अतुल्य अयोध्या
अयोध्या, जिसका शाब्दिक अर्थ है जिसे युद्ध में जीता ना जा सके। यह नाम पाषाण काल से ही अपने भविष्य की ओर संकेत कर रहा है,फिर भी इसे अनदेखा कर इसके भाग्य से छेड़छाड़ किया गया। इतिहास को कुछ धूमिल पन्नों से मूंदने की कोशिश की गई, लेकिन कहते हैं भाग्य की रेखा कोई मिटा नहीं सकता। ये वक्तव्य अयोध्या की कहानी में हकीकत बन गया। आज हर मन बार बार अयोध्या का विचरण कर रहा है और विचरण करते हुए तुलसीदास जी की पंक्तियां गुनगुना रहा है “अवध पुरी मम पुरी सुहावन, उत्तर दिस बह सरजू पावन”।
BY-एलके सिंह
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अन्याय के विरुद्ध संघर्ष के लिए याद किया जाता है और कलियुग में उनके जन्मभूमि पर हुए ऐतिहासिक अन्याय के विरुद्ध संघर्ष का प्रतिफल उच्चतम न्यायालय के निर्णय के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। राम भारतीय सभ्यता के प्रतीक पुरुष हैं और अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि उस प्रतीक पुरुष के होने का साक्ष्य। अयोध्या में राममंदिर प्रकरण में बलिया का भी कम योगदान नहीं है। इसी धरती के दया छपरा गांव के निवासी त्रिलोकी नाथ पांडेय यदि रामजन्म भूमि के मुकदमे में पक्षकार नहीं होते तो फैसला कानूनी तौर पर मंदिर के पक्ष में आना मुश्किल होता। वादमित्र, रामसखा त्रिलोकी नाथ पांडेय रामलला के तीसरे सखा हैं। वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े हुए हैं। अभी वह अयोध्या में विश्व हिंदू परिषद के कारसेवकपुरम के एक कमरे में निवास करते हैं।
टेलीफोनिक बातचीत में श्री पांडेय ने बताया कि मैं रामजन्म भूमि के मामले के मुकदमे में अक्टूबर 1994 से हाईकोर्ट की बेंच में पैरवी करता रहा हूं। उसके बाद में रामलला का सखा घोषित होने पर पक्षकार के रूप में लखनऊ से लेकर दिल्ली तक पैरवी करता रहा। फैजाबाद के दीवानी के वकील मदन मोहन पांडेय, रविशंकर प्रसाद, वीरेश्वर द्विवेदी, अरुण जेटली जैसे वकीलों से संपर्क करके मुकदमों की तैयारी करता रहा। हाईकोर्ट में हम अपना वकील पाराशर जी को करना चाहते थे लेकिन वह अस्वस्थता के कारण नहीं आए। उसके बाद जब हमने उच्चतम न्यायालय में अपील की तो पाराशर जी से मिलने चेन्नई गए। उन्होंने तुरंत कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पैरवी हम करेंगे। उन्होंने पश्चाताप प्रकट किया कि अस्वस्थता के कारण वो लखनऊ में मुकदमे की पैरवी के लिए जा नहीं सके। पाराशर जी की फीस 25 लाख रुपए प्रतिदिन की बताई गई थी लेकिन उन्होंने एक भी पैसा नहीं लिया।
पूजा पाठ के लिए गए थे कोर्ट
एक समय ऐसा आया जब ढांचा गिरने के बाद पूजा पाठ के लिए हम लोग कोर्ट गए। रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल ने मुकदमा किया था। इस पर कोर्ट का आदेश हुआ, लेकिन तत्कालीन कमिश्नर राधेश्याम कौशिक ने उस पर ठीक से अमल नहीं किया। इस बीच दूसरी पार्टी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और हमारे आदेश पर स्थगन करवा दिया। दर्शन नजदीक से करने के लिए स्वामी जी ने पुन: सुप्रीम कोर्ट में प्रार्थना पत्र दिया। कोर्ट ने इस पर आदेश पारित कर दिया जिसके तहत वहां दर्शन पूजन चलता रहा है।