आजादी की जंग में बलिया के वीर जवानों के किरदार को भुलाया नहीं जा सकता। 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में मुंबई में नेताओं की गिरफ्तारी के बाद बलिया में कांग्रेस के नेताओं को पकड़ा भी गया। इसके बाद जिले भर के कांग्रेसियों ने इकट्ठा होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जगह-जगह इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था।
बलिया डेस्क : आजादी की जंग में बलिया के वीर जवानों के किरदार को भुलाया नहीं जा सकता। बलिया में नौ अगस्त को शुरू हुई क्रांति ज्वाला धीरे-धीरे धधकने लगी थी। 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन में मुंबई में नेताओं की गिरफ्तारी के बाद बलिया में कांग्रेस के नेताओं को पकड़ा भी गया। इसके बाद जिले भर के कांग्रेसियों ने इकट्ठा होकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जगह-जगह इकट्ठा होकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। उसी क्रम में 12 अगस्त लालगंज और 13 अगस्त 1942 को दोकटी में एलान हुआ कि 14 अगस्त को बैरिया थाने पर कब्जा किया जाएगा। क्षेत्र नायक के नेतृत्व में बजरंग आश्रम बहुआरा पर 300 लोग इकट्ठा हुए और झंडाभिवादन कर शपथ ली कि हम बैरिया थाने पर कब्जा किए बिना पीछे नहीं हटेंगे। इसके बाद बहुआरा गांव निवासी भूप नारायण सिंह को इन लोगों ने अपना कमांडर नियुक्त किया और बैरिया की तरफ बढ़ गए। बहुआरा गांव निवासी रामजन्म पांडेय ने अगुआई की और वहां से थाने की ओर चल दिए। उनके पीछे पूरा जनमानस उमड़ पड़ा। थाने पर पहुंचकर कमांडर भूपनारायण सिंह और कुछ उनके साथी अंदर गए और तत्कालीन थानाध्यक्ष काजिम हुसैन के पास पहुंच वहां से जाने को कहा। थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने कहा कि मैंने आप लोगों का अधीनता स्वीकार कर ली है, चाहें तो अपना तिरंगा आप थाने पर लहरा दीजिए, मुझे चार दिन का मोहलत दीजिए। मैं और सिपाही अपने परिवार सहित यहां से चले जाएंगे। इस तरह 14 अगस्त 1942 को ही बिना खून-खराबे के बावजूद ही भारतीय तिरंगा बैरिया थाने पर पहली बार फहरा दिया गया, लेकिन सेनानियों के वहां से जाने के बाद पुन: थानाध्यक्ष काजिम हुसैन ने उसे हटा दिया। इसका बदला चुकाने की तारीख 18 अगस्त तय हुई।
चल रहीं थीं गोलियां, फिर भी लहराया थाने पर तिरंगा
18 अगस्त को आजादी की जंग के दौरान बैरिया थाने पर कब्जा करने की नीयत से बलिया के कोने-कोने से हजारों लोगों का हुजूम इकट्ठा हुआ था। सबसे पहले बैरिया थाने पर लोग टूट पड़े और घुड़साल को लोगों ने जमींदोज कर दिया। इस घटना से भड़की ब्रिटिश पुलिस ने भीड़ पर गोलियों की बौछार कर दी। नारायणगढ़ निवासी युवा कौशल किशोर सिंह बैरिया थाने पर तिरंगा फहराते हुए पुलिस की गोली से शहीद हो गए, वहीं पुलिस की गोलियों से अन्य सैकड़ों लोग घायल हुए। कुल 20 लोगों के शहादत के बाद आक्रोशित लोगों ने थाने के सामानों को जला दिया। थाने की इमारत को चकनाचूर कर दिया और बलिया का बैरिया भी खुली हवा में सांसे लेना शुरू किया। यही वजह है कि द्धाबा के लोग 15 को तो आजादी का जश्न मनाते ही हैं, 18 अगस्त को भी काफी श्रद्धा भाव से अपने अमर शहीदों को नमन करने से पीछे नहीं रहते।
द्वाबा के प्रमुख क्रांतिकारी जो शाहिद हुए थे
निर्भय कृष्ण सिंह गोन्हिया छपरा, देश बसन कोइरी गोन्हिया छपरा, नरसिंह राय बिशुनपुरा, राम जन्म गोड़ मिल्की, राम प्रसाद उपाध्याय चांदपुर, मैनेजर सिंह टोला गुदरी राय, कौशल किशोर सिंह नारायणगढ़, रामदेव कुमार सोनबरसा, रामवृक्ष राय बैरिया, राम नगीना सुनार बैरिया, छट्ठू कमकर बैरिया, देवकी सुनार बैरिया, धर्मदेव मिश्र शुभनथही, श्रीराम तिवारी मुरारपट्टी, मुक्तिनाथ तिवारी बहुआरा, विक्रम सुनार श्रीपालपुर, भीम अहीर भगवानपुर, गदाधर पांडेय दया छपरा, गौरी शंकर राय मधुबनी, राम रेखा शर्मा गंगापुर शामिल हैं। इसके अलावा सैकड़ों लोग घायल हुए थे। उस दिन लगभग 25 हजार की भीड़ देश के नाम मर-मिटने को आमदा थी।