हिंदी और अंग्रेजी भाषा की विकिपीडिया में अलग-अलग है जन्म तिथि, भ्रमित हो रहे देशवासी। बलिया के लोग 30 जनवरी 1831 बताते हैं जन्म की तारीख, उसी दिन मनाते हैं जयंती। मंगल पांडेय के नाम की सभी संस्थाओं ने भी दर्ज है 30 जनवरी जन्म की तारीख।
बलिया डेस्क : आजादी के महानायक मंगल पांडेय की जन्म तारीख विकिपीडिया पर दो दर्ज हैं, इससे देश भर के लोग भ्रमित हो रहे हैं। बलिया के नगवा गांव में जन्मे 1857 आजादी की पहली क्रांति के महानायक मंगल पांडेय की जन्म तारीख अंग्रेजी भाषा की विकिपीडिया में 19 जुलाई 1827 दी गई है, वहीं हिंदी भाषा की विकिपीडिया में 30 जनवरी 1831 दर्ज है।
इसके अलावा और भी कई सोशल साइट्स हैं, जहां उनकी जयंती 19 जुलाई 1927 बताई गई है। ऐसे में जाहिर है इस महानायक की जयंती साल में दो बार मनाई जाएगी। इस भ्रम को दूर करने के लिए जब बलिया के जानकारों से बात की गई तो उन्होंने मंगल पांडेय की जन्म तारीख 30 जनवरी 1831 के कई साक्ष्य प्रस्तुत किए।
शिलापट्ट पर अंकित मंगल पांडेय का विवरण
माता का नाम–श्रीमति जानकी देवी
जन्मस्थान–नगवां, बलिया
जन्मतिथि–30 जनवरी 1831
शहादत दिवस-8 अप्रैल 1897
19वीं रेजीमेंट, 5 वीं कंपनी
सैनिक क्रमांक 1446
ऐतिहासिक विद्रोह की तिथि–29 मार्च 1857
19 जुलाई 1827 नहीं है मंगल पांडेय की जन्म तारीख
नगर के निवासी साहित्यकार शिवकमार कौशिकेय कहते मंगल पांडेय पर एक पुस्तक लिखे हैं, क्रांति के प्रथम नायक मंगल पांडेय, उसमें साक्ष्यों के अाधार पर ही उनकी जन्म तारीख 30 जनवरी दर्ज किए है। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा परिषद के कक्षा 6 की पाठ्यपुस्तक महान व्यक्तित्व में भी मंगल पांडेय की जयंती 30 जनवरी 1831 है। सूचना विभाग की पुस्तक बलिया दर्शन में भी 30 जनवरी ही जन्मतिथि दर्ज है। 30 जनवरी को ही बलिया में वर्षों से आयोजन होते आ रहे हैं, फिर गुगल सहित विभिन्न वेबसाइट्स पर गलत जयंती देना कहीं से भी उचित नहीं है।
विक्रमादित्य पांडेय ने 1987 में उठाया था सवाल
नगर में ही स्थापित शहीद मंगल पांडेय स्मारक समिति कदम चौराहा के अध्यक्ष शशिकांत चतुर्वेदी कहते हैं कि 1987 में विधायक रहे स्व. विक्रमादित्य पांडेय ने विधान सभा में भी इस सवाल को उठाया था। 1990 में कदम चौराहा पर मंगल पांडेय की प्रतिमा स्थापित हुई। महानायक के गांव नगवां में भी स्मारक का निर्माण सरकार की ओर से कराया गया है, उनके नाम इंटर कालेज भी है, दोनों स्थानों पर जन्म तारीख 30 जुलाई 1831 ही दर्ज है। ऐसे में उनकी जयंती को 19 जुलाई 1827 बताना इतिहास से छेड़छाड़ है।
महानायक के जीवन चरित्र से हो रहा खिलवाड़
मंगल पांडेय के गांव नगवा में स्थापित मंगल पांडेय विचार मंच के अध्यक्ष कृष्णकांत पाठक कहते हैं कि देश के इतने बड़े स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के जीवन चरित्र के साथ खिलवाड़ करने की इजाजत गूगल को नहीं होनी चाहिए। इसके लिए भारत सरकार को पहल कर उनकी जयंती में सुधार करवा कर सही अंकित करवाना चाहिए। इस त्रुटि को सुधारने के लिए गुगल और विकिपीडिया को कई बार पत्र लिख गया, लेकिन आज तक उसे नहीं सुधारा गया। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण हैं।
1857 के गदर का जन्मदाता थे मंगल पांडेय
अंग्रेजों के खिलाफ मंगल पांडेय की बगावत के बाद से बलिया से पहले बागी जोड़ दिया गया। आज भी बलिया के लोग अपनी धरती के इस महानायक के कारनामों को याद कर इतराने में कोई कमी नहीं रखते। इसलिए कि मंगल पांडेय ने ऐसे विद्रोह को जन्म दिया था, जो जंगल में आग की तरह सम्पूर्ण उत्तर भारत और देश के दूसरे भागों में भी फैल गई थी। उस वक्त मंगल पांडेय ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में थे। तब सेना के एनफील्ड पी-53 राइफल में जानवरों की चर्बी से बने एक खास तरह के कारतूस का इस्तेमाल होता था, जिसे राइफल में डालने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था। इस बात की जानकारी मंगल पांडेय को जैसे ही हुई, उन्होंने आपत्ति दर्ज कराई, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। इसके बाद 29 मार्च 1857 में जब चर्बी वाला नया कारतूस पैदल सेना को बांटा जाने लगा तो मंगल पांडेय ने उसे लेने से इनकार कर दिया। इसके परिणाम स्वरूप अंग्रेजों ने उनके हथियार छीन लिये व वर्दी उतार लेने का हुक्म दिया। उनकी राइफल छीनने के लिए जब अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन आगे बढे तो मंगल ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, साथ ही एक और अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेन्ट बॉब को भी मार डाला, लेकिन इसके बाद मंगल पांडेय और उनके सहयोगी ईश्वरी प्रसाद को अंग्रेज सिपाहियों ने पकड़ लिया। तब तक उनके विद्रोह ने सेना के बाहर आम भारतीयों में भी आजादी का अंकुर बो दिया था। इस घटना के बाद ही 1857 का गदर का जन्म हुआ। एक ऐसा गदर जिसने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर मुकदमा चलाया गया। छह अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। फैसले के अनुसार उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने मंगल पांडेय को निर्धारित तिथि से 10 दिन पूर्व ही आठ अप्रैल सन् 1857 को फांसी पर लटका दिया।