बलिया डेस्क : कोरोना वायरस को लेकर हुए लॉकडाउन में महानगरों की कंपनियों में काम-काज बंद होने के बाद यूपी-बिहार के लगभग कामगार अपने घर लौट चले हैं। कोई सरकारी व्यवस्था के तहत ट्रेन से तो कोई पैदल या अन्य साधनों से घर तक सैकड़ों किमी की दूरी को तय कर रहा है। संबंधित कंपनियों के जिम्मेदारों ने बंदी के दौरान उन्हें वेतन देना बंद कर दिया, इसलिए यह स्थिति उत्पन्न हुई है। लॉकडाउन में कामगारों का घर आसानी से चल सके, इतनी रकम देना भी विभिन्न कंपनियों के जिम्मेदारों ने उचित नहीं समझा। जबकि केंद्र सरकार ने इसके लिए विस्तृत निर्देश जारी किया था।
ऐसे में सभी तरह के कामगार आर्थिक तंगी से गुजरने लगे। उनके सामने घर आने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं था। यही कारण रहा कि सभी लोग किसी भी तरह पूरे परिवार के साथ अपने घर पहुंचने लगे हैं। इनकी घर वापसी के बाद यदि लॉकडाउन खत्म भी हो जाता है तो महानगरों की बहुत सी कंपनियों का ताला इन कामगारों के अभाव में ही नहीं खुल पाएगा। इन कामगारों में कुछ मैकेनिक हैं तो कुछ अन्य किस्म के कामगार, सभी के अंदर अलग-अलग तरीके की कला है, जिनके बदौलत महानगरों की कंपनियों का कोरोबार चलता है। घर लौटे कामगार तब तक महानगरों में जाने के मूड में नहीं हैं, जब कोरोना का यह शोर न थम जाए। हम केवल पूर्वाचल के आकड़े पर गौर करें तो महानगरों से घर लौटने वाले कामगारों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है। उनके आने का सिलसिला अभी भी जारी है।
बोले प्रवासी-लॉकडाउन में ही हुई अपनो की पहचान
लॉकडाउन के तीसरे चरण से श्रमिक स्पेशल ट्रेनों या बसों से घर लौट रहे श्रमिकों ने बताया कि वे कम पढ़े-लिखे होने के बावजूद महानगरों की विभिन्न कंपनियों में अच्छी कमाई कर लेते थे, लेकिन वैश्विक महामारी के समय लगभग कंपनियों के जिम्मेदारों ने अपने कामगारों से मुंह फेर लिया। लॉकडाउन के पहले चरण में तो कुछ मदद मिल रही थी, लेकिन दूसरे और तीसरे चरण में लगभग लोगों ने अपने कामगारों की सुधि लेना भी जरूरी नहीं समझा। श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बलिया पहुंचे धीरेंद्र साह, मुन्ना लाल चौहान, अवधेश कुमार, शिवधन चौहान, ब्रजेश चौहान, दीपक कुमार, राजदेव यादव, सोनू यादव आदि ने बताया कि कोरोना की वैश्विक महामारी में ही समझ में आया कि कौन अपना हैं। महानगरों में हमारी स्थिति भूखे मरने की हो चली थी। भला हो अपने राज्य की सरकार का, जिसने हमें सुविधायुक्त तरीके से आसानी से घर पहुंचा दिया।
लौटते समय कर रहे थे रूकने की सिफारिश
मॉडल स्टेशन पर कई कामगारों ने बताया कि लॉकडाउन के तीसरे चरण से जब यूपी-बिहार के कामगार महनगरों से भारी संख्या में अपने घर को निकलने लगे, तब के समय कंपनी कई जिम्मेदार उनसे रूकने की सिफारिश कर रहे थे, लेकिन इस महामारी में कोई भी कामगार रिस्क लेना नहीं चाहता। कामगारों ने बताया कि वे अपने प्रदेश के जिलों में कुछ भी करके जी लेंगे। महानगरों का रूख तभी करेंगे जब कोरोना का शोर पूरी तरह शांत हो जाएगा।
कुछ निखरेंगे तो कुछ बिखरेंगे भी
महानगरों से लौटे कामगारों की संख्या संख्या कम नहीं है। केवल बलिया की बात करें तो यहां श्रमिक स्पेशल ट्रेन से अब तक लगभग 50 हजार से अधिक कामगार घर वापस हुए हैं। इसके अलावा जनपद में बसों या अन्य साधनों से भी भारी संख्या में कामगार घर वापस हुए हैं। इस तरह अब तक लगभग एक लाख कामगार बलिया पहुंच चुके हैं। जितनी संख्या में कामगार घर वापस हुए हैं, उतने कामगारों को उनके मनमुताबिक रोजगार दे पाना सरकार के लिए भी बड़ी चुनौती है। ऐसे में कुछ कामगार नया रोजगार पाकर निखर सकते हैं तो कुछ रोजगार के अभाव में बिखर भी सकते हैं।