चंद्रशेखर ने नेहरू की चीन नीति के बारे में पूरे तथ्य और अकाट्य प्रमाण जुटाकर उनकी आलोचना की। उन्होंने चीनी सैन्य आक्रामकता के तुरंत बाद कोलंबो सम्मेलन में भारतीय और चीनी नेताओं के बीच हाथ मिलाने का मुद्दा उठाया। हरिवंश की पुस्तक-भारत-चीन संघर्ष और चंद्रशेखर का संक्षिप्त अंश-भाग दो
एस पांडेय
बलिया डेस्क : चंद्रशेखर ने नेहरू की चीन नीति के बारे में पूरे तथ्य और अकाट्य प्रमाण जुटाकर उनकी आलोचना की। उन्होंने चीनी सैन्य आक्रामकता के तुरंत बाद कोलंबो सम्मेलन में भारतीय और चीनी नेताओं के बीच हाथ मिलाने का मुद्दा उठाया। दिसंबर 1962 में छह देशों के कोलंबो सम्मेलन में भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए मध्यस्थता की पेशकश की गई थी । चीनी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व मैडम चऊ एनलाई ने किया था । भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व विदेश राज्य मंत्री लक्ष्मी मेनन ने किया । इसमें विदेशी मामलों के ऐतिहासिक प्रभाग के निदेशक एस. गोपाल भी शामिल थे । चीन-भारत युद्ध के तत्काल बाद की इस कूटनीति पर, चंद्रशेखर ने जवाहरलाल नेहरु को याद दिलाया कि स्वयं नेहरु ने इतालवी फासीवादी नेता मुसोलिनी के साथ मिलने या उनसे हाथ मिलाने से इंकार कर दिया था ।
उस समय नेहरु ने कहा था कि मुसोलिनी के हाथ निर्दोष लोगों के खून से सने थे । इसलिए वे (नेहरु) मुसोलिनी से नहीं मिलेंगे । चंद्रशेखर ने जोर देकर कहा कि मुसोलिनी से मिलने से इनकार करके, नेहरु बचपना नहीं बल्कि अकारण हिंसक आक्रामकता के खिलाफ एक पुख्ता विरोध दर्ज कर रहे थे । आज प्रधानमंत्री बनने के बाद भारतीय प्रतिनिधियों को चीनी प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए भेजकर, प्रधानमंत्री नेहरु स्वयं उन्हीं सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं। चंद्रशेखर ने भारत सरकार से इस अवसर पर पूरे निश्चय से इस चुनौती को स्वीकार करने का आग्रह किया।
नेहरू को एक मात्र उद्धारक मानने वालों से किया सवाल
चंद्रशेखर ने अपने भाषण में उन लोगों को निशाने पर लिया जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू को भारत का एकमात्र और अंतिम उद्धारक माना था। उन्होंने कहा कि यदि कुछ लोग ऐसा मानते कि भारत बनाने का काम सिर्फ और सिर्फ जवाहरलाल नेहरु ही कर सकते हैं, तो यह वास्तव में नेहरु, कांग्रेस पार्टी और समूचे राष्ट्र के लिए बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होगा। चंद्रशेखर ने प्रख्यात कम्युनिस्ट नेता पी.सी. जोशी द्वारा लिखे गए एक पत्र का हवाला देते हुए कम्युनिस्ट नेताओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। जोशी ने अपने साथियों के बारे में कहा था किवे झूठे, बेहद झूठे हैं। वे बिना किसी शर्म के गलत बयान देते हैं। सही सबूतों को छिपाने में उन्हें कोई लिहाज नहीं है। चंद्रशेखर ने दिग्गज कम्युनिस्ट सांसद भूपेश गुप्त को भी अपने निशाने पर लिया। भूपेश गुप्त ने भारत-रूस मित्रता बनाए रखने के लिए, भारत को रूस के मित्र देश चीन के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाने की सलाह दी थी । चंद्रशेखर ने पूछा कि यदि भारत-रूस मित्रता का आधार इतना ढुलमुल है तो ऐसी दोस्ती कितनी स्थायी होगी।
राज्यसभा में अनूठा था चंद्रशेखर का यह ओजस्वी भाषण
राज्यसभा में चंद्रशेखर का यह ओजस्वी भाषण अनूठा है, उनके काम-काज, श्रम, प्रतिभा और विजन का भावी संकेत देने वाला । चंद्रशेखर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से सांसद थे । इस दल के पास, सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी जैसे बुनियादी, बौद्धिक, और संस्थागत संसाधन नहीं थे । चंद्रशेखर न प्रतिष्ठित परिवार से थे, न उन्हें वैभवशाली परवरिश ही मिली थी । उनका परिवार अभिजात वर्ग की शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकता था । इसके बावजूद उन्होंने महत्वपूर्ण जानकारी, तथ्य और सबूत जुटाने के लिए खुद को सम्यक और व्यवस्थित शोध के लिए प्रशिक्षित किया, ताकि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर वे तथ्यपरक मूल्यांकन प्रस्तुत कर सकें । विभिन्न स्रोतों से सूचनाएं एकत्र करने का उनका श्रमसाध्य प्रयास अभूतपूर्व था । सूचना प्रौद्योगिकी युग से पहले, उनके पास जानकारी जुटाने के लिए गूगल, ई-लाइब्रेरी और डिजिटल अभिलेखागार जैसे आधुनिक साधन नहीं थे ।
भारत-चीन युद्ध के बारे में चंद्रशेखर ने लिखा है
मैं मानता हूं कि युद्ध के लिए हमलोगों ने ही उत्तेजना पैदा की थी । पंडित जवाहरलाल नेहरु उस समय श्रीलंका जा रहे थे । जाते समय उन्होंने कहा कि चीनी फौजें हमारी सीमा में आ रही हैं, उनको उठाकर बाहर फेंक दो (थ्रो देम आउट), उनके लफ्ज थे। पंडित नेहरू की इस अचानक प्रतिक्रिया या बगैर किसी तैयारी के की गई प्रतिक्रिया से गंभीर स्थिति पैदा हुई। चीन ने भारत पर हमला कर दिया, देश में इसकी कोई तैयारी नहीं थी। प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार नेविल मैक्सवेल ने भारत-चीन युद्ध पर एक विवादास्पद पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने भारत को आक्रमणकारी के रूप में चित्रित किया था। इसके विपरीत, चंद्रशेखर का मानना था कि आक्रामक होने के बजाय, एक राष्ट्र के रूप में भारत इस युद्ध के लिए तैयार नहीं था। हिंदी-चीनी भाई-भाई की भावना सर्वोपरि थी और भारत के लोगों ने तो चीन से किसी युद्ध की कल्पना तक नहीं की थी। क्रमश: जारी