आस्थावानों ने महर्षि भृगु, दर्दर मुनि व बाबा बालेश्वर की मंदिर में जाकर मात्था टेका। पौराणिक काल से ही भृगुक्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा को जन समागम की उदात्त, अलौकिक परंपरा चली आ रही है। सुबह से दोपहर तक श्रद्धालुओं का जो रेला संगम तट की तरफ चला, वह दोपहर बाद तक चलता रहा।
बलिया : कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा व तमसा के संगम तट पर स्नान करने के लिए आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा। महर्षि भृगु की पावन धरती पर हजारों लोगों ने गंगा में डुबकी लगाने के बाद पूजा अर्चना की। कोरोना को लेकर इस साल हर साल से कम भीड़ थी। दूर-दराज के लोग कम संख्या में स्नान करने पहुंचे थे। आस्थावानों ने महर्षि भृगु, दर्दर मुनि व बाबा बालेश्वर की मंदिर में जाकर मात्था टेका। पौराणिक काल से ही भृगुक्षेत्र में कार्तिक पूर्णिमा को जन समागम की उदात्त, अलौकिक परंपरा चली आ रही है। सुबह से दोपहर तक श्रद्धालुओं का जो रेला संगम तट की तरफ चला, वह दोपहर बाद तक चलता रहा। शहर के पास तक ग्रामीण क्षेत्रों से श्रद्धालु आकर महावीर घाट के रास्ते पैदल संगम तट तक पहुंचे। इसके बाद वहां पर स्नान गंगा मइया का पूजन अर्चन करने के बाद फिर पैदल ही शहर की तरफ आ गए। देर शाम श्रद्धालु विभिन्न साधनों से अपने घर को निकले। मोटरी-गठरी लिए लोग चलते रहे, बस चलते रहे। गांव में बढ़ा शहरी प्रभाव भीड़ के कुछ जनों के पीठ बैग और पहनावे से ही झलकता रहा बच्चों की बांह पकडे़, बूढ़ों को सहारा देते, औरतों को सहेजते लोग मुस्तैदी से चल रहे थे। महिलाएं लोकगीत और गंवई भजनों से माहौल को दिव्य बना रही थीं। स्नानार्थियों को किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए जिला प्रशासन भी हर मोड़ पर पूरी मुश्तैदी से सेवा में जुटा रहा।
संगम तट पर दिखा गोड़ऊ नृत्य
संगम तट पर कई तरह की परंपरा नजर आई। गोड़ऊ नृत्य बरबस लोगों को अपनी ओर खींच रहा था। लोग इस नृत्य में शामिल कलाकारों को कुछ न कुछ न दें रहे थे। वहीं मुंडन संस्कार, गौ दान, गंगा पूजन आदि की रस्में लोग बड़े ही श्रद्धा व विश्वास के साथ निभा रहे थे।
सतुआ व मूली का किया सेवन
कार्तिक पूर्णिमा स्नान के बाद परंपरा के अनुसार सतुआ का सेवन भी किया जाता है। ऐसे में लोगों ने संगम तट के अलावा रास्ते में सुविधा देख सतुआ व मूली का सेवन किए। कुछ लोगों ने दुकानों पर पहुंच कर सुतआ खाया। इस तरह की दुकानों पर काफी भीड़ दिखी।