बलिया डेस्क : असीमित जमीनी जानकारी, सपाट शैली व अलौकिक इल्म ने तब के ‘लोकगायक’ भिखारी ठाकुर को अंतर्राष्ट्रीय उंचाई दी। अति सामान्य इस व्यक्ति की लोक समझ, शोध प्रबंधों का साधन बन गई। भोजपूरी के प्रतीक भिखारी ठाकुर अपनी प्रासंगिक रचनाधर्मिता के कारण भारतीय लोक साहित्य में ही नहीं सात समुंदर पार माॅरीशस, फीजी, सूरीनाम, जैसे देशों में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं। संचार क्रांति की लहरों पर तिरता भोजपूरी लोकधुन लहरों का यह राजहंस, आज देश काल पर भाषा की वंदिशों को लांघता विश्व लोकसंस्कृति की धरोहर बन बैठा है। आज उसी लोक कवि भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि है। उनके जीवन की एक संक्षिप्त पड़ताल करें तो नाट्य प्रशिक्षण संस्था एनएसडी में उनकी कृति विदेशिया व लोक नाट्य शैली के रूप में पढ़ाए जाते हैं। गांधी के समकालीन भिखारी ठाकुर अपने नाटकों में वहीं संदेश दे रहे थे, जो बापू अपने राजधर्म में दे रहे थे।
बापू के समाजोद्धार विषयक विचार ही लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के कालजयी नाटक, नौटंकियों में बेटी बेचवा, भाई विरोध, विदेशिया, और गबरघिचोर के मूल कथानक हैं। मलाल यह कि भोजपूरी के सेक्सपीयर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की राह पर आज के भेजपुरी गायक नहीं चल सके। वे समाज को कोई भी ऐसा संदेश नहीं दे रहे जिससे उन पर गर्व किया जा सके। नगर की संकल्प संस्था उनके कई नाटकों को हमेशा मुख्य आयोजनों पर प्रस्तुत करते रहती है। भिखारी ठाकुर के कई नाटकों का मंचन नगर के टाउन हाल बापू भवन में भी संस्था के कलाकारों के द्वारा किया जा चुका है।
सिताबदियारा से था गहरा नाता
सिताबदियारा निवासी सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि भिखारी ठाकुर का सिताबदियारा से गहरा नाता था। वह जब तक जीवित थे तब तक सिताबदियारा के गरीबा टोला में दशहरे के दिन उनका कार्यक्रम अवश्य होता था। उनके जाने के बाद भी कुछ वर्षों तक उनकी मंडली यहां प्रतिवर्ष अपना कार्यक्रम देने आती थी। आज 18 दिसंबर को उनकी जयंती है, किंतु दुखद यह कि भोजपुरी क्षेत्रों में भी उस लोक कवि को लोग भूलते जा रहे हैं।
प्रसिद्ध कृतियां
विदेशिया, (फिल्म भी बनी) गबरघिचोर, बेटी बेचवा, पिया निसही, गंगा नहान, राधेश्याम, बहार, सीता राम बहार, नाई बहार, भाई विरोध, रामनाम कीर्तन माला, बूढशाला के बखान आदि।
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की प्रासंगिकता
लोक कलाकार भिखारी ठाकुर जो समाज के न्यूनतम नाई वर्ग में 18 दिसंबर 1887 में पैदा हुए थे, वह अपनी नाटकों, गीतों एवं अन्य कला माध्यमों से समाज के हाशिये पर रहने वाले आम लोगों की व्यथा कथा का वर्णन किया है। अपनी प्रसिद्ध रचना विदेशिया में जिस नारी की विरह वर्णन एवं सामाजिक प्रताड़ना का उन्होंने सजीव चित्रण किया है, उसी नारी पर आज चिन्तन चल रहा है। भिखारी ठाकुर ने अपने नाटकों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों, विषमता, भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। इस तरह उन्होंने देश के विशाल भोजपुरी क्षेत्र में नवजागरण का संदेश फैलाया। बेमेल विवाह, नशापान, स्त्रियों का शोषण एवं दमन, संयुक्त परिवार के विघटन एवं गरीबी के खिलाफ वे जीवनपर्यन्त विभिन्न कला माध्यमों के द्वारा संघर्ष करते रहे। यही कारण है कि इस महान कलाकार की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। भोजपुरी को अलग पहचान देने वाले वही भिखारी ठाकुर 10 जुलाई 1971 को इस लोक से विदा हो गए। ऐसे भोजपुरी चिंतक को नमन।