मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधार कानून को किसान अपने हित में नहीं मान रहे हैं। इसके खिलाफ किसान एकजुट होकर आवाज बुलंद करने लगे हैं। किसानों की सबसे ज्यादा नाराजगी भले ही हरियाणा और पंजाब में देखने को मिल रही है, लेकिन यूपी के किसानों में भी गुस्सा कम नहीं है। किसान आंदोलन के समर्थन में आम आदमी पार्टी, आरजेडी, टीएमसी, समाजवादी पार्टी समेत 14 दलों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का समर्थन का किया है। यूपी में सपा दमदारी से विरोध में उतर गई है। हर जिले में सपा के कार्यकर्ता किसान यात्रा निकाल रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष रामगोविंद ट्रैक्टर से पहुंचे बांसडीह तहसील
बलिया : किसान बिल को लेकर सपा कार्यकर्ता दर्जनों ट्रैक्टर से सैकड़ों की संख्या में विधानसभा में विपक्ष के नेता रामगोविंद चौधरी के नेतृत्व में सोमवार बांसडीह तहसील मुख्यालय को रवाना हुए, जहां किसान बिल वापसी को लेकर उप जिलाधिकारी बांसडीह को ज्ञापन सौंपा। इसके पूर्व श्री चौधरी ने कहा कि जब तक किसान बिल वापस नहीं होता या उसे निरस्त नहीं किया जाता तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा।
उन्होंने सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को नजरबंद किए जाने की भी निंदा की और कहा कि भाजपा सरकार लोकतंत्र की गला घोंट रही है। मौजूदा किसान बिल किसान हित में बिल्कुल नहीं है बल्कि इसका लाभ पूंजीपति उठाएंगे। श्री चौधरी ने विपक्ष द्वारा 8 नवंबर को भारत बंद का समर्थन करते हुए कहा कि विभिन्न किसान संगठनों के साथ मिलकर सपा भी इस बंद में अपनी सहभागिता निभाएगी। इसी क्रम में जिला मुख्यालय पर जिलाध्यक्ष राजमंगल यादव, पूर्व मंत्री नारद राय के नेतृत्व में सपा के लोगों ने प्रदर्शन कर किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरा।
बैरिया विधान सभा में सूर्यभान सिंह ने चलाया ट्रैक्टर
समाजवादी पार्टी किसान आंदोलन के समर्थन में सात दिसंबर से प्रदेश भर में किसान यात्राओं का आयोजन कर रही है। इसी क्रम में बैरिया विधान सभा में सपा नेता सूर्यभान सिंह ने जेपी के गांव सिताबदियारा जयप्रकाशनगर में ट्रैक्टर चलाकर अनशनरत किसानों का समर्थन किया। केंद्र सरकार के तीनों कृषि बिल को गलत बताते हुए हुए उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार किसानों पर दुश्मनों की तरह कहर बरपा रही है। भाजपा का चरित्र देख सभी को इमरजेंसी का याद आ रही है। कुछ ऐसा ही हुआ था जब जेपी 1974-75 में केंद्र सरकार की नीतियों के विरूद्ध आंदोलन का शंखनाद किए थे। उस वक्त भी सारा देश जेपी के साथ खड़ा हो गया था और सरकार देश के लोगों पर कहर बरपा रही थी। आज किसानों के साथ भाजपा सरकार भी उसी तरह का व्यवहार कर रही है। किसान हमारे पालनहार है। केंद्र सरकार नए तीनों काले कृषि बिल को जब तक वापस नहीं लेती, यह आंदोलन नहीं थमेगा। उन्होंने बताया कि यूपी में समाजवादी पार्टी कृषि कानून के खिलाफ सोमवार को सूबे के हर जिले में किसान यात्रा निकाल रही हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव स्वयं किसानों के हक में आवाज बुलंद कर रहे हैं। जब तक सरकार इस बिल को रद्द नहीं करती यह आंदोलन चलता रहेगा।
कांग्रेस सहित 14 दलों ने किया किसान आंदोलन का समर्थन
काले कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों द्वारा 8 दिसंबर को बुलाए गए भारत बंद का विपक्ष ने समर्थन किया है। कांग्रेस ने कहा है कि वह उस दिन देश भर में सभी जिला और राज्य मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन करेगी। कई राज्यों में कांग्रेस की या उसकी साझा सरकार होने की वजह से यहां भारत बंद का वृहद असर देखने को मिल सकता है। आम आदमी पार्टी, आरजेडी, टीएमसी, समाजवादी पार्टी समेत 14 दलों ने बंद के समर्थन का ऐलान किया है। केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ बीते 11 दिनों से लाखों किसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को बाहर से घेर कर बैठे हैं और रोज उनके समर्थन में देश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों किसान, छात्र और तमाम जनवादी संगठनों के लोग दिल्ली पहुंच रहे हैं। इस बीच बड़ी खबर आई है कि भारतीय पर्यटक परिवहनकर्ता एसोसिएशन (ITTA) और दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन ने किसानों के समर्थन में 8 दिसंबर को हड़ताल की घोषणा की है। इससे पहले 1 दिसंबर को ऑल इंडिया ट्रांसपोर्ट, दिल्ली गुड्स ट्रांसपोर्ट, टैक्सी, ऑटो, टेंपो ट्रांसपोर्ट की यूनियनें किसानों के आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा कर चुके हैं।
किसानों के आंदोलन पर ही टिकी देश भर की निगाहें
इस समय पूरे देशवासियों के जेहन में सरकार को लेकर एक ही बात सवाल बनकर घूम रही है कि किसानों के मुद्दे पर वह क्या करेगी। कानूनों को रद्द करेगी या किसी समझौते में जाएगी या फिर तीन-तिकड़म और साजिश करके आंदोलन को तोड़ देगी। ये कई सवाल हैं जिनका उत्तर भविष्य के गर्भ में है, लेकिन पांच दौर की वार्ताओं के बाद कुछ स्पष्ट संकेत जो मिल रहे हैं उनके मुताबिक सरकार किसी भी कीमत पर कानूनों को रद्द करने के मूड में नहीं है। यह बात अलग है कि वह कुछ समझौतों के लिए तैयार हो गई है। उसमें भी कोई ऐसा समझौता नहीं होगा जो कानूनों के असर को किसी भी रूप में कम करता हुआ दिखे। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सरकार के उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि तीनों कानूनों को रद्द करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है, लेकिन सभी दूसरे विकल्प खुले हुए हैं और सरकार उन सब पर बात करने के लिए भी तैयार है।