बोले सांसद-विफल होगा किसानों के रूप में विरोधी दलों का चलाया जा रहा आंदोलन। प्रधानमंत्री की लोकप्रियता से परेशान होकर प्रायोजित आंआंदोलन करने का लगाया आरोप। किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से होती है, आंदोलनकारी कह रहे है पहले कृषि कानून वापस लो फिर होगी बात, यह उचित नहीं है।
बलिया : नए कृषि बिल के खिलाफ किसानों के रूप में विरोधी दलों द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन जल्द ही विफल होगा। जो लोग 1977 में मुरारजी देसाई सरकार में शामिल होकर इस कानून को लागू किए थे, आज वही विरोध कर रहे हैं। यह बातें भारतीय किसान मोर्चा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त ने कही। वह सोनबरसा स्थित अपने सांसदीय कार्यालय में पत्रकारों से मुखातिब थे। सांसद ने कहा 1977 में यह कानून मुरारजी देसाई की सरकार ने लागू किया था, तब पश्चिम बंगाल में ज्योति बसु मुख्यमंत्री थे। उन्होनें इस कानून को पश्चिम बंगाल में लागू किया था। त्रिपुरा में भी बामपंथियों की सरकार थी, वहां भी यह कृषि कानून लागू हुआ था। आज बामपंथी इस कानून का विरोध कर रहे है। इन्हें जनता को बताना होगा कि कृषि कानून को लागू करने वाले ज्योतिबसू सही थे या यह लोग सही हैं। ठीक इसी तरह महाराष्ट्र में शरद पवार मुख्यमंत्री थे, वहां भी यह कानून लागू हुआ था, शरद पवार उस समय गलती किए थे या अब गलती कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में चौधरी चरण सिंह, राजनरायन जैसे बड़े समाजवादी नेताओं ने इस कानून का समर्थन किया था। ऐसे में समाजवादी पार्टी को स्पष्ट करना चाहिए कि चौधरी चरण सिंह व राजनरायन ने सही किए थे या अब की समाजवादी पार्टी सही कर रही है। वे लोग गलत किए थे। केरल में वामपंथियों की सरकार है लेकिन वहां किसानों से प्राइवेट एजेंसियां खरीदारी करती है। एमएसपी वहां लागू नहीं है। बामपंथियों को इसे पर भी स्थिति स्पष्ट करना चाहिए। सांसद ने बताया कि 1980 में इंदिरा गांधी की कांग्रेसी सरकार बनी तब मुरारजी देसाई के कृषि कानून को रद्द कर दिया गया। पिछले लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र में व भाजपा के घोषणा पत्र में नया कृषि कानून लागू करने का वादा किया गया था। कांग्रेस पर जनता ने भरोसा नहीं किया, हमारी सरकार बनी और हम लोगों ने वही कृषि कानून लागू किया तो विपक्षी दलों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। उन्होंने कहा कि किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से होती है, आंदोलनकारी कह रहे है पहले कृषि कानून वापस लो फिर होगी बात, यह उचित नहीं है। विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं है, हमारे प्रधानमंत्री की लोकप्रियता से परेशान होकर वे इस तरह का आंदोलन प्रायोजित कर रहे हैं।