पुण्यतिथि
तुम्हारे दिन लौटेंगे बार-बार, मेरे नहीं। तुम देखोगी यह झूमती हरियाली, पेड़ों पर बरसती हवा की बौछार। यह राग-रंग तुम्हारे लिए होंगी चिन्ताएं अपरम्पार। खुशियों की उलझन तुम्हारे लिए होगी थकावटें, जंगल का महावट पुकारेगा तुम्हें बार-बार। फुर्सत ढूढ़ोगी जब-तब, थकी-हार, तब तुम आओगी, पाओगी मुझे झुंझलाओगी, सो जाओगी कड़ियां गिनते-गिनते सौ बार। इसी तरह आएगी बहार चौंकाते हुए तुम्हें, तुम्हारे दिन।
(दूधनाथ सिंह..कविता कोष)
बलिया : बागी धरती बलिया के सोबंथा गांव के निवासी दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों के जरिए साठ के दशक में भारतीय परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और मानसिक सभी क्षेत्रों में पैदा हुई समस्याओं को चुनौती दी थी। दूधनाथ सिंह हिंदी के उन खास लेखकों में से हैं, जिन्होंने कहानी, कविता, नाटक, आलोचना और उपन्यास सहित लगभग सभी विधाओं में रचनाएं की। हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि, कथाकार, और आलोचक दूधनाथ सिंह ने अपनी रचनाओं के जरिए भारतीय परिवारों की समस्याओं को उजागर किया। उनकी अंदर निहित संवेदना की झलक उनकी कृतियों में स्पष्ट होती है। ऐसे महान रचनाकार की आज पुण्यतिथि है तो आइए हम आपको दूधनाथ सिंह के जीवन और लेखनी से जुड़ी खास बातें बताते हैं।
दूधनाथ सिंह का बचपन
हिंदी साहित्य के मशहूर कहानीकार और आलोचक दूधनाथ सिंह 17 अक्टूबर 1936 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के सोबंथा गांव में पैदा हुए थे। दूधनाथ सिंह का जन्म बहुत साधारण परिवार में हुआ था। इनके पिता देवकीनंदन सिंह सामान्य किसान थे इसलिए परिवार का भरण-पोषण खेती के जरिए ही होता था।
कॅरियर
बचपन से ही दूधनाथ सिंह बहुत प्रतिभाशाली थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बगल के गांव नरही में मौजूद एक प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। पढाई में अधिक रूचि होने के कारण यह घर से दूर भी पढ़ाई करने चले जाते थे। इसलिए इन्होंने अपनी हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की शिक्षा चितबड़ागांव के मर्चेंट इंटर कालेज से हासिल की। इसके अलावा बलिया शहर के सतीशचन्द्र कालेज से इन्होंने स्नातक की उपाधि पायी। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इन्होंने परास्नातक की डिग्री ली और कलकत्ता विश्वविद्यालय में अध्यापक बन गए। कुछ दिनों बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर सुशोभित हुए। अध्यापन के कार्य के साथ-साथ कई प्रमुख कृतियों की रचना की।
दूधनाथ सिंह की रचनाएं
दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों के जरिए साठ के दशक में भारतीय परिवारों की सामाजिक, आर्थिक, नैतिक और मानसिक सभी क्षेत्रों में पैदा हुई समस्याओं को चुनौती दी। दूधनाथ सिंह हिंदी के उन खास लेखकों में से हैं, जिन्होंने कहानी, कविता, नाटक, आलोचना और उपन्यास सहित लगभग सभी विधाओं में रचनाएं की। उन्होंने उपन्यासों की भी रचना की है। उनके प्रमुख उपन्यासों में से निष्कासन, आखिरी कलाम और नमो अंधकारम हैं। साथ ही उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं। जिनमें सुखांत, सपाट चेहरे वाला आदमी, माई का शोकगीत, प्रेमकथा का अंत न कोई, तू फू, धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे और कथा समग्र, सम्मिलित किया जा सकता है। इसके अलावा इन्होंने कविता संग्रहों की भी रचना की है। इनमें युवा खुशबू, एक और भी आदमी है, और अगली शताब्दी के नाम, प्रमुख हैं। इसके अलावा उनकी प्रसिद्ध कविताओं में ‘सुरंग से लौटते हुए, भी चर्चित हुई है। साथ ही दूधनाथ जी ने नाटक भी लिखे हैं। उन नाटकों में यमगाथा नाम का नाटक सबसे चर्चित रहा है। निराला: आत्महंता आस्था, महादेवी, मुक्तिबोध: साहित्य में नई प्रवृत्तियां जैसी आलोचनाएं भी लिखीं। दूधनाथ जी ने जी कुछ पत्रिकाओं का भी सम्पादन किया जिनमें एक शमशेर भी है, दो शरण (निराला की भक्ति कविताएं), तारापथ (सुमित्रानंदन पंत की कविताओं का चयन), भुवनेश्वर समग्र, पक्षधर खास हैं।
दूधनाथ सिंह को मिले सम्मान
दूधनाथ सिंह को कई प्रतिष्ठित सम्मान मिले हैं उनमें भारतेंदु सम्मान, कथाक्रम सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान शरद जोशी स्मृति सम्मान प्रमुख हैं। इसके अलावा उन्हें कई कई राज्यों का हिंदी का शीर्ष सम्मान भी मिला है।
साहित्यकार का निधन
प्रसिद्ध साहित्यकार दूधनाथ सिंह का निधन 12 जनवरी 2018 को लम्बी बीमारी के बाद हार्ट अटैक से हुआ था। वह प्रोस्टेट कैंसर से भी पीड़ित थे। दूधनाथ सिंह जी की आखिरी इच्छा थी कि उनकी आंखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएं जिसे उनके परिजनों ने पूरा किया।