बलिया डेस्क : गांव के सदन पंचायतों में कहने के लिए जनता की सत्ता है। पंचायत समिति के रुप में उनकी खुद की सरकार है। जिसमें वे चाहें तो वे मिल-बैठ कर बड़े-बड़े काम कर सकते हैं। स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पेयजल सहित सामाजिक समरसता भी स्थापित कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होता हुआ नहीं दिख रहा है। पंचायतों के संबंध में महात्मा गांधी ने वर्ष 1939 में 06 मई को वृदावन में ग्राम सेवकों की एक सभा में गांव की रचना पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि एक संपूर्ण प्रजातंत्र हो। जहां अपनी जरूरतों के लिए एक पड़ोसी भी अपने दूसरे पड़ोसी पर निर्भर न रहे। इसके बाद भी यदि उसे कोई जरूरत पड़े तो वह परस्पर एक दूसरे के सहयोग से काम ले। गांवों के पास इतनी अतिरिक्त जमीन होनी चाहिए, जिसमें पशु चर सकें। बड़े या बच्चे अपना मन बहला सकें। गांव में खेलकुद के मैदान की व्यवस्था रहे। सभी सरकारी मुलाजिमों से बापू ने कहा था कि आपलोगों में से अधिकांश लोग शहर से आए हैं या शहरी जीवन से अभ्यस्त हैं। जब तक आप अपना मन शहर से हटाकर गांवों में नहीं लगाएंगे, तब तक आप गांवों की सेवा नहीं कर सकते। आपको यह समझ लेना चाहिए कि हिन्दुस्तान गांवों से बना है, शहरों से नहीं। बापू का यह मत भी था कि जो पंचायत गांव वालों की भरोसा खो दे, उसे तोड़ दिया जाए और उसके स्थान पर दूसरी पंचायत चुन ली जाए, इसलिए कि पंच के मुंह से परमेश्वर बोलता है, यह भरोसा हमारे धर्म परायण पूर्वजों के अपने आचरण से मिलते रहे हैं, लेकिन दुखद कि आजादी के इतने दिनों बाद भी ग्राम पंचायत बापू के सपनों को पंख नहीं लगा सके।
बापू की कल्पना वाले पंचायत बनाने में बलिया भी पीछे
बलिया में कुल 948 ग्राम पंचायत हैं, लेकिन ऐसे ग्राम पंचायत कहीं नहीं दिखते जहां खेलने के मैदान, पशु चारागाह, लघु उद्योग, आपसी सदभाव, उचित न्याय देने की व्यवस्था हो। बापू के सपनों के पंचायत आज किस रुप में हैं यह हर कोई जानता है। एक प्रधान बनने के लिए लाखों, करोड़ो रुपये खर्च किए जा रहे हैं। गांवों में सफाई कर्मी हैं लेकिन गंदगी का अंबार लगा है। शौचालय बन रहे हैं, इसके बावजूद बाहर शौच जाने की प्रथा खत्म नहीं हो पा रही है। प्रधानमंत्री आवास में बहुत से स्थानों से रिश्वत लेने की शिकायतें आ रही हैं। आपसी विषमता की आग में हर गांव जल रहे हैं। चारों ओर भौतिकता का झंझावत चल रहा है। पश्चिमी हवा भारतीयता के स्वच्छ पर्यावरण को प्रदूषित करने में लगी है। ऐसे में बापू के विचारों को जीवन में उतारने की बात कहने वाले एक तरह से उनके विचारों की तिलांजलि ही हैं। सभी मान रहे कि गांधी जी की सोच को धरातल पर उतारने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी बेहतर कदम उठा रहे हैं, लेकिन सरकारी मुलाजिमों व पंचायतों के जनप्रतिनिधियों की उदासीनता से उम्मीदों को पंख नहीं लग पा रहे हैं।