सर्व विदित है कि बलिया द्वाबा की माटी के ही चकिया निवासी प्रख्यात साहित्यकार डाॅ. केदारनाथ सिंह अब हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनकी एक-एक कविताएं जो खास कर बागी धरती बलिया के भुगोल से जुड़ी हैं, वह सदैव हमारे अंदर जिंदा रहेंगी। उनकी ऐसी ही एक कविता यूपी-बिहार को जोड़ने वाले मांझ़ी के रेलवे पुल पर भी है। मांझी का वह रेलवे पुल जब भी आंखो के सामने आएगा, डाॅ. केदारनाथ सिंह की यादें भी ताजी होती रहेंगी।
पके हुए ज्वार के खेत की तरह लगता है..मांझी का पुल
सच्चाई यह है, मेरी बस्ती के लोग सिर्फ इतना जानतें हैं, दोपहर की धूप में, जब किसी के पास कोई काम नही होता,तो पके हुए ज्वार के खेत की तरह लगता है..मांझी का पुल। मगर पुल क्या होता है..आदमी को अपनी तरफ क्यों खींचता है..ऐसा क्यों होता है कि रात की आखिरी गाड़ी…जब मांझी के पुल की पटरियों पर चढ़ती है..तो अपनी गहरी नीद में भी मेरी बस्ती का हर आदमी हिलने लगता है। एक गहरी बेचैनी के बाद…मैंने कई बार सोचा है..मांझी के पुल में, कहां है मांझी… कहां है उसकी नाव। क्या तुम ठीक उसी जगह, उंगली रख सकते हो..जहां एक पुल में छिपी रहती है नाव। मछलियां अपनी भाषा में क्या कहतीं हैं पुल को..सूंस और घडियाल क्या सोचते हैं। कछुओं को कैसा लगता है पुल…जब वो दोपहर की बाद की रेती पर…अपनी पीठ फैला कर…अपनी मेहराबें सेकते हैं। मै जानता हूं, मेरी बस्ती के लोगों के लिए, यह कितना बड़ा आश्वासन है कि वहां पूरब के आसमान में…हर आदमी के बचपन के बहुत पहले से…चुपचाप टंगा है मांझी का पुल। मैं सोचता हूं..और सोचकर कांपने लगता हूं। उन्हें कैसा लगेगा अगर एक दिन अचानक यह पता चले…वहां नहीं है मांझी का पुल। मैं खुद से पूछता हूं…कौन बड़ा है। वह जो नदी पर खड़ा है मांझी का पुल..या वह जो टंगा है लोगों के अंदर। क्या आप विश्वास करेंगे…मेरी बस्ती के लोग अक्सर पूछ्तें हैं…मांझी के पुल से कितनी दूर है..मांझी का पुल।
यह कविता महान साहित्यकार, कवि डा. केदारनाथ सिंह ने तब लिखी थी, जब वह अपने पैतृक गांव चकिया से मांझी का रेलवे पुल पार कर छपरा के एक कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे थे। वह जिस ट्रेन में सवार थे, वह ट्रेन जैसे ही मांझी पुल पर चढ़ी, उनके मन का भाव कविता लिखने की ओर बढ़ चला, ट्रेन में बैठे-बैठे ही रच दी मांझी पुल पर कविता। अक्सर वह जब अपनी माटी पर होते थे, तो इलाकाई भुगोल की ओर उनका मन खींचा चला जाता था। अब वह हमारे बीच नहीं हैं, पर वह एक-एक कविताओं के माध्यम से सदैव सभी के अंदर जिंदा रहेंगे।