पुण्यतिथि पर नमन
बलिया के लक्ष्मीराज देवी मेस्टन स्कूल के मैदान में 16 अक्टूबर 1925 को महात्मा गांधी के आने के प्रमाण मिलते हैं। देहात से भी गांधी जी को देखने व सुनने के लिए गीत गाते पहुंची थीं हजारों महिलाएं। दुर्गा प्रसाद गुप्त द्वारा लिखित पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के पृष्ठ नंबर 47 पर है उल्लेख।
बलिया : आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बागी बलिया में 16 अक्टूबर 1925 को महात्मा गांधी के आने के प्रमाण मिलते हैं। उस वक्त लक्ष्मीराज देवी मेस्टन स्कूल के मैदान में आयोजित जनसभा में उनके भाषण को सुनने के लिए बड़ा जन सैलाव उमड़ पड़ा था। देहात से भी महिलाएं अपनी गठरी संभाले गांधी गीत व चरखा गीत गाते हुए विशेष उल्लास के साथ बलिया पहुंची थीं। लगभग 50 हजार की भीड़ के बीच सभा में यहां के यशस्वी कवि रामसिंहासन सहाय मधुर ने जब अपनी दो पंक्तियां पढ़ीं तो सभी लोग अहलादित हो उठे। गांधी जी की उस सभा विस्तृत उल्लेख दुर्गा प्रसाद गुप्त द्वारा लिखित पुस्तक स्वतंत्रता संग्राम में बलिया के पृष्ठ नंबर 47 पर किया गया है। उस वक्त बापू ने अपना भाषण यह कहकर शुरू किया था कि आपको जालिम सरकार नहीं रखनी हैं। गांधी जी का यह सामयिक कथन बलिया बासियों के लिए मंत्र बन गया। उसके 17 वर्ष बाद 1942 में बलिया ने इसे सिद्ध कर दिखाया और एक सप्ताह तक बलिया को आजाद रखा।
बापू के श्राद्ध दिवस पर लगता था सर्वोदय मेला
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी के इस लोग से विदा होने के बाद उनके श्राद्ध दिवस 12 फरवरी को सिताबदियारा में सर्वोदय मेला लगाने की परंपरा की शुरूआत जेपी ने की थी। जेपी के निधन के बाद पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर भी इस परंपरा को आगे बढ़ाते रहे। सिताबदियारा में प्रति वर्ष 12 फरवरी को सर्वोदय मेला का भव्य आयोजन हुआ करता था। इस दिन देश भर से सारे सर्वोदयी विचारधारा के लोग सिताबदियारा में जमा होते थे और इस तिथि को खास बनाते थे। देश के हालात पर राष्ट्रीय विमर्श भी होता था और वह संदेश देश भर में जाता था। यूवा तुर्क चंद्रशेखर के निधन के बाद उस परंपरा का भी अंत हो गया।
वह पुस्तक जिसने बदल दी गांधी और जेपी की जिंदगी
गांधी ने अपनी आत्मकथा के एक अध्याय में लिखते हैं कि जॉन रस्किन की लिखी ‘अन टू द लास्ट’ पुस्तक ही मेरी जिंदगी में तत्काल व्यावहारिक बदलाव का कारण बनी। उसके बाद बलिया के जेपी भी बापू के सर्वोदय मंत्र से प्रभावित होकर 19 अपैल 1954 को बिहार के बोधगया में अपना संपूर्ण जीवन सर्वोदय के लिए दान कर दिए। गांधी ने इस किताब की शिक्षा को तीन बिन्दुओं में समझाया है। पहला-सबके हित में ही व्यक्ति का हित निहित है। दूसरा-एक नाई का कार्य भी वकील के समान ही मूल्यवान है क्योंकि सभी व्यक्तियों को अपने कार्य से स्वयं की आजीविका प्राप्त करने का अधिकार होता है, और तीसरा-श्रमिक का जीवन ही एक मात्र जीने योग्य जीवन है।
ग्राम पंचायतों के विषय में यह थी बापू की सोच
ग्राम पंचायतों के संबंध में महात्मा गांधी ने वर्ष 1939 में 06 मई को वृदावन में ग्राम सेवकों की एक सभा में गांव की रचना पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि एक संपूर्ण प्रजातंत्र हो। गांवों के पास इतनी अतिरिक्त जमीन होनी चाहिए, जिसमें पशु चर सकें। बड़े या बच्चे अपना मन बहला सकें। सभी सरकारी मुलाजिमों से कहा था कि आपलोगों में से अधिकांश लोग शहर से आए हैं। जब तक आप अपना मन शहर से हटाकर गांवों में नहीं लगाएंगे, तब तक आप गांवों की सेवा नहीं कर सकते। आपको यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुस्तान गांवों से बना है, शहरों से नहीं। बापू का यह मत भी था कि जो पंचायत गांव वालों की भरोसा खो दे, उसे तोड़ दिया जाए और उसके स्थान पर दूसरी पंचायत चुन ली जाए, इसलिए कि पंच के मुंह से परमेश्वर बोलता है, यह भरोसा हमारे धर्म परायण पूर्वजों के अपने आचरण से मिलते रहे हैं, लेकिन दुखद कि आजादी के इतने दिनों बाद भी ग्राम पंचायत बापू के सपनों को पंख नहीं लगा सके।