दिल्ली : आखिरकार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के मुंह से सच्चाई निकल ही गयी। उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि भारत में एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य बाजार की दर से बेहद अधिक है और यह अंतरराष्ट्रीय कीमतों से भी अधिक है। इसका सीधा-सीधा मतलब है कि सरकार एमएसपी को खत्म कर देना चाहती है। अब अगर रेट की बात करें तो कृषि विशेषज्ञों तक का कहना है कि देश में सर्विस क्षेत्र की नौकरियों में जिस तरह से लोगों की तनख्वाहें बढ़ी हैं अगर उसके मुताबिक अनाजों की कीमतें होती तो मौजूदा रेट के मुकाबले इस समय किसानों को अपने अनाज की दर से 200 फीसदी ज्यादा कीमत मिलनी चाहिए थी। देश में किसानों की मौजूदा बदहाली के पीछे प्रमुख कारण यही माना जाता है कि समय के हिसाब से उनके अनाजों की दरें नहीं बढ़ीं। कुछ एमएसपी की दर के बहाने उन्हें मिले, उसको हासिल करने वाली तादाद देश की आबादी की महज छह फीसदी है। बिहार, यूपी से लेकर देश के बाकी हिस्सों में मंडी व्यवस्था लागू ही नहीं हो पायी। अब कोई गडकरी से पूछे कि बिहार और यूपी के किसान तो बाजार की दर पर ही अपने गेहूं-धान बेच रहे हैं तो क्या पंजाब के किसानों को भी आप उन्हीं के स्तर पर ले जाकर खड़ा कर देना चाहते हैं या फिर यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह छह फीसदी से इतर बाकी किसानों के लिए भी एमएसपी की दर पर उनके अनाजों की खरीद की व्यवस्था करे। गडकरी यहीं नहीं रुकते। वह खेती को कारपोरेट के हवाले करने के पीछे की अपनी पूरी मंशा को भी जाहिर कर देते हैं। उन्होंने उसी साक्षात्कार में चावल से एथनाल बनाने और खेती को बायो फूड के लिए तैयार करने की बात कही है। अब अगर ऐसा हो गया तो फिर किसान अपने मन और जरूरत के मुताबिक अनाजों को पैदा करने की जगह वह कारपोरेट की जरूरतों के हिसाब से अनाज पैदा करने में जुट जाएगा और जिसका आखिरी खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा। अनाज के क्षेत्र में जो आत्मनिर्भरता और देश को हासिल खाद्य सुरक्षा है वह खतरे में पड़ जाएगी। इसी को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं कि देश में अनाज रखने के लिए जगह नहीं है इसलिए कारपोरेट को गोदामों के निर्माण के क्षेत्र में आगे आना चाहिए।
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