेरिका का। फिर भी वह अमेरिकी राजनीति के पारंपरिक रूप को पटखनी देने की जिस प्रकार की हुंकारें भरता है, उससे इन लोगों को कुछ वैसा ही आनंद मिलता है जैसा डब्लूडब्लूएफ की कुश्तियों में पहलवानों की थोथी चिघ्घाड़ों पर लोग उत्तेजना में पागल हो जाते हैं या मज़े में लहालोट। ट्रंप खुद ऐसी कु़श्तियों के आयोजन कराते रहे हैं। ट्रंप का पूरा जीवन सेक्स और हिंसा के ऐसे ही तमाम कुत्सित प्रयोगों का पिटारा रहा है। बड़ी संख्या में औरतों ने ट्रंप पर बलात्कार के आरोप लगाए हैं और ट्रंप पूरी बेशर्मी से उन सब आरोपों पर खीसे निपोरते रहे हैं। ऐसे लोग बार-बार जनतांत्रिक राजनीति में किसी तूफान की तरह आते हैं और भारी तबाही मचा कर पट से बाहर भी हो जाते हैं।
ट्रंप की हार अमेरिका में जनतंत्र के ताकत की सूचक
अमेरिका के चुनाव के बीच ट्रंप के सारे आचरणों को देख कर हमें यह लगा था कि अमेरिका जैसे इतने शक्तिशाली जनतंत्र में ट्रंप की तमाम बेहूदगियां, खास तौर पर कोरोना के प्रति उसके मूर्खतापूर्ण नजरिये और भारी संख्या में लोगों की मृत्यु के प्रति उसकी नग्न संवेदनहीनता को जरा भी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चुनाव में उसके परखचे उड़ जाएंगे, पर चुनाव परिणामों से हमारा वह अनुमान सही साबित नहीं हुआ है। ट्रंप की लोकप्रियता में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई थी। यह वास्तविकता ही अमेरिकी जनतंत्र में कहीं बहुत गहरे पैठ चुकी कई विकृतियों को जाहिर करती है। वहां के जनतंत्र को जनता के हितों को साधने वाली एक व्यवस्था के रूप में लोगों का विश्वास पुख्ता करने के लिए शायद आगे एक और लंबी यात्रा को तय करना होगा, जो लोग अमेरिका को पूंजीवादी बता कर कुछ इस प्रकार का संदेश देना चाहते हैं कि वहां के तमाम लोग पूंजीवादी हैं, अर्थात मुनाफेबाज, हम उनके इस नजरिये को एक बहुत ही तंग और विकृत नजरिया मानते हैं। अमेरिका को दुनिया के श्रेष्ठ मस्तिष्कों का एक विलय-पात्र भी कहा जाता है, जहां व्यक्ति के श्रम का बहुत मान है। ऐसे लोगों की मानसिकता की चर्चा परजीवी मुनाफाखोरों की मानसिकता से कत्तई नहीं की जा सकती है। इसी प्रकार हम उन महापंडितों में भी नहीं है जो अमेरिकी चुनाव के प्रति एक उदासीन भाव का अभिनय सिर्फ यह कहते हुए करते हैं कि वहां किसी के भी आने से हमारे लिए, और दुनिया के लिए भी कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। इस मामले में नोम चोमस्की की इस बात को हम एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशक की तरह लेते हैं, जिसमें वे कहते हैं कि आज के विश्व में अमेरिका की स्थिति ऐसी है कि उसकी नीतियों में मामूली सा परिवर्तन भी विश्व की परिस्थितियों के लिए एक बड़े परिवर्तन का सूचक होता है। इसीलिए अमेरिका में ट्रंप के स्तर के एक स्वेच्छाचारी, दक्षिणपंथी निष्ठुर चरित्र की पराजय का हम दोनों हाथ खोल कर स्वागत करेंगे। ट्रंप की हार अमेरिका में जनतंत्र की ताकत की सूचक है और सारी दुनिया के जनतंत्र प्रेमी लोगों के लिए एक उत्साहजनक घटना होगी।
(अरुण माहेश्वरी वरिष्ठ लेखक और चिंतक हैं, वह कोलकाता में रहते हैं।)