यह किसान आंदोलन एक व्यापक जनांदोलन की जमीन तैयार कर रही है। देश को जीवन देने वाले किसान समुदाय ने अपनी संप्रभुता का दावा जिस सूझबूझ से पेश किया है। उससे पूरे जन जीवन में एक नई उम्मीद पैदा हुई है : सूर्यभान सिंह
देशव्यापी किसान आंदोलन ने समाज के सभी हिस्सों में एक नई जागृति ला दी है। सरकार या उसके समर्थक बोल रहे हैं किसान आंदोलन जनता द्वारा नाकारे गए दलों का प्रायोजित आंदोलन हैं, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि यह किसान आंदोलन एक व्यापक जनांदोलन की जमीन तैयार कर रही है। देश को जीवन देने वाले किसान समुदाय ने अपनी संप्रभुता का दावा जिस सूझबूझ से पेश किया है। उससे पूरे जन जीवन में एक नई उम्मीद पैदा हुई है। इस आंदोलन में यह बात सामने आ गई है कि वास्तविक संप्रभुता देश के नागरिकों में निहित है ना कि सरकारों में। आज सवाल यह है कि हमारे वोट से गठित सरकारों को हमारे हितों की अनदेखी करके मनमाने तरीके से कानून बनाने और उसे बलपूर्वक लागू करने का अधिकार है या नहीं। जन विरोधी कानूनों के खिलाफ हमें विरोध का अधिकार है या नहीं। इस तरह यह आंदोलन लोकतंत्र के प्रति लोगों को सचेत करने और एकजुट करने का एक शानदार प्रयास भी है, आज हमारे देश और समाज में इसकी बहुत जरूरत है।
सरकार के तीन किसान विरोधी बिलों से यह आंदोलन पैदा हुआ है, इसकी जड़ें बहुत गहरी हैं। सरकार अडानी और अंबानी को लाभ की नीयत से देश में कई ऐसे काम कर रही है जिससे आम जनमानस त्रस्त है। हम एक छोटा उदाहरण Jio मोबाइल टावर की दें तो शुरूआत में इस कंपनी ने सभी को अपनी सेवा के माध्यम से लुभाया। भारी संख्या में उपभोक्ता उसकी जाल में फंस गए, लेकिन अब की हालत क्या है, किसी भी गांव में जाकर पूछ लें। किसानों के मामले में भी सरकार उसी तरह की नीयत के साथ कृषि बिल लांच की है। इसमें भी किसानों के हितों की बात सरकार कह रही है लेकिन अब किसान सरकार की नीति और नीयत दोनों को अच्छी तरह से समझ गए हैं। किसानों की व्यथा का पुराना इतिहास है। हमारे देश में लंबे समय से किसान आत्महत्याओं और तबाही का सिलसिला चल रहा है और इसके खिलाफ लगातार आवाजें भी उठती रही हैं। किसान विरोधी बिलों ने किसान समस्याओं को खत्म करने की जगह किसानों के ही विस्थापन का कार्यक्रम पेश कर दिया है।
कॉरपोरेट जगत के यहां किसानों को गिरवी रख रही सरकार
हमारा देश कॉरपोरेट जागीरदारी के युग में प्रवेश कर रहा है। उद्योग और सेवा क्षेत्र में यह जागीरदारी पहले ही जड़ें जमा चुकी है, अब खेती किसानी को अपनी गिरफ्त में लेना है। यह सरकार किसानों को कारपोरेट जगत के यहां गिरवी रख रही है। कारपोरेट जगत की उदारता और बेरहमी का एक नमूना लॉकडान के दौरान हम प्रवासी श्रमिकों की पैदल वापसी के रूप में देख चुके हैं। यह बात किसे नहीं समझ में आएगी कि आवश्यक वस्तु अधिनियम की सीमा खत्म करने से किसे फायदा होगा, संविदा खेती से किसकी तिजोरी भरेगी, निजी मंडी की राह खुलने से सरकारी मंडी और उचित समर्थन मूल्य का क्या होगा। हम एक छोटे से फर्क पर गौर करें कि खेती के किसी उत्पाद पर किसान को क्या मूल्य मिलता है और वही उत्पाद आम नागरिकों को किस मूल्य पर बेचा जाता है। नए कृषि कानूनों की चिंता इस अंतर को कम करने की नहीं है बल्कि इसे और बढ़ाने की और इसे पैदा हुए लाभों पर कॉरपोरेट एकाधिकार कायम करने की है। देश के अधिकांश किसान ना तो अपनी पैदावार बचा पाएंगे और ना ही जमीन। देर सवेर सभी को अपनी जमीन को कारपोरेट खेती के लिए पट्टा करना पड़ेगा। अपने देश में खाद्य सामग्री का बाजार मूल्य लगभग तीस लाख करोड़ का है, इसी पर सब की गिद्ध दृष्टि लगी है।
हर मोड़ पर किसानों के साथ हैं हम समाजवादी
हम समाजवादी लोग हर मोड़ पर किसानों के साथ हैं। सरकार यदि तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तो नए साल में किसानों के साथ किसानों के हक के लिए सपा के लोगों की ओर से नए आंदोलन का आगाज होगा। सरकार सपा के लोगों पर वैसे भी फर्जी मुकदमे दर्ज करा रही है। कुछ मुकदमे और दर्ज हो जाएं, कोई बात नहीं है।
स्तरहीन बयान दे रहे पीएम और बाबाजी
हमें तो आश्चर्य इस बात पर भी हो रहा है कि किसानों का समर्थन करने पर प्रधानमंत्री तक स्तरहीन बयान दे रहे हैं। यूपी में बाबाजी का क्या कहना। इनके भी हर दिन नए कारनामे सामने आ रहे हैं। किसानों के मुद्दों से अलग अभी यूपी में पीएम आवास की सूची से असंख्य लोगों को बाहर कर दिया गया। सिर्फ इसलिए कि वे गरीब हैं लेकिन उनके घर पंपिंग सेट मशीन है, बाइक है। बाबाजी को यह समझ नहीं आ रहा है कि एक घर के अंदर चार भाई कैसे गरीबी में घर के अभाव में अपना गुजारा कर रहे हैं। बाबाजी एक संत हैं, उनके स्वर मधुर होने चाहिए लेकिन वह भी एक तानाशाह की तरह यूपी की जनता पर नए-नए फरमान जारी कर रहे हैं। इससे जनता अब उब चुकी है। जनता फिर से सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जी की ओर बड़ी उम्मीद से देख रही है। इसलिए कि वह सपा की ही सरकार है जो गरीबों का, नवजवानों का, किसानों का, महिलाओं का, व्यापारियों और छात्रों का भला कर सकती है।
(सूर्यभान सिंह, लेखक समाजवादी पार्टी के बैरिया विधान सभा के नेता हैं)