चंद्रशेखर पर हिंदी में जल्द छपकर आने वाली पुस्तक का यह संक्षिप्त अंश है। इसमें उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने भारत-चीन के बीच संबंधों को विस्तार से रखा है। तब के समय में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने भारत-चीन संबंधों पर चौंकाने वाले कई आरोप लगाए थे। माना रहा कि तब के समय में ही यदि चंद्रशेखर के विचारों पर अमल हुआ होता तो आज भारत-चीन सीमा विवाद में हमारी स्थिति कुछ और होती। प्रस्तुत है उप सभापति हरिवंश की पुस्तक-भारत-चीन संघर्ष और चंद्रशेखर का संक्षिप्त अंश-भाग एक
एस पांडेय
तब चंद्रशेखर बन चुके राज्य सभा सदस्य
बलिया डेस्क : 1962 में जब चीन-भारत सीमा पर युद्ध छिड़ा तो उस समय चंद्रशेखर राज्य सभा के सदस्य बन चुके थे। चंद्रशेखर ने दो अन्य प्रसोपा सांसदों एच. वी. कामथ और फरीदुल हक अंसारी के साथ मिलकर 24 सितम्बर 1962 को, प्रधानमंत्री नेहरू को भारत-चीन सीमा की स्थिति पर एक पत्र लिखा। उन्होंने और उनके साथी सांसदों ने ‘चीनी आक्रमण के दौरान भी नेहरू ससरकार द्वारा चीन के साथ एकतरफा पंचशील अपनाने का आरोप लगाया। अपने इस पत्र में तीनों प्रसोपा सांसदों ने प्रधानमंत्री नेहरू से भारतीय संप्रभुता के लिए गंभीर चीनी खतरों पर विचार-विमर्श के लिए संसद का एक विशेष सत्र बुलाने की मांग की।
इस पत्र में चीन के साथ भारत की सीमा स्थिति पर विस्तृत जानकारी भी मांगी गई थी। नेहरू ने अपने जवाब में भारत-चीन सीमा पर स्थिति की गंभीरता को कमतर दिखने के लिए भारत-चीन सीमा पर चल रहे सैन्य संघर्ष को ‘नेफा इलाके में कुछ मामूली घटनाओं के नाम से पुकारा। 19 नवम्बर 1962 भारत-चीन सीमा संघर्ष पर राज्यसभा की बहस के दौरान चंद्रशेखर ने भारतीय कम्युनिस्टों के खिलाफ चौंकाने वाले आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि वारंगल (आंध्र प्रदेश) में रक्षा कोष के लिए धन संग्रह करने निकले एक दल पर कम्युनिस्टों ने हमला किया था। चंद्रशेखर ने यह आरोप भी लगाया कि बर्दवान (पश्चिम बंगाल) में, चीन के विरोध में आयोजित एक प्रदर्शन पर कम्युनिस्ट पार्टी कार्यालय से पत्थरबाजी की गई। चंद्रशेखर, भारतीय कम्युनिस्टों को उनके वैचारिक आकाओं (रूस और चीन) के पिछलग्गू होने और भारत के बजाय अन्य देशों के प्रति उनकी निष्ठा को हमेशा अपने निशाने पर रखते थे।
होमवर्क के साथ चीन पर किया अहम सवाल
राज्यसभा में होमवर्क और अध्ययन के साथ जब चंद्रशेखर ने चीन पर सवालों को उठाना शुरू किया तो लगभग लोग सोच में पड़ गए। 20 फरवरी 1963 को राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए उन्होंने एक महत्वपूर्ण तथ्य बताया। कहा, मैं प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का एक विनम्र कार्यकर्ता हूं। नवंबर-दिसंबर 1957 में मैं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री संपूर्णानंद को एक पत्र लिखा था कि चीनी लोग तकलाकोट में एकत्र हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश सीमा के निकट रहने वाले लोगों को चीनी लोग बहका रहे हैं। कृपया सतर्क रहें और अपने लोग तैनात करें। मेरे उस पत्र का उत्तर नहीं दिया गया। तत्पश्चात मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिखा कि शायद संपूर्णानंद जी यह सोच रहे हैं कि मैं राजनीति कर रहा हूं, आप सरकार के वरिष्ठ अधिकारी हैं। आपको इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए। मुख्य सचिव से प्राप्त पत्र अब भी मेरे पास है। उन्होंने जवाब दिया कि मेरे पत्र को गुप्त पुलिस द्वारा देखा जा रहा है। चंद्रशेखर ने तब कहा कि इस तरह वर्ष 1959 में ही देश को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए था, जब चीन के ‘पीपुल्स डेली’ में एक लेख छपा। समय की कमी के कारण मैं इसे उद्धृत नहीं कर रहा। पुनः छह मई, 1959 को ‘पीपुल्स डेली’ में ‘द रिवोल्यूशन इन तिब्बत एंड नेहरुज फिलास्फी’ शीर्षक से एक लेख छपा था। चंद्रशेखर ने पूछा कि चीन से इन स्पष्ट संकेतों के बावजूद भारत सतर्क क्यों नहीं रहा। उन्होंने जोर दिया कि भारत को 1959 में ही तिब्बत और भारत-चीन सीमा के बारे में चीनी इरादों के प्रति चौकस व मुखर हो जाना चाहिए था, लेकिन तब भी श्री भूपेश गुप्त ने आठ सितंबर, 1962 तक मौन बबनाए रखा।
चीनी समाचार पत्र रेड फ्लाइट की संपादकीय का किया उल्लेख
चंद्रशेखर ने चीनी समाचार पत्र रेड फ्लाइट द्वारा अप्रैल 1960 में प्रकाशित एक संपादकीय का भी उल्लेख किया जिसमें दावा किया गया था कि चीन लेनिनवादी विचारधारा के यथार्थवाद में विश्वास करता है और इसलिए, भारत के साथ युद्ध अपरिहार्य था। अपने बयान में, उन्होंने भारत के साथ आसन्न युद्ध पर चीन से निकलने वाली चेतावनियों और खतरों को उजागर करने के लिए समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कई प्रामाणिक चीनी स्रोतों का हवाला दिया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरु द्वारा तिब्बती लोगों की संप्रभुता को सुरक्षित रखनेवाले उस आश्वासन की ईमानदारी पर सवाल उठाया। उन्होंने इस तथ्य पर अफसोस जताया कि जब एक बार चीनी सेना ने तिब्बती आबादी की सामूहिक हत्याओं का अभियान शुरू किया, तो नेहरू केवल उन्हें अपनी विनम्र सहानुभूति ही दे सकते थे। चंद्रशेखर ने कुछ सबसे महत्वपूर्ण सवाल उठाए, जिनका भारत सरकार के पास कोई जवाब नहीं था। क्रमश: जारी